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Interesting Exposures of Administration
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Sangh Beej Se Vriksh
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Devendra Swarup
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Devendra Swarup
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹500 ₹375
Save: 25%
In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: Hindi, Politics/Government
Page Extent:
271
जितना विराट हैं संघ का आज का स्वरूप, उतना ही रहस्यमय है उसका उद्भव और उसकी विकास-यात्रा। प्रसिद्धि-पराक्मुखता और गुमनामी के अँधेरे से बाहर निकलकर संघ आज प्रचार माध्यमों की जिज्ञासा और कौतूहल का केंद्र बन गया है; किंतु सार्वजनिक जीवन में पाश्चात्य कार्य-पद्धतियों के अभ्यस्त मस्तिष्कों के लिए यह समझना कठिन हो रहा है कि संघ का बीज कहाँ है और वह इतना विशाल वृक्ष कैसे बन गया। उसका प्रारंभिक लक्ष्य क्या था, उसने बीज से वृक्ष का रूप कैसे धारण किया, उसकी प्रेरणा का स्रोत कहाँ है और उसकी कार्य-पद्धति का वैशिष्ट्य क्या है? इस पुस्तक के संगृहीत लेखों में ऐसी ही जिज्ञासाओं का शमन करने का प्रयास किया गया है। लिखित शब्द के अभाव में संघ के जन्मदाता डी. हेडगेवार और उनके हाथों गढ़े गए कार्यकर्ताओं की प्रारंभिक टोली के जीवन में ही संघ की विकास यात्रा की गाथा छिपी है। उनमें से कुछ व्यक्तित्वों में झाँकने का यहाँ प्रयास है। इन लेखों से यह भी ध्वनित होता है कि संघ की संगठन-यात्रा सीधी-सपाट राह पर नहीं चली है, बदलती हुई परिस्थितियों ने समय-समय पर उसके भीतर ऊहापोह और अंतर्द्वंद्व का झंझावात खड़ा किया है। वैचारिक अंतर्द्वंद्व के ऐसे क्षणों का वस्तुनिष्ठ ऐतिहासिक अध्ययन संघ के स्वयंसेवकों की निष्ठा को सुदृढ़ और विवेकी बनाने के लिए आवश्यक है। यह लेख-संग्रह इस दृष्टि से भी सहायक सिद्ध होगा|
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Vriksh” Cancel reply
Description
जितना विराट हैं संघ का आज का स्वरूप, उतना ही रहस्यमय है उसका उद्भव और उसकी विकास-यात्रा। प्रसिद्धि-पराक्मुखता और गुमनामी के अँधेरे से बाहर निकलकर संघ आज प्रचार माध्यमों की जिज्ञासा और कौतूहल का केंद्र बन गया है; किंतु सार्वजनिक जीवन में पाश्चात्य कार्य-पद्धतियों के अभ्यस्त मस्तिष्कों के लिए यह समझना कठिन हो रहा है कि संघ का बीज कहाँ है और वह इतना विशाल वृक्ष कैसे बन गया। उसका प्रारंभिक लक्ष्य क्या था, उसने बीज से वृक्ष का रूप कैसे धारण किया, उसकी प्रेरणा का स्रोत कहाँ है और उसकी कार्य-पद्धति का वैशिष्ट्य क्या है? इस पुस्तक के संगृहीत लेखों में ऐसी ही जिज्ञासाओं का शमन करने का प्रयास किया गया है। लिखित शब्द के अभाव में संघ के जन्मदाता डी. हेडगेवार और उनके हाथों गढ़े गए कार्यकर्ताओं की प्रारंभिक टोली के जीवन में ही संघ की विकास यात्रा की गाथा छिपी है। उनमें से कुछ व्यक्तित्वों में झाँकने का यहाँ प्रयास है। इन लेखों से यह भी ध्वनित होता है कि संघ की संगठन-यात्रा सीधी-सपाट राह पर नहीं चली है, बदलती हुई परिस्थितियों ने समय-समय पर उसके भीतर ऊहापोह और अंतर्द्वंद्व का झंझावात खड़ा किया है। वैचारिक अंतर्द्वंद्व के ऐसे क्षणों का वस्तुनिष्ठ ऐतिहासिक अध्ययन संघ के स्वयंसेवकों की निष्ठा को सुदृढ़ और विवेकी बनाने के लिए आवश्यक है। यह लेख-संग्रह इस दृष्टि से भी सहायक सिद्ध होगा|
About Author
देवेंद रवरूप जन्म ३० मार्च 1 ११२६ को कस्बा काठ ( मुरादाबाद) उ. प्र. में। सन् ११४७ में का. हि. विश्वविद्यालय से बी. ए. पास करके सर ११६० तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता। सन् ११६१ में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (प्राचीन भारतीय इतिहास) में प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान। सन् ११६१-११६४ तक शोधकार्य। सन् ११६४ से ११११ तक दिल्ली विश्वविद्यालय के पी. जी. डी. ए. वी. कॉलेज में इतिहास का अध्यापन। रीडर पद से सेवानिवृत्त। सन् ११८५ - १११० तक राष्ट्रीय आभिलेखागार में ब्रिटिश नीति के विाभिन्न पक्षों का गहन अध्ययन। संप्रति भारतीय अनुसंधान परिषद् के 'ब्रिटिश जनगणना नीति (१८७१-११४१) का दस्तावेजीकरण' प्रकल्प के मानद निदेशक। सन् ११४२ के भारत छोड़ो आदोलन में विद्यालय से छह मास का निष्कासन। सन् ११४८ में गाजीपुर जेल और ११७५ में तिहाड़ जेल में बंदीवास। सन् ११८० से १११४ तक दीनदयाल शोध संस्थान के निदेशक व उपाध्यक्ष। सन् ११४८ में 'चेतना' साप्ताहिक, वाराणसी में पत्रकारिता का सफर शुरू। सन् ११५८ से 'पाञ्चजन्य' साप्ताहिक से सह संपादक, संपादक और स्तंभ लेखक के नाते संबद्ध। सन् ११६० - ६३ में दैनिक 'स्वतंत्र भारत' लखनऊ में उपसंपादक। त्रैमासिक शोध पत्रिका 'मैथन' ( अंग्रेजी और हिंदी) का संपादन। विगत पचास वर्षों में पंद्रह सौ से आइ धक लेखों का प्रकाशन। अनेक संगोष्ठियों में शोध-पत्रों की प्रस्तुति।
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