Rabindranath Tagore ka Darshan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. S. Radhakrishnan
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

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176

रवींद्रनाथ टैगोर के दर्शन और संदेश की व्याख्या करते हुए यह पुस्तक दर्शन, धर्म और कला के भारतीय आदर्श की व्याख्या करती है। यह उनकी रचना का परिणाम और अभिव्यक्ति है। यह ज्ञात नहीं है कि यह रवींद्रनाथ का अपना हृदय है या भारत का हृदय, जो यहाँ धड़क रहा है। उनकी रचना में भारत को वह खोया शब्द मिला, जिसकी वह तलाश कर रहा था। भारतीय दर्शन और धर्म के चिर-परिचित यथार्थों के मूल्यों की आलोचना करना अब एक फैशन बन गया है, लेकिन उनकी चर्चा यहाँ इतने सम्मान और अंतर्मन से की गई है कि उनमें एक नयापन दिखता है। भारत की आत्मा से डॉ. राधाकृष्णन का परिचय रवींद्रनाथ टैगोर के लिए प्रेरणा का स्रोत है, और उससे इस वर्णनात्मक रचना में उन्हें सहायता मिली है। गुरुदेव टैगोर के दर्शन की व्याख्या के माध्यम से उनके हृदय में बसे भारत, उसकी संस्कृति, उसके गौरवशाली अतीत की मनोरम झाँकी प्रस्तुत की है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने|

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Description

रवींद्रनाथ टैगोर के दर्शन और संदेश की व्याख्या करते हुए यह पुस्तक दर्शन, धर्म और कला के भारतीय आदर्श की व्याख्या करती है। यह उनकी रचना का परिणाम और अभिव्यक्ति है। यह ज्ञात नहीं है कि यह रवींद्रनाथ का अपना हृदय है या भारत का हृदय, जो यहाँ धड़क रहा है। उनकी रचना में भारत को वह खोया शब्द मिला, जिसकी वह तलाश कर रहा था। भारतीय दर्शन और धर्म के चिर-परिचित यथार्थों के मूल्यों की आलोचना करना अब एक फैशन बन गया है, लेकिन उनकी चर्चा यहाँ इतने सम्मान और अंतर्मन से की गई है कि उनमें एक नयापन दिखता है। भारत की आत्मा से डॉ. राधाकृष्णन का परिचय रवींद्रनाथ टैगोर के लिए प्रेरणा का स्रोत है, और उससे इस वर्णनात्मक रचना में उन्हें सहायता मिली है। गुरुदेव टैगोर के दर्शन की व्याख्या के माध्यम से उनके हृदय में बसे भारत, उसकी संस्कृति, उसके गौरवशाली अतीत की मनोरम झाँकी प्रस्तुत की है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने|

About Author

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति रहे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु में हुआ। वे 20वीं सदी में भारत के तुलनात्मक धर्मशास्त्र और दर्शनशास्त्र के प्रख्यात विद्वान् थे। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद्, महान् दार्शनिक और एक आस्थावान हिंदू विचारक थे। उनका जन्मदिन भारत में ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। डॉ. राधाकृष्णन समस्त विश्व को एक शिक्षालय मानते थे। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही मानव-मस्तिष्क का सदुपयोग किया जाना संभव है। इन दिनों जब शिक्षा की गुणात्मकता का हृस होता जा रहा है और गुरु-शिष्य संबंधों की पवित्रता को ग्रहण लगता जा रहा है, हमें विश्वास है कि उनका पुण्य स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है। सम्मान-पुरस्कार ः भारत रत्न, टेंपलटन प्राइज, जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार और यूक्रेन का ऑर्डर ऑफ मेरिट|
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