Pul Tootane Se Pahle

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Vishnu Prabhakar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Vishnu Prabhakar
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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हिंदी कथा-साहित्य के सुप्रसिद्ध गांधीवादी रचनाकार श्री विष्णु प्रभाकर अपने पारिवारिक परिवेश से कहानी लिखने की ओर प्रवृत्त हुए बाल्यकाल में ही उन दिनों की प्रसिद्ध ‘ उन्होंने पढ़ डाली थीं । उनकी प्रथम कहानी नवंबर 1931 के ‘हिंदी मिलाप ‘ में छपी । इसका कथानक बताते हुए वे लिखते हैं-‘ परिवार का स्वामी जुआ खेलता है, शराब पीता है, उस दिन दिवाली का दिन था । घर का मालिक जुए में सबकुछ लुटाकर शराब के नशे में धुत्त दरवाजे पर आकर गिरता है । घर के भीतर अंधकार है । बच्चे तरस रहे हैं कि पिताजी आएँ और मिठाई लाएँ । माँ एक ओर असहाय मूकदर्शक बनकर सबकुछ देख रही है । यही कुछ थी वह मेरी पहली कहानी । सन् 1954 में प्रकाशित उनकी कहानी ‘ धरती अब भी घूम रही है ‘ काफी लोकप्रिय हुई । लेखक का मानना है कि जितनी प्रसिद्धि उन्हें इस कहानी से मिली, उतनी चर्चित पुस्तक ‘ आवारा मसीहा ‘ से भी नहीं मिली । श्री विष्णुजी की कहानियों पर आर्यसमाज, प्रगतिवाद और समाजवाद का गहरा प्रभाव है । पर अपनी कहानियों के व्यापक फलक के मद‍्देनजर उनका मानना है कि ‘ मैं न आदर्शों से बँधा हूँ न सिद्धांतों से । बस, भोगे हुए यथार्थ की पृष्‍ठभूमि में उस उदात्त की खोज में चलता आ रहा हूँ |झूठ का सहारा मैंने कभी नहीं लिया । ‘ उदात्त, यथार्थ और सच के धरातल पर उकेरी उनकी संपूर्ण कहानियों हम पाठकों की सुविधा के लिए आठ खंडों में प्रस्तुत कर रहे हैं । ये कहानियाँ मनोरंजक तो हैं ही, नव पीढ़ी को आशावादी बनानेवाली, प्रेरणादायी और जीवनोन्मुख भी हैं |

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हिंदी कथा-साहित्य के सुप्रसिद्ध गांधीवादी रचनाकार श्री विष्णु प्रभाकर अपने पारिवारिक परिवेश से कहानी लिखने की ओर प्रवृत्त हुए बाल्यकाल में ही उन दिनों की प्रसिद्ध ‘ उन्होंने पढ़ डाली थीं । उनकी प्रथम कहानी नवंबर 1931 के ‘हिंदी मिलाप ‘ में छपी । इसका कथानक बताते हुए वे लिखते हैं-‘ परिवार का स्वामी जुआ खेलता है, शराब पीता है, उस दिन दिवाली का दिन था । घर का मालिक जुए में सबकुछ लुटाकर शराब के नशे में धुत्त दरवाजे पर आकर गिरता है । घर के भीतर अंधकार है । बच्चे तरस रहे हैं कि पिताजी आएँ और मिठाई लाएँ । माँ एक ओर असहाय मूकदर्शक बनकर सबकुछ देख रही है । यही कुछ थी वह मेरी पहली कहानी । सन् 1954 में प्रकाशित उनकी कहानी ‘ धरती अब भी घूम रही है ‘ काफी लोकप्रिय हुई । लेखक का मानना है कि जितनी प्रसिद्धि उन्हें इस कहानी से मिली, उतनी चर्चित पुस्तक ‘ आवारा मसीहा ‘ से भी नहीं मिली । श्री विष्णुजी की कहानियों पर आर्यसमाज, प्रगतिवाद और समाजवाद का गहरा प्रभाव है । पर अपनी कहानियों के व्यापक फलक के मद‍्देनजर उनका मानना है कि ‘ मैं न आदर्शों से बँधा हूँ न सिद्धांतों से । बस, भोगे हुए यथार्थ की पृष्‍ठभूमि में उस उदात्त की खोज में चलता आ रहा हूँ |झूठ का सहारा मैंने कभी नहीं लिया । ‘ उदात्त, यथार्थ और सच के धरातल पर उकेरी उनकी संपूर्ण कहानियों हम पाठकों की सुविधा के लिए आठ खंडों में प्रस्तुत कर रहे हैं । ये कहानियाँ मनोरंजक तो हैं ही, नव पीढ़ी को आशावादी बनानेवाली, प्रेरणादायी और जीवनोन्मुख भी हैं |

About Author

अपने साहित्य में भारतीय वाग्मिता और अस्मिता को व्यंजित करने के लिए प्रसिद्ध रहे श्री विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून, 1912 को मीरापुर, जिला मुजफ्फरनगर ( उप्र.) में हुआ था । उनकी शिक्षा-दीक्षा पंजाब में हुई । उन्होंने सन् 1929 में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की । तत्पश्‍चात् नौकरी करते हुए पंजाब विश्‍वविद्यालय से भूषण, प्राज्ञ, विशारद, प्रभाकर आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं । उन्होंने पंजाब विश्‍वविद्यालय से ही बी. ए. भी किया । विष्णु प्रभाकरजी ने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृत्तांत आदि प्रमुख विधाओं में लगभग सौ कृतियों हिंदी को दीं । उनकी ' आवारा मसीहा ' सर्वा‌ध‌िक चर्चित जीवनी है, जिस पर उन्हें ' पाब्लो नेरूदा सम्मान ', ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' सदृश अनेक देशी-विदेशी पुरस्कार मिले । प्रसिद्ध नाटक ' सत्ता के आर-पार ' पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ' मूर्तिदेवी पुरस्कार ' मिला तथा हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा ' शलाका सम्मान ' भी । उन्हें उप्र. हिंदी संस्थान के ' गांधी पुरस्कार ' तथा राजभाषा विभाग, बिहार के ' डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान ' से भी सम्मानित किया गया । विष्णु प्रभाकरजी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्‍त लोकप्रिय रहे । देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करनेवाले विष्णुजी जीवनपर्यंत पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य-साधनारत रहे । स्मृतिशेष 11 अप्रैल, 2009 |

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