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महाकवि चन्द बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो (हिन्दी अनुवाद सहित) (चार खण्डों में) | Prithviraj Raso – Mahakavi Chand Bardai Krit
Publisher:
Rajasthani Granthagar
| Author:
Kaviraj Mohan Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set (Hardback)
₹2,500 ₹2,375
Save: 5%
In stock
Ships within:
7-10 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU 9789387297043 Categories Hindi, History, Omnibus/Box Set-Hindi
Categories: Hindi, History, Omnibus/Box Set-Hindi
Page Extent:
रासो साहित्य में महाकवि चन्द बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो सर्वश्रेष्ठ काव्य रचना है। उसके लिये यह कहना उचित ही होगा कि उसका स्वरूप समय-समय पर परिवर्द्धित होता रहा है, जिससे भाषा के आधार पर उसके रचनाकाल का निर्णय करने में अनेक उलझने उत्पन्न होती है। इतना होते हुए भी काव्य की दृष्टि से वह बहुत ही प्रौढ़ रचना है। ऐसे महत्त्वपूर्ण महाकाव्य का अनुवाद और संपादन का कार्य कविराव मोहनसिंह जैसे विद्वत व्यक्तित्व वाला व्यक्ति ही कर सकता था। कविराव मोहनसिंह ने न केवल ग्रंथ का संपादन किया बल्कि शब्दार्थ तथा हिन्दी अनुवाद कर ग्रंथ को आम पाठकों तक चार खण्डों में सुलभ कराया। Prithviraj Chauhan, Rajput (Prithviraj Raso Chand Bardai)
इस पुस्तक को पढ़ने में चौहान जाति को अपने पूर्वजों के कृत्यों पर गौरव का अनुभव होगा, अन्य लोगों को भी चौहान जाति को जानने का मौका मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि आज भी गजनी शहर में बादशाह गौरी की कब्र के साथ सम्राट पृथ्वीराज तथा कवि चंद बरदाई की समाधियाँ मौजूद है, जो उस ऐतिहासिक घटना की मूक गवाह हैं।
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Description
रासो साहित्य में महाकवि चन्द बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो सर्वश्रेष्ठ काव्य रचना है। उसके लिये यह कहना उचित ही होगा कि उसका स्वरूप समय-समय पर परिवर्द्धित होता रहा है, जिससे भाषा के आधार पर उसके रचनाकाल का निर्णय करने में अनेक उलझने उत्पन्न होती है। इतना होते हुए भी काव्य की दृष्टि से वह बहुत ही प्रौढ़ रचना है। ऐसे महत्त्वपूर्ण महाकाव्य का अनुवाद और संपादन का कार्य कविराव मोहनसिंह जैसे विद्वत व्यक्तित्व वाला व्यक्ति ही कर सकता था। कविराव मोहनसिंह ने न केवल ग्रंथ का संपादन किया बल्कि शब्दार्थ तथा हिन्दी अनुवाद कर ग्रंथ को आम पाठकों तक चार खण्डों में सुलभ कराया। Prithviraj Chauhan, Rajput (Prithviraj Raso Chand Bardai)
इस पुस्तक को पढ़ने में चौहान जाति को अपने पूर्वजों के कृत्यों पर गौरव का अनुभव होगा, अन्य लोगों को भी चौहान जाति को जानने का मौका मिलेगा।
उल्लेखनीय है कि आज भी गजनी शहर में बादशाह गौरी की कब्र के साथ सम्राट पृथ्वीराज तथा कवि चंद बरदाई की समाधियाँ मौजूद है, जो उस ऐतिहासिक घटना की मूक गवाह हैं।
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