Police Vyavastha Par Vyangya

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Giriraj Sharan
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
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Giriraj Sharan
Language:
Hindi
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Hardback

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राज्य-व्यवस्था चलाने के लिए पहले ‘वरदीधारियों’ की एक ही जाति हुआ करती थी। सरकारी भाषा में उसे ‘सिपाही’ कहा जाता था। लेकिन यह ‘अंगे्रज श्री’ के भारत आने से पहले की बात है। अंग्रेज क्योंकि स्वभाव से ‘विभाजन-प्रिय’ लोग हैं, सो उन्होंने अपनी इस प्रवृत्ति का परिचय देते हुए ‘सिपाही जाति’ का रातोरात विभाजन कर दिया। उन्होंने इस जाति में से एक और प्रजाति निकाली, जिसका नाम रखा ‘पुलिस’। विभाजन के बाद इनके कार्यक्रम अलग-अलग हो गए। सिपाही शत्रु के विरुद्ध युद्ध छिड़ने के अवसर पर मोरचा सँभालते हैं, तो पुलिस अपने लोगों के बीच लड़ाई के अवसर पर। पहला लड़ने का काम करता है तो दूसरा लड़ाने का। और आप भलीभाँति जानते हैं कि लड़ने से कहीं अधिक मुश्किल काम है लड़ाने का। बचपन में हम एक कहावत सुनते थे, ‘भाग रे सिपाही, चोर आया’। तब हम नहीं समझते थे कि चोर के आने पर सिपाही का भाग जाना क्यों आवश्यक है! लेकिन अब समझते हैं और खूब समझते हैं, क्योंकि जैसे-जैसे पुलिस-तंत्र विकास की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे चोरों की दिलेरी और पुलिस की फरारी बढ़ रही है। इस झंझट से मुक्त होते हुए फिलहाल हम यह मुकदमा उन बुद्धिजीवी लेखकों के सुपुर्द करते हैं, जो इस सिद्धांत को नहीं मानते और पुलिस के अंदर झाँकने का बार-बार प्रयास करते हैं। आप इनसे मिलिए और पुलिस का चिट्ठा पढि़ए। तिल-तिलकर तिलमिलाने और हास्य स्थलों पर ठहाका लगाने को विवश करते हैं ये व्यंग्य।.

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Description

राज्य-व्यवस्था चलाने के लिए पहले ‘वरदीधारियों’ की एक ही जाति हुआ करती थी। सरकारी भाषा में उसे ‘सिपाही’ कहा जाता था। लेकिन यह ‘अंगे्रज श्री’ के भारत आने से पहले की बात है। अंग्रेज क्योंकि स्वभाव से ‘विभाजन-प्रिय’ लोग हैं, सो उन्होंने अपनी इस प्रवृत्ति का परिचय देते हुए ‘सिपाही जाति’ का रातोरात विभाजन कर दिया। उन्होंने इस जाति में से एक और प्रजाति निकाली, जिसका नाम रखा ‘पुलिस’। विभाजन के बाद इनके कार्यक्रम अलग-अलग हो गए। सिपाही शत्रु के विरुद्ध युद्ध छिड़ने के अवसर पर मोरचा सँभालते हैं, तो पुलिस अपने लोगों के बीच लड़ाई के अवसर पर। पहला लड़ने का काम करता है तो दूसरा लड़ाने का। और आप भलीभाँति जानते हैं कि लड़ने से कहीं अधिक मुश्किल काम है लड़ाने का। बचपन में हम एक कहावत सुनते थे, ‘भाग रे सिपाही, चोर आया’। तब हम नहीं समझते थे कि चोर के आने पर सिपाही का भाग जाना क्यों आवश्यक है! लेकिन अब समझते हैं और खूब समझते हैं, क्योंकि जैसे-जैसे पुलिस-तंत्र विकास की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे चोरों की दिलेरी और पुलिस की फरारी बढ़ रही है। इस झंझट से मुक्त होते हुए फिलहाल हम यह मुकदमा उन बुद्धिजीवी लेखकों के सुपुर्द करते हैं, जो इस सिद्धांत को नहीं मानते और पुलिस के अंदर झाँकने का बार-बार प्रयास करते हैं। आप इनसे मिलिए और पुलिस का चिट्ठा पढि़ए। तिल-तिलकर तिलमिलाने और हास्य स्थलों पर ठहाका लगाने को विवश करते हैं ये व्यंग्य।.

About Author

जन्म: 14 जुलाई, 1944; संभल (मुरादाबाद) उ.प्र.। शिक्षा: एम.ए., पी-एच.डी. (हिंदी)। विधाएँ: गीत, गजल, कहानी, एकांकी, निबंध, हास्य-व्यंग्य, बाल साहित्य एवं समालोचना। मौलिक-लेखन: गजल, व्यंग्य, ललित निबंध, समसामयिक विषयों पर तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। समग्र लेखन ग्यारह खंडों में प्रकाशित। संपादन के क्षेत्र में अपूर्व योगदान: चालीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित होकर बहुचर्चित-बहुप्रशंसित। पत्रकारिता: प्रधान संपादक ‘शोध दिशा’। पुरस्कार-सम्मान: केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित। शोधकार्य: डॉ. अग्रवाल के साहित्य पर देश के विविध विश्वविद्यालयों में 15 से अधिक शोधकार्य संपन्न हो चुके हैं

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