Phaans

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
विजय गौर
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
विजय गौर
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9789326350082 Category
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276

फाँस –
यदि एक शे’र का सहारा लें तो विजय गौड़ के पहले उपन्यास ‘फाँस’ के निहितार्थ को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं:
‘तुम जब कभी इस मुल्क का इतिहास लिखोगे।
क्या उसमें मेरी भूख मेरी प्यास लिखोगे !! ‘
युवा लेखक विजय गौड़ विभाजन की त्रासदी के बाद पुनर्निर्माण की प्रक्रिया और उसके समानान्तर चलती ‘विकास’ की गतिविधियों को इस उपन्यास में परिभाषित करते हैं। स्वातन्त्र्योत्तर देश में किसके हिस्से कितनी आज़ादी आयी, किसके हिस्से की रौशनी लूट ली गयी, चन्द प्रतिशत लोगों ने किस प्रकार अपार जनसमुदाय के अधिकारों का संहार किया और हाशिये के लोग किन साजिशों के तहत ठिकाने लगा दिये गये—ऐसे जाने कितने सवाल हैं जो कथावस्तु में गूँजते रहते हैं।
यथार्थ को व्यक्त करने के लिए लेखक निम्नवर्गीय जन-जीवन को रचना के केन्द्र में रखता है। मंगू, गुरुप्रसाद, तुफ़ैल, सोम्मी, रीना, पुरुषोत्तम जैसे श्रमजीवियों में बची हुई मनुष्यता को लेखक सघन आस्था के साथ रेखांकित करता है। अनपढ़ सोम्मी चुपचाप ‘स्त्री शक्ति’ का नया भाष्य रचती रहती है। ये चरित्र लम्बे समय तक याद रहते हैं। इनके बीच ‘डॉ. होगया’ जैसा अजीबोग़रीब चरित्र भी है, जिसके कारण उपन्यास में रोचकता बढ़ती है।
विजय गौड़ ने विचार और बाज़ार की रस्साक़शी का जायज़ा भी लिया है। उनके पास विषयानुकूल व पात्रानुरूप भाषा व भंगिमा है। परिवेश जीवन्त हो उठता है और आशय स्पष्ट। ‘फाँस’ उस कसक या वेदना का बयान है जो एक ज़िम्मेदार रचनाशील मन प्रतिपल अनुभव करता है, ‘विचारों का अन्त’ की पूँजीवादी, छद्म आधुनिक और अवसरवादी घोषणाओं के बावजूद।
एक युवा दृष्टिकोण के साथ रचा गया महत्त्वपूर्ण उपन्यास।—सुशील सिद्धार्थ

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Description

फाँस –
यदि एक शे’र का सहारा लें तो विजय गौड़ के पहले उपन्यास ‘फाँस’ के निहितार्थ को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं:
‘तुम जब कभी इस मुल्क का इतिहास लिखोगे।
क्या उसमें मेरी भूख मेरी प्यास लिखोगे !! ‘
युवा लेखक विजय गौड़ विभाजन की त्रासदी के बाद पुनर्निर्माण की प्रक्रिया और उसके समानान्तर चलती ‘विकास’ की गतिविधियों को इस उपन्यास में परिभाषित करते हैं। स्वातन्त्र्योत्तर देश में किसके हिस्से कितनी आज़ादी आयी, किसके हिस्से की रौशनी लूट ली गयी, चन्द प्रतिशत लोगों ने किस प्रकार अपार जनसमुदाय के अधिकारों का संहार किया और हाशिये के लोग किन साजिशों के तहत ठिकाने लगा दिये गये—ऐसे जाने कितने सवाल हैं जो कथावस्तु में गूँजते रहते हैं।
यथार्थ को व्यक्त करने के लिए लेखक निम्नवर्गीय जन-जीवन को रचना के केन्द्र में रखता है। मंगू, गुरुप्रसाद, तुफ़ैल, सोम्मी, रीना, पुरुषोत्तम जैसे श्रमजीवियों में बची हुई मनुष्यता को लेखक सघन आस्था के साथ रेखांकित करता है। अनपढ़ सोम्मी चुपचाप ‘स्त्री शक्ति’ का नया भाष्य रचती रहती है। ये चरित्र लम्बे समय तक याद रहते हैं। इनके बीच ‘डॉ. होगया’ जैसा अजीबोग़रीब चरित्र भी है, जिसके कारण उपन्यास में रोचकता बढ़ती है।
विजय गौड़ ने विचार और बाज़ार की रस्साक़शी का जायज़ा भी लिया है। उनके पास विषयानुकूल व पात्रानुरूप भाषा व भंगिमा है। परिवेश जीवन्त हो उठता है और आशय स्पष्ट। ‘फाँस’ उस कसक या वेदना का बयान है जो एक ज़िम्मेदार रचनाशील मन प्रतिपल अनुभव करता है, ‘विचारों का अन्त’ की पूँजीवादी, छद्म आधुनिक और अवसरवादी घोषणाओं के बावजूद।
एक युवा दृष्टिकोण के साथ रचा गया महत्त्वपूर्ण उपन्यास।—सुशील सिद्धार्थ

About Author

विजय गौड़ - जन्म: मई 1968, देहरादून। शिक्षा: विज्ञान स्नातक, एम.ए. हिन्दी। प्रकाशन: अब तक एक कविता संकलन 'सबसे ठीक नदी का रास्ता'। 'फाँस' पहला उपन्यास। सम्पादन : नौवें दशक की शुरुआत में कविता फोल्डर 'फ़िलहाल' का सम्पादन। इंटरनेट पर 'लिखो यहाँ वहाँ' नामक ब्लॉग के सम्पादक।

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