Mere Tuneer, Mere Baan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Amarendra Kumar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Amarendra Kumar
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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हिंदी साहित्य में व्यंग्य एक प्रवृत्ति न होकर विधा बन गई है। इसके मूल में व्यंग्य-आंदोलन, त्यागी-परसाई-जोशी जैसे सशक्त व्यंग्यकारों का आविर्भाव तथा समाज में विपुल व्यंग्य-सामग्री की उपलब्धि रही है। आज समाज में, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद से जिस प्रकार विद्रूपता एवं विसंगति का विस्तार हुआ है तथा वह तनावों और विडंबनाओं एवं अमानवीयता के जाल में जिस रूप में फैलती गई है और कोई समाधान उसके सम्मुख नहीं है, तब लेखक व्यंग्य का सहारा लेता है और मनुष्य की मनोवृत्तियों एवं सामाजिक परिस्थितियों की विद्रूपताओं, विसंगतियों, विडंबनाओं को व्यंग्य की तीव्र धारा से उनका उद्घाटन करता है। एक नए व्यंग्यकार के लिए अपने समय की व्यंग्य-रचनाओं से गुजरना आवश्यक है। इससे उसके व्यंग्य-संस्कार पुष्ट होते हैं। अमरेंद्र अपने व्यंग्य-कर्म में इसी दायित्व को निभाते हैं तथा समाज और मनुष्य के सामने उनकी विडंबनाओं, विसंगतियों तथा विद्रूपताओं का चित्रण करके उन पर गहरी चोट करते हैं, जिससे पाठक स्वस्थ जीवन जी सके। इस संग्रह के जो व्यंग्य-लेख हैं, वे जीवन के विभिन्न पक्षों-संदर्भों से जुड़े हैं तथा भारत एवं अमेरिकी जीवन की विडंबनाओं पर प्रकाश डालते हैं।.

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Description

हिंदी साहित्य में व्यंग्य एक प्रवृत्ति न होकर विधा बन गई है। इसके मूल में व्यंग्य-आंदोलन, त्यागी-परसाई-जोशी जैसे सशक्त व्यंग्यकारों का आविर्भाव तथा समाज में विपुल व्यंग्य-सामग्री की उपलब्धि रही है। आज समाज में, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद से जिस प्रकार विद्रूपता एवं विसंगति का विस्तार हुआ है तथा वह तनावों और विडंबनाओं एवं अमानवीयता के जाल में जिस रूप में फैलती गई है और कोई समाधान उसके सम्मुख नहीं है, तब लेखक व्यंग्य का सहारा लेता है और मनुष्य की मनोवृत्तियों एवं सामाजिक परिस्थितियों की विद्रूपताओं, विसंगतियों, विडंबनाओं को व्यंग्य की तीव्र धारा से उनका उद्घाटन करता है। एक नए व्यंग्यकार के लिए अपने समय की व्यंग्य-रचनाओं से गुजरना आवश्यक है। इससे उसके व्यंग्य-संस्कार पुष्ट होते हैं। अमरेंद्र अपने व्यंग्य-कर्म में इसी दायित्व को निभाते हैं तथा समाज और मनुष्य के सामने उनकी विडंबनाओं, विसंगतियों तथा विद्रूपताओं का चित्रण करके उन पर गहरी चोट करते हैं, जिससे पाठक स्वस्थ जीवन जी सके। इस संग्रह के जो व्यंग्य-लेख हैं, वे जीवन के विभिन्न पक्षों-संदर्भों से जुड़े हैं तथा भारत एवं अमेरिकी जीवन की विडंबनाओं पर प्रकाश डालते हैं।.

About Author

अमरेंद्र कुमार जन्म: मुजफ्फरपुर, बिहार। शिक्षा: यांत्रिकी अभियंत्रण, मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद; औद्योगिकी अभियंत्रण, ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका। योगदान: क्षितिज इनकॉर्पोरेटेड, अमेरिका की स्थापना (2002), संयुक्त राज्य अमेरिका से निकलनेवाली त्रैमासिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका ‘क्षितिज’ का प्रकाशन-संपादन (2003-2006), ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति’, अमेरिका के निदेशक (2005), ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति’, अमेरिका द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्रिका ‘ई-विश्वा’ का संपादन (2007), भारतीय कौंसलावास, टोरांटो, कनाडा द्वारा आयोजित कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता (2008); भारत, अमेरिका समेत कई देशों की हिंदी पत्र-पत्रिकाओं, अनेक संकलनों में कविता, कहानी, यात्रा-संस्मरण, व्यंग्य आदि प्रकाशित। प्रकाशन: ‘चूड़ीवाला और अन्य कहानियाँ’ व ‘गांधीजी खड़े बाजार में’ (कहानी-संग्रह) तथा ‘अनुगूँज’ (कविता-संग्रह)।

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