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Media Aur Hamara Samay

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
प्रांजल धर
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
प्रांजल धर
Language:
Hindi
Format:
Hardback

360

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Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789326352604 Category
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Page Extent:
324

मीडिया और हमारा समय –
मीडिया के आकार लेने से अब तक की यात्रा में उसने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। अगर मीडिया की आज़ादी के बाद की यात्रा देखें तो उसे तीन हिस्सों में बाँट कर हम देख सकते हैं। एक आज़ादी के आन्दोलन के बोझ और उसे प्राप्त करने के बाद उपजे सपनों से दबी पत्रकारिता और दूसरी आज़ादी के मोहभंग के बाद की। और तीसरी मिशन के अन्त और पूँजी के हस्तक्षेप की पत्रकारिता। चर्चित युवा मीडिया विश्लेषक प्रांजल धर की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ तीसरी तरह की आधुनिक पत्रकारिता की प्रवृत्तियों और उसके विचलन पर केन्द्रित एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में मीडिया में दरकते मूल्यों, नयी तकनीक, ऑनलाइन पत्रकारिता, टीवी, रंगमंच, एफ़एम रेडियो, प्रेम और बेवफ़ाई से सम्बन्धित कई लेख संकलित हैं। आधुनिक पत्रकारिता को समझने के लिए यह पुस्तक एक बेहतरीन हथियार है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक के कुछ निबन्ध मीडिया में पूँजी के हस्तक्षेप के नफ़े-नुक़सान को बताते हैं और मीडिया की आज़ादी के सवाल को भी सामने लाने की कोशिश करते हैं। मौजूदा समय में मीडिया की आज़ादी को लेकर एक ख़ास बहस चल रही है कि मीडिया जनपक्षीय हो या बाज़ारोन्मुखी। बाज़ार के दबाव में मीडिया अपने सरोकारों को लगभग त्याग चुका है। गम्भीर सवालों के लिए उसके पास जगह नहीं हैं। जीभ और जाँघ भूगोल में उसे बाज़ार ने फँसा लिया है। इन सवालों को भी इस पुस्तक के कई निबन्ध पूरी शिद्दत से उठाते हैं। बाज़ार से नियन्त्रित होने वाले मीडिया को इसीलिए अब नियम और क़ानून में बाँधने के लिए भी आवाज़ें उठने लगी हैं। इस सन्दर्भ में ‘मीडिया : नियमन की लकीरें’ और ‘मीडिया के नियमन की जटिलताएँ’ लेख काफ़ी महत्त्वपूर्ण सवालों को उठाते हैं। उत्तर आधुनिक मीडिया को जानने और समझने के लिए प्रांजल की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ एक ज़रूरी किताब है।

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Description

मीडिया और हमारा समय –
मीडिया के आकार लेने से अब तक की यात्रा में उसने बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। अगर मीडिया की आज़ादी के बाद की यात्रा देखें तो उसे तीन हिस्सों में बाँट कर हम देख सकते हैं। एक आज़ादी के आन्दोलन के बोझ और उसे प्राप्त करने के बाद उपजे सपनों से दबी पत्रकारिता और दूसरी आज़ादी के मोहभंग के बाद की। और तीसरी मिशन के अन्त और पूँजी के हस्तक्षेप की पत्रकारिता। चर्चित युवा मीडिया विश्लेषक प्रांजल धर की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ तीसरी तरह की आधुनिक पत्रकारिता की प्रवृत्तियों और उसके विचलन पर केन्द्रित एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में मीडिया में दरकते मूल्यों, नयी तकनीक, ऑनलाइन पत्रकारिता, टीवी, रंगमंच, एफ़एम रेडियो, प्रेम और बेवफ़ाई से सम्बन्धित कई लेख संकलित हैं। आधुनिक पत्रकारिता को समझने के लिए यह पुस्तक एक बेहतरीन हथियार है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस पुस्तक के कुछ निबन्ध मीडिया में पूँजी के हस्तक्षेप के नफ़े-नुक़सान को बताते हैं और मीडिया की आज़ादी के सवाल को भी सामने लाने की कोशिश करते हैं। मौजूदा समय में मीडिया की आज़ादी को लेकर एक ख़ास बहस चल रही है कि मीडिया जनपक्षीय हो या बाज़ारोन्मुखी। बाज़ार के दबाव में मीडिया अपने सरोकारों को लगभग त्याग चुका है। गम्भीर सवालों के लिए उसके पास जगह नहीं हैं। जीभ और जाँघ भूगोल में उसे बाज़ार ने फँसा लिया है। इन सवालों को भी इस पुस्तक के कई निबन्ध पूरी शिद्दत से उठाते हैं। बाज़ार से नियन्त्रित होने वाले मीडिया को इसीलिए अब नियम और क़ानून में बाँधने के लिए भी आवाज़ें उठने लगी हैं। इस सन्दर्भ में ‘मीडिया : नियमन की लकीरें’ और ‘मीडिया के नियमन की जटिलताएँ’ लेख काफ़ी महत्त्वपूर्ण सवालों को उठाते हैं। उत्तर आधुनिक मीडिया को जानने और समझने के लिए प्रांजल की पुस्तक ‘मीडिया और हमारा समय’ एक ज़रूरी किताब है।

About Author

प्रांजल धर - जन्म: मई 1982 में, ज्ञानीपुर गाँव, गोण्डा (उ.प्र.) में। शिक्षा: जनसंचार एवं पत्रकारिता में परास्नातक भारतीय जनसंचार संस्थान से पत्रकारिता में डिप्लोमा। कार्य: कवि, आलोचक, मीडिया विश्लेषक और अनुवादक। जल, जंगल और ज़मीन आदि के बुनियादी मुद्दों पर सृजनात्मक कार्य कविताओं का कुछ देशी विदेशी भाषाओं में अनुवाद। 'नया ज्ञानोदय', 'नेशनल दुनिया' और 'द सी एक्सप्रेस' समेत अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में पिछले डेढ़ दशक से नियमित स्तम्भ लेखन। अवधी और अंग्रेज़ी भाषा में भी लेखन। सम्मान: राजस्थान पत्रिका पुरस्कार (2006), अवध भारती सम्मान (2010), भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार (2010), दक्षेस का विशेष लेखक सम्मान (2013), भारत भूषण अग्रवाल कविता पुरस्कार (2012), हरिकृष्ण त्रिवेदी सम्मान (2015-16 )। पुस्तकें: 'अन्तिम विदाई से तुरन्त पहले' (कविता संग्रह); 'मीडिया और हमारा समय', 'समकालीन वैश्विक पत्रकारिता में अख़बार', 'महत्व रामधारी सिंह दिनकर समर शेष है' व 'अनभै' पत्रिका के चर्चित पुस्तक संस्कृति विशेषांक का सम्पादन। लेखक – कृष्णकान्त - जन्म: 30 अगस्त, 1986 को गोण्डा ज़िले में। प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा वहीं से। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक और पत्रकारिता में परास्नातक। अमर उजाला, प्रभात ख़बर, आज समाज, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर में बतौर चीफ़ सब एडीटर कार्य करने के बाद फ़िलहाल पत्रकारिता की एक नौकरी में। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविताएँ, कहानियाँ और समीक्षाएँ आदि प्रकाशित।

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