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मानव कौल की 12 पुस्तकों का सेट | Manav Kaul – Set of 12 books
Publisher:
Hind Yugm
| Author:
Manav Kaul
| Language:
Hindi
| Format:
Omnibus/Box Set (Paperback)
₹2,889 ₹2,022
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1-4 Days
15
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ISBN:
SKU
MANKA12
Categories General Fiction, Hindi, Omnibus/Box Set-Hindi
Categories: General Fiction, Hindi, Omnibus/Box Set-Hindi
Page Extent:
मानव कौल की पुस्तकों का सेट, जिसमें ‘ठीक तुम्हारे पीछे’, ‘शर्ट का तिसरा बटन’, ‘तुम्हारे बारे में’, ‘बहुत दूर कितना दूर होता है’, ‘कर्ता ने कर्म से’, ‘अंतिमा’, ‘चलता फिरता प्रेत’, ‘प्रेम कबूतर’, ‘रूह’, ‘तितली’, ‘पतझड़‘, और ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ शामिल हैं, यह सभी पुस्तकें विभिन्न रूपों में आत्मा, प्रेम, और मानवीय संबंधों की गहराईयों को छूने वाली हैं।
- ठीक तुम्हारे पीछे : “ठीक तुम्हारे पीछे” अभिनेता और लेखक मानव कौल का कहानी संग्रह है। कहानी संग्रह में कुल बारह कहानियां हैं।इन कहानियों में एक गहराई है। सब कुछ सतही तौर पर पकड़ में नहीं आता। हर कहानी में शुरुआत, मध्य, अंत, रोचकता, थ्रिलर वाला अंत ढूंढने की कोशिश करेंगे तो आप निराश होंगे। किताब “ठीक तुम्हारे पीछे” की कुछ कहानियों को छोड़ दें तो बाक़ी कहानियां बहुत आसानी से हर समकालीन समाज में रहने वाले, जीने वाले मनुष्य से संबंधित दिखाई पड़ती हैं। मानव कौल की इन कहानियों की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह आतंकित नहीं करतीं। किसी एक विचारधारा का प्रचार नहीं करतीं, कोई क्रांति, बदलाव का झंडा बुलंद नहीं करतीं। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ आज के समाज और इसमें रह रहे लोगों की मनोदशा पर बात करती हैं। एक नौकरीपेशा युवक, एक शादीशुदा युवक, एक तलाक़ की तरफ़ बढ़ रहे दंपति के सामने क्या संघर्ष हैं, क्या मसले हैं, उनकी बातें यह कहानियां करती हैं। हर कहानी में भावनाएं प्रधान हैं। इसलिए सभी कहानियां बहुत कनेक्ट भी करती हैं। किरदार की उदासी, पीड़ा पाठक को महसूस होने लगती है। मानव कौल ने जिस तरह से गम्भीर बातों को भी एक लाइन में, हल्के फुल्के अंदाज़ में कहा है वह सच में बहुत शानदार है। जैसा कि कुछ कहानियां बहुत ज़्यादा लेयर्ड हैं इसलिए एक बार पढ़ने में पता नहीं चलता कि क्या हो रहा है, क्या कहा जा रहा है। आपको एक से अधिक बार पढ़ना पड़ेगा, कहानियों में गहरे उतरने के लिए। पढ़ते हुए हर बार कुछ नया आपके हाथ लगेगा। यदि प्रयोग पसंद करते हैं, कुछ नया पढ़ने की चाहत है तो यह कहानी संग्रह आपको पसंद आएगा।
- शर्ट का तीसरा बटन तीन पक्के दोस्तों राजिल, चोटी और राधे की कहानी है। छठी कक्षा में पढ़ने वाला राजिल संकोची स्वभाव का है। वह किसी भी प्रश्न का सटीक उत्तर देने में स्वयं को असमर्थ पाता है। यहां तक कि अपने दोस्तों के साथ रहते हुए भी वह आत्मग्लानि से भर जाता है और अपने शर्ट के तीसरे बटन पर आंखें जमाए खड़ा हो जाता है। चोटी की जिंदगी की कड़वी सच्चाई उसे आहत करती है जबकि ग़ज़ल की खूबसूरत देह और सुलझी बातें उसके मन में घुमड़ते प्रश्नों के काले मेघ को कुछ शांत करते हैं। लेखक ने कहानी में पाठक के अंतर्मन को छुआ है। कहानी का प्रवाह पाठक को बांधे रखता है। बच्चे के नजर से लिखी गई इस कहानी में लेखक ने बड़ी खूबसूरती से अपनी बात भी कही है। जो कहानी का सौंदर्य कई गुना बढ़ा देती है। मानव कौल की सधी और प्रवाहमयी भाषा इस कहानी को मजबूती भी देती है और पठनीय भी बनाती है।
- तुम्हारे बारे में: किसी रिश्ते का क्या होता है जब उसमें शामिल दोनों व्यक्ति अलग-अलग चीजों की आकांक्षा करने लगते हैं? लेखक, अभिनेता और निर्देशक मानव कौल ने अपने नए नाटक में इस विषय की खोज की है, जिसका प्रीमियर इस सप्ताह के अंत में एनसीपीए प्रस्तुति के हिस्से के रूप में होगा। शीर्षक ‘तुम्हारे बारे में’ – कौल की इसी शीर्षक वाली किताब से संबंधित नहीं – कहानी एक जोड़े के इर्द-गिर्द घूमती है जहां पुरुष एक पेंगुइन बनना चाहता है और महिला एक पक्षी बनना चाहती है जो उड़ सकती है। इसे एक प्रायोगिक नाटक बताते हुए कौल कहते हैं कि संक्षेप में, यह टुकड़ा “आप अपने अतीत और भविष्य के साथ एक कैफे में बैठे हैं और कॉफी पी रहे हैं।”
- बहुत दूर कितना दूर होता है: “बहुत दूर कितना दूर होता है” अभिनेता और लेखक मानव कौल की किताब है। किताब हिन्द युग्म प्रकाशन से छपी है।”बहुत दूर कितना दूर होता है” एक यात्रा वृत्तांत है। मई – जून 2019 में मानव कौल ने यूरोप के शहरों की यात्रा की। मानव कौल लंदन, फ्रांस जैसी जगहों पर भी गए। इन जगहों पर मानव कौल जिन जगहों पर ठहरे, जिन लोगों से मिले, जिन अनुभवों से दो चार हुए, उस विषय में मानव कौल ने लिखा है। जगहों के बारे में लिखते वक़्त नव कौल का मुख्य ध्यान शहरों के ऐतिहासिक, कलात्मक, रचनात्मक पक्ष पर रहा है। उन्होंने बताया है कि कौन से शहर में कैसी पेंटिंग्स, पेंटर लोकप्रिय हुए थे। उनकी सामाजिक स्थिति, उनका प्रभाव कैसा था।
- कर्ता ने कर्म से : हम जितने होते हैं वो हमें हमसे कहीं ज़्यादा दिखाती है। कभी एक गुथे पड़े जीवन को कलात्मक कर देती है तो कभी उसके कारण हमें डामर की सड़क के नीचे पगडंडियों का धड़कना सुनाई देने लगता है। वह कविता ही है जो छल को जीवन में पिरोती है और हमें पहली बार अपने ही भीतर बैठा वह व्यक्ति नज़र आता है जो समय और जगह से परे, किसी समानांतर चले आ रहे संसार का हिस्सा है। कविता वो पुल बन जाती है जिसमें हम बहुत आराम से दोनों संसार में विचरण करने लगते हैं। हमें अपनी ही दृष्टि पर यक़ीन नहीं होता, हम अपने ही नीरस संसार को अब इतने अलग और सूक्ष्म तरीक़े से देखने लगते हैं कि हर बात हमारा मनोरंजन करती नज़र आने लगती है। —मानव कौल
- अंतिमा : कभी लगता था कि लंबी यात्राओं के लिए मेरे पेरो को अभी कई और साल का संयम चाहिए। वह एक उम्र होगी जिसमें किसी लंबी यात्रा पर निकला जाएगा। इसलिए अब तक मैं छोटी यात्राएँ ही करता रहा था। यूँ किन्ही छोटी यात्राओं के बीच मैं भटक गया था और मुझे लगने लगा था कि यह छोटी यात्रा मेरे भटकने की वजह से एक लंबी यात्रा में तब्दील हो सकती है। पर इस उत्सुकता के आते ही अगले मोड़ पर ही मुझे उस यात्रा के अंत का रास्ता मिल जाता और मैं फिर उपन्यास की बजाए एक कहानी लेकर घर आ जाता। हर कहानी, उपन्यास हो जाने का सपना अपने भीतर पाले रहती है।
तभी इस महामारी ने सारे बाहर को रोक दिया और इस वजह से सारा भीतर बिखरने लगा। हम तैयार नहीं थे और किसी भी तरह की तैयारी काम नही आ रही थी। जब हमारे, एक तरीक़े के इंतज़ार ने दम तोड़ दिया और इस महामारी को हमने जीने का हिस्सा मान लिया तब मैंने खुद को संयम के दरवाज़े के सामने खड़ा पाया। इस बार भटकने के सारे रास्ते बंद थे, इस बार छोटी यात्रा में लंबी यात्रा का छलावा भी नहीं था। इस बार भीतर घने जंगल का विस्तार था और उस जंगल में हिरन के दिखते रहने का सुख था।
मैंने बिना झिझके संयम का दरवाज़ा खटखटाया और अंतिमा ने अपने खंडहर का दरवाज़ा मेरे लिए खोल दिया। - चलता फिरता प्रेत: बहुत वक़्त से सोच रहा था कि अपनी कहानियों में मृत्यु के इर्द-गिर्द का संसार बुनूँ। ख़त्म कितना हुआ है और कितना बचाकर रख पाया हूँ, इसका लेखा- जोखा कई साल खा चुका था। लिखना कभी पूरा नहीं होता… कुछ वक़्त बाद बस आपको मान लेना होता है कि यह घर अपनी सारी कहानियों के कमरे लिए पूरा है और उसे त्यागने का वक़्त आ चुका है। त्यागने के ठीक पहले, जब अंतिम बार आप उस घर को पलटकर देखते हैं तो वो मृत्यु के बजाय जीवन से भरा हुआ दिखता है। मृत्यु की तरफ़ बढता हुआ, उसके सामने समर्पित-सा और मृत्यु के बाद ख़ाली पड़े गलियारे की नमी-सा जीवन, जिसमें चलते-फिरते प्रेत-सा कोई टहलता हुआ दिखाई देने लगता है और आप पलट जाते हैं। —मानव कौल.
- प्रेम कबूतर : मैं नास्तिक हूँ। कठिन वक़्त में यह मेरी कहानियाँ ही थी जिन्होंने मुझे सहारा दिया है। मैं बचा रह गया अपने लिखने के कारण। मैं हर बार तेज़ धूप में भागकर इस बरगद की छाँव में अपना आसरा पा लेता। इसे भगोड़ापन भी कह सकते हैं, पर यह एक अजीब दुनिया है जो मुझे बेहद आकर्षित करती रही है। इस दुनिया में मुझे अधिकतर हारे हुए पात्र बहुत आकर्षित करते रहे हैं। हारे हुए पात्रों के भीतर एक नाटकीय संसार छिपा हुआ होता जबकि जीत की कहानियाँ मुझे हमेशा बहुत उबा देने वाली लगती हैं। जब भी मैंने अपना कोई लिखा पूरा किया है उसकी मस्ती मेरी चाल में बहुत समय तक बनी रही है।
अगर हम प्रेम पर बात करें तो मैंने उसे पाया अपने जीवन में है पर उसे समझा अपने लिखे में है।-मानव कौल - रूह : मैं जब इस किताब को लिखने, अपनी पूरी नासमझी के साथ कश्मीर पहुँचा तो मुझे वहाँ सिर्फ़ सूखा पथरीला मैदान नज़र आया। जहाँ किसी भी तरह का लेखन संभव नहीं था। पर उन ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए मैंने जिस भी पत्थर को पलटाया उसके नीचे मुझे जीवन दिखा, नमी और प्रेम। मैं कहीं भी बचकर नहीं चला हूँ। जो जैसा है में, जैसा जीवन मैं देखना चाहता हूँ, उसे भी दर्ज करता चलता हूँ। कभी लगता है कि मैं पिता के बारे में लिखना चाहता था और कश्मीर लिख दिया और जब कश्मीर लिखने बैठा तो पिता दिखाई दिए। मेरी सारी यादें वहीं हैं जब हम चीज़ों को छू सकते थे। मैं छू सकता था, अपने पिता को, उनकी खुरदुरी दाढ़ी को, घर की खिड़की को, खिड़की से दिख रहे आसमान को, बुख़ारी को, काँगड़ी को। अब इस बदलती दुनिया में वो सारी पुरानी चीज़ें मेरे हाथों से छूटती जा रही हैं। उन छूटती चीज़ों के साथ-साथ मुझे लगता है मैं ख़ुद को भी खोता चला जा रहा हूँ। आजकल जो भी नई चीज़ें छूता हूँ वो अपने परायेपन की धूल के साथ आती हैं। मैं जितनी भी धूल झाड़ूँ, मुझे अपनापन उन्हीं पुरानी चीज़ों में नज़र आता है। लेकिन जब उनके बारे में लिखने बैठता हूँ तो यक़ीन नहीं होता कि वो मेरे इसी जनम का हिस्सा थीं। —किताब की भूमिका से
- टूटी हुई बिखरी हुई : मुझे हमेशा से लगता रहा था कि जीवन में व्यस्त रहना सबसे मूर्खता का काम है। इस जीवन को मैं जितनी चालाकी से जी सकता था, जी रहा था। कम-से-कम काम करके ज़्यादा-से-ज़्यादा वक़्त ख़ाली रहना मेरे जीने का उद्देश्य था। मैं कुछ न करते वक़्त सबसे ज़्यादा सम पर रहता था। सुरक्षित जीवन की कल्पना में काम करते-करते एक दिन मैं मर नहीं जाना चाहता था। मैं किसी भी तरह की मक्कारी पर उतर सकता था अगर मुझे पता चले कि मेरे दिन बस काम की व्यस्तता में बीतते चले जा रहे हैं।~इसी किताब से
- नई बात कहने की तलाश में किसी भी कहानी के पहले एक लंबी गहरी चुप होती है। हम उसे सन्नाटा नहीं कह सकते हैं। कोरे पन्ने और भीतर पल रहे संसार के बीच संवादों का जमघट लगा होता है। बहुत देर से चली आ रही चुप में संघर्ष नई बात कहने के आश्चर्य का चल रहा होता है। इस चुप और शांत दिख रहे तालाब के भीतर पूरी दुनिया हरकत कर रही होती है। नया कहने में कुछ नए शब्द मुँह से निकलते हैं, पर उन शब्दों में जिए हुए का वज़न कम नज़र आता है। कुछ भी नया कहाँ से आता है? हमारे जिए हुए से ही। पर हमारे जिए हुए की भी एक सीमा है। हमारे जिए हुए के तालाब का दायरा छोटा होता है शायद इसीलिए किसी भी क़िस्म के नए अनुभव का टपकना कभी हमारे कहे में बड़े वृत्त नहीं बना पाता है।(इसी किताब से)
- पतझड़ : मैं बस ये कहना चाह रहा था कि अगर मैं किताब नहीं पढ़ता, अगर मैं इन दोनों जगहों पर नहीं जाता तो शायद मैं पिछली बार की तरह यूँ ही, पूरे म्यूज़ियम से टहलते हुए बाहर निकल आता। पहली बार उनके चित्रों के रंग मुझे अपनी तरफ़ खींच रहे थे, उनके ब्रश स्ट्रोक- अकेलापन, पीड़ा, प्रेम सारे कुछ से सने हुए थे। उनकी हर तस्वीर, तस्वीर बनाने की प्रक्रिया भी साथ लेकर चलती है। मैं उनकी पेंटिंग Weeping Nude के सामने जाने कितनी देर खड़ा रहा! मैं Munch के सारे रंगों को जानता था, वो मेरे जीवन के रंग थे, वो मेरे अकेलेपन, कमीनेपन के रंग थे, अगर कोई पूछे कि गहरी उदासी कैसी होती है तो मैं Munch की किसी पेंटिंग की तरफ़ ही इशारा करूँगा।-इसी उपन्यास से
मानव कौल की इस पुस्तक समूह में, उन्होंने पाठकों को आत्मा और मानव संबंधों की गहराईयों में ले जाने का प्रयास किया है, जिससे पाठक अपने जीवन में सामंजस्य और सार्थकता की खोज में मदद प्राप्त कर सकते हैं।
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Description
मानव कौल की पुस्तकों का सेट, जिसमें ‘ठीक तुम्हारे पीछे’, ‘शर्ट का तिसरा बटन’, ‘तुम्हारे बारे में’, ‘बहुत दूर कितना दूर होता है’, ‘कर्ता ने कर्म से’, ‘अंतिमा’, ‘चलता फिरता प्रेत’, ‘प्रेम कबूतर’, ‘रूह’, ‘तितली’, ‘पतझड़‘, और ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ शामिल हैं, यह सभी पुस्तकें विभिन्न रूपों में आत्मा, प्रेम, और मानवीय संबंधों की गहराईयों को छूने वाली हैं।
- ठीक तुम्हारे पीछे : “ठीक तुम्हारे पीछे” अभिनेता और लेखक मानव कौल का कहानी संग्रह है। कहानी संग्रह में कुल बारह कहानियां हैं।इन कहानियों में एक गहराई है। सब कुछ सतही तौर पर पकड़ में नहीं आता। हर कहानी में शुरुआत, मध्य, अंत, रोचकता, थ्रिलर वाला अंत ढूंढने की कोशिश करेंगे तो आप निराश होंगे। किताब “ठीक तुम्हारे पीछे” की कुछ कहानियों को छोड़ दें तो बाक़ी कहानियां बहुत आसानी से हर समकालीन समाज में रहने वाले, जीने वाले मनुष्य से संबंधित दिखाई पड़ती हैं। मानव कौल की इन कहानियों की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह आतंकित नहीं करतीं। किसी एक विचारधारा का प्रचार नहीं करतीं, कोई क्रांति, बदलाव का झंडा बुलंद नहीं करतीं। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ आज के समाज और इसमें रह रहे लोगों की मनोदशा पर बात करती हैं। एक नौकरीपेशा युवक, एक शादीशुदा युवक, एक तलाक़ की तरफ़ बढ़ रहे दंपति के सामने क्या संघर्ष हैं, क्या मसले हैं, उनकी बातें यह कहानियां करती हैं। हर कहानी में भावनाएं प्रधान हैं। इसलिए सभी कहानियां बहुत कनेक्ट भी करती हैं। किरदार की उदासी, पीड़ा पाठक को महसूस होने लगती है। मानव कौल ने जिस तरह से गम्भीर बातों को भी एक लाइन में, हल्के फुल्के अंदाज़ में कहा है वह सच में बहुत शानदार है। जैसा कि कुछ कहानियां बहुत ज़्यादा लेयर्ड हैं इसलिए एक बार पढ़ने में पता नहीं चलता कि क्या हो रहा है, क्या कहा जा रहा है। आपको एक से अधिक बार पढ़ना पड़ेगा, कहानियों में गहरे उतरने के लिए। पढ़ते हुए हर बार कुछ नया आपके हाथ लगेगा। यदि प्रयोग पसंद करते हैं, कुछ नया पढ़ने की चाहत है तो यह कहानी संग्रह आपको पसंद आएगा।
- शर्ट का तीसरा बटन तीन पक्के दोस्तों राजिल, चोटी और राधे की कहानी है। छठी कक्षा में पढ़ने वाला राजिल संकोची स्वभाव का है। वह किसी भी प्रश्न का सटीक उत्तर देने में स्वयं को असमर्थ पाता है। यहां तक कि अपने दोस्तों के साथ रहते हुए भी वह आत्मग्लानि से भर जाता है और अपने शर्ट के तीसरे बटन पर आंखें जमाए खड़ा हो जाता है। चोटी की जिंदगी की कड़वी सच्चाई उसे आहत करती है जबकि ग़ज़ल की खूबसूरत देह और सुलझी बातें उसके मन में घुमड़ते प्रश्नों के काले मेघ को कुछ शांत करते हैं। लेखक ने कहानी में पाठक के अंतर्मन को छुआ है। कहानी का प्रवाह पाठक को बांधे रखता है। बच्चे के नजर से लिखी गई इस कहानी में लेखक ने बड़ी खूबसूरती से अपनी बात भी कही है। जो कहानी का सौंदर्य कई गुना बढ़ा देती है। मानव कौल की सधी और प्रवाहमयी भाषा इस कहानी को मजबूती भी देती है और पठनीय भी बनाती है।
- तुम्हारे बारे में: किसी रिश्ते का क्या होता है जब उसमें शामिल दोनों व्यक्ति अलग-अलग चीजों की आकांक्षा करने लगते हैं? लेखक, अभिनेता और निर्देशक मानव कौल ने अपने नए नाटक में इस विषय की खोज की है, जिसका प्रीमियर इस सप्ताह के अंत में एनसीपीए प्रस्तुति के हिस्से के रूप में होगा। शीर्षक ‘तुम्हारे बारे में’ – कौल की इसी शीर्षक वाली किताब से संबंधित नहीं – कहानी एक जोड़े के इर्द-गिर्द घूमती है जहां पुरुष एक पेंगुइन बनना चाहता है और महिला एक पक्षी बनना चाहती है जो उड़ सकती है। इसे एक प्रायोगिक नाटक बताते हुए कौल कहते हैं कि संक्षेप में, यह टुकड़ा “आप अपने अतीत और भविष्य के साथ एक कैफे में बैठे हैं और कॉफी पी रहे हैं।”
- बहुत दूर कितना दूर होता है: “बहुत दूर कितना दूर होता है” अभिनेता और लेखक मानव कौल की किताब है। किताब हिन्द युग्म प्रकाशन से छपी है।”बहुत दूर कितना दूर होता है” एक यात्रा वृत्तांत है। मई – जून 2019 में मानव कौल ने यूरोप के शहरों की यात्रा की। मानव कौल लंदन, फ्रांस जैसी जगहों पर भी गए। इन जगहों पर मानव कौल जिन जगहों पर ठहरे, जिन लोगों से मिले, जिन अनुभवों से दो चार हुए, उस विषय में मानव कौल ने लिखा है। जगहों के बारे में लिखते वक़्त नव कौल का मुख्य ध्यान शहरों के ऐतिहासिक, कलात्मक, रचनात्मक पक्ष पर रहा है। उन्होंने बताया है कि कौन से शहर में कैसी पेंटिंग्स, पेंटर लोकप्रिय हुए थे। उनकी सामाजिक स्थिति, उनका प्रभाव कैसा था।
- कर्ता ने कर्म से : हम जितने होते हैं वो हमें हमसे कहीं ज़्यादा दिखाती है। कभी एक गुथे पड़े जीवन को कलात्मक कर देती है तो कभी उसके कारण हमें डामर की सड़क के नीचे पगडंडियों का धड़कना सुनाई देने लगता है। वह कविता ही है जो छल को जीवन में पिरोती है और हमें पहली बार अपने ही भीतर बैठा वह व्यक्ति नज़र आता है जो समय और जगह से परे, किसी समानांतर चले आ रहे संसार का हिस्सा है। कविता वो पुल बन जाती है जिसमें हम बहुत आराम से दोनों संसार में विचरण करने लगते हैं। हमें अपनी ही दृष्टि पर यक़ीन नहीं होता, हम अपने ही नीरस संसार को अब इतने अलग और सूक्ष्म तरीक़े से देखने लगते हैं कि हर बात हमारा मनोरंजन करती नज़र आने लगती है। —मानव कौल
- अंतिमा : कभी लगता था कि लंबी यात्राओं के लिए मेरे पेरो को अभी कई और साल का संयम चाहिए। वह एक उम्र होगी जिसमें किसी लंबी यात्रा पर निकला जाएगा। इसलिए अब तक मैं छोटी यात्राएँ ही करता रहा था। यूँ किन्ही छोटी यात्राओं के बीच मैं भटक गया था और मुझे लगने लगा था कि यह छोटी यात्रा मेरे भटकने की वजह से एक लंबी यात्रा में तब्दील हो सकती है। पर इस उत्सुकता के आते ही अगले मोड़ पर ही मुझे उस यात्रा के अंत का रास्ता मिल जाता और मैं फिर उपन्यास की बजाए एक कहानी लेकर घर आ जाता। हर कहानी, उपन्यास हो जाने का सपना अपने भीतर पाले रहती है।
तभी इस महामारी ने सारे बाहर को रोक दिया और इस वजह से सारा भीतर बिखरने लगा। हम तैयार नहीं थे और किसी भी तरह की तैयारी काम नही आ रही थी। जब हमारे, एक तरीक़े के इंतज़ार ने दम तोड़ दिया और इस महामारी को हमने जीने का हिस्सा मान लिया तब मैंने खुद को संयम के दरवाज़े के सामने खड़ा पाया। इस बार भटकने के सारे रास्ते बंद थे, इस बार छोटी यात्रा में लंबी यात्रा का छलावा भी नहीं था। इस बार भीतर घने जंगल का विस्तार था और उस जंगल में हिरन के दिखते रहने का सुख था।
मैंने बिना झिझके संयम का दरवाज़ा खटखटाया और अंतिमा ने अपने खंडहर का दरवाज़ा मेरे लिए खोल दिया। - चलता फिरता प्रेत: बहुत वक़्त से सोच रहा था कि अपनी कहानियों में मृत्यु के इर्द-गिर्द का संसार बुनूँ। ख़त्म कितना हुआ है और कितना बचाकर रख पाया हूँ, इसका लेखा- जोखा कई साल खा चुका था। लिखना कभी पूरा नहीं होता… कुछ वक़्त बाद बस आपको मान लेना होता है कि यह घर अपनी सारी कहानियों के कमरे लिए पूरा है और उसे त्यागने का वक़्त आ चुका है। त्यागने के ठीक पहले, जब अंतिम बार आप उस घर को पलटकर देखते हैं तो वो मृत्यु के बजाय जीवन से भरा हुआ दिखता है। मृत्यु की तरफ़ बढता हुआ, उसके सामने समर्पित-सा और मृत्यु के बाद ख़ाली पड़े गलियारे की नमी-सा जीवन, जिसमें चलते-फिरते प्रेत-सा कोई टहलता हुआ दिखाई देने लगता है और आप पलट जाते हैं। —मानव कौल.
- प्रेम कबूतर : मैं नास्तिक हूँ। कठिन वक़्त में यह मेरी कहानियाँ ही थी जिन्होंने मुझे सहारा दिया है। मैं बचा रह गया अपने लिखने के कारण। मैं हर बार तेज़ धूप में भागकर इस बरगद की छाँव में अपना आसरा पा लेता। इसे भगोड़ापन भी कह सकते हैं, पर यह एक अजीब दुनिया है जो मुझे बेहद आकर्षित करती रही है। इस दुनिया में मुझे अधिकतर हारे हुए पात्र बहुत आकर्षित करते रहे हैं। हारे हुए पात्रों के भीतर एक नाटकीय संसार छिपा हुआ होता जबकि जीत की कहानियाँ मुझे हमेशा बहुत उबा देने वाली लगती हैं। जब भी मैंने अपना कोई लिखा पूरा किया है उसकी मस्ती मेरी चाल में बहुत समय तक बनी रही है।
अगर हम प्रेम पर बात करें तो मैंने उसे पाया अपने जीवन में है पर उसे समझा अपने लिखे में है।-मानव कौल - रूह : मैं जब इस किताब को लिखने, अपनी पूरी नासमझी के साथ कश्मीर पहुँचा तो मुझे वहाँ सिर्फ़ सूखा पथरीला मैदान नज़र आया। जहाँ किसी भी तरह का लेखन संभव नहीं था। पर उन ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए मैंने जिस भी पत्थर को पलटाया उसके नीचे मुझे जीवन दिखा, नमी और प्रेम। मैं कहीं भी बचकर नहीं चला हूँ। जो जैसा है में, जैसा जीवन मैं देखना चाहता हूँ, उसे भी दर्ज करता चलता हूँ। कभी लगता है कि मैं पिता के बारे में लिखना चाहता था और कश्मीर लिख दिया और जब कश्मीर लिखने बैठा तो पिता दिखाई दिए। मेरी सारी यादें वहीं हैं जब हम चीज़ों को छू सकते थे। मैं छू सकता था, अपने पिता को, उनकी खुरदुरी दाढ़ी को, घर की खिड़की को, खिड़की से दिख रहे आसमान को, बुख़ारी को, काँगड़ी को। अब इस बदलती दुनिया में वो सारी पुरानी चीज़ें मेरे हाथों से छूटती जा रही हैं। उन छूटती चीज़ों के साथ-साथ मुझे लगता है मैं ख़ुद को भी खोता चला जा रहा हूँ। आजकल जो भी नई चीज़ें छूता हूँ वो अपने परायेपन की धूल के साथ आती हैं। मैं जितनी भी धूल झाड़ूँ, मुझे अपनापन उन्हीं पुरानी चीज़ों में नज़र आता है। लेकिन जब उनके बारे में लिखने बैठता हूँ तो यक़ीन नहीं होता कि वो मेरे इसी जनम का हिस्सा थीं। —किताब की भूमिका से
- टूटी हुई बिखरी हुई : मुझे हमेशा से लगता रहा था कि जीवन में व्यस्त रहना सबसे मूर्खता का काम है। इस जीवन को मैं जितनी चालाकी से जी सकता था, जी रहा था। कम-से-कम काम करके ज़्यादा-से-ज़्यादा वक़्त ख़ाली रहना मेरे जीने का उद्देश्य था। मैं कुछ न करते वक़्त सबसे ज़्यादा सम पर रहता था। सुरक्षित जीवन की कल्पना में काम करते-करते एक दिन मैं मर नहीं जाना चाहता था। मैं किसी भी तरह की मक्कारी पर उतर सकता था अगर मुझे पता चले कि मेरे दिन बस काम की व्यस्तता में बीतते चले जा रहे हैं।~इसी किताब से
- नई बात कहने की तलाश में किसी भी कहानी के पहले एक लंबी गहरी चुप होती है। हम उसे सन्नाटा नहीं कह सकते हैं। कोरे पन्ने और भीतर पल रहे संसार के बीच संवादों का जमघट लगा होता है। बहुत देर से चली आ रही चुप में संघर्ष नई बात कहने के आश्चर्य का चल रहा होता है। इस चुप और शांत दिख रहे तालाब के भीतर पूरी दुनिया हरकत कर रही होती है। नया कहने में कुछ नए शब्द मुँह से निकलते हैं, पर उन शब्दों में जिए हुए का वज़न कम नज़र आता है। कुछ भी नया कहाँ से आता है? हमारे जिए हुए से ही। पर हमारे जिए हुए की भी एक सीमा है। हमारे जिए हुए के तालाब का दायरा छोटा होता है शायद इसीलिए किसी भी क़िस्म के नए अनुभव का टपकना कभी हमारे कहे में बड़े वृत्त नहीं बना पाता है।(इसी किताब से)
- पतझड़ : मैं बस ये कहना चाह रहा था कि अगर मैं किताब नहीं पढ़ता, अगर मैं इन दोनों जगहों पर नहीं जाता तो शायद मैं पिछली बार की तरह यूँ ही, पूरे म्यूज़ियम से टहलते हुए बाहर निकल आता। पहली बार उनके चित्रों के रंग मुझे अपनी तरफ़ खींच रहे थे, उनके ब्रश स्ट्रोक- अकेलापन, पीड़ा, प्रेम सारे कुछ से सने हुए थे। उनकी हर तस्वीर, तस्वीर बनाने की प्रक्रिया भी साथ लेकर चलती है। मैं उनकी पेंटिंग Weeping Nude के सामने जाने कितनी देर खड़ा रहा! मैं Munch के सारे रंगों को जानता था, वो मेरे जीवन के रंग थे, वो मेरे अकेलेपन, कमीनेपन के रंग थे, अगर कोई पूछे कि गहरी उदासी कैसी होती है तो मैं Munch की किसी पेंटिंग की तरफ़ ही इशारा करूँगा।-इसी उपन्यास से
मानव कौल की इस पुस्तक समूह में, उन्होंने पाठकों को आत्मा और मानव संबंधों की गहराईयों में ले जाने का प्रयास किया है, जिससे पाठक अपने जीवन में सामंजस्य और सार्थकता की खोज में मदद प्राप्त कर सकते हैं।
About Author
मानव कौल एक प्रमुख भारतीय लेखक और अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने अनूठे रचनात्मक दृष्टिकोण के लिए पहचान बनाई है। उनका जन्म 1976 में हुआ था और उन्होंने अपनी करियर की शुरुआत अभिनय से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भी चर्चा में आने का कारण बनाया।कौल की रचनाएं आत्मा, प्रेम, और मानवीय संबंधों पर आधारित हैं, जो उन्हें एक अद्वितीय स्थान पर ले जाती हैं। उनकी छंददार लेखनी और भावनात्मक दृष्टिकोण के कारण उन्होंने साहित्यिक जगत में अपनी पहचान बनाई है। उनकी प्रस्तुतियाँ अपने पाठकों को जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं और उन्हें आत्मा के साथ संबंधित गहरे विचारों में ले जाती हैं।
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