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Manav Charitra Ke Vyangya

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. Giriraj Sharan
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Dr. Giriraj Sharan
Language:
Hindi
Format:
Hardback

300

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Book Type

ISBN:
SKU 9789352664054 Categories , Tag
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Page Extent:
142

अभी-अभी मेरे सामने गिरगिट नाम का एक जंतु उभरा है। वह बालिश्त भर का आकार लिये, बेरी के पेड़ की पतली सी टहनी से चिपका हुआ है। मैं उसकी तरफ ध्यान से देखता हूँ। यह क्या? कभी उसके शरीर का हर हिस्सा लाल हो जाता है, कभी हरा, कभी पीला। यह हर पल रंग कैसे बदल लेता है? मैं अपने आप से यह प्रश्न बार-बार पूछता हूँ। भीतर से आई कोई अजनबी सी आवाज मुझे चौंका देती है। गिरगिट ठीक ऐसे ही रंग बदलता है, जैसे आदमी। बस, अंतर इतना है कि गिरगिट बेचारे के रंग दिखाई दे जाते हैं, आदमी के रंग दिखाई नहीं देते। आदमी से अधिक ‘टेक्नीकलर’ चीज तो दुनिया में कोई है नहीं। आदमी तो वह प्राणी है, जो रंग तो बदलता है, पर गिरगिट की भाँति उसका प्रदर्शन नहीं करता। गिरगिट के रंगों से आदमी को कोई खतरा नहीं, पर आदमी के रंग से? गिरगिट के भीतर जितने रंग हैं और जितने रंग वह बदलता है, वे कम-से-कम सब गिरगिटों में एक जैसे होते हैं, पर आदमी और आदमी के रंगों में तो जमीन-आसमान का अंतर है। भगवान्दत्त के जो रंग-ढंग हैं वे ईश्वरप्रसाद के नहीं और ईश्वरप्रसाद के जो रंग-ढंग हैं, वे परमात्माशरण के नहीं, और परमात्माशरण के जो हाव-भाव हैं, वे ब्रह्मानंद के नहीं। कम-से-कम एक गिरगिट और दूसरा गिरगिट अपनी अंतरात्मा में तो एक है। गिरगिट-गिरगिट में समानता और आदमी-आदमी में असमानता। मानव चरित्र के गिरते ग्राफ पर तीखी चोट करनेवाले ये व्यंग्य आदमी के चेहरे को बेनकाब करते हैं।.

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Description

अभी-अभी मेरे सामने गिरगिट नाम का एक जंतु उभरा है। वह बालिश्त भर का आकार लिये, बेरी के पेड़ की पतली सी टहनी से चिपका हुआ है। मैं उसकी तरफ ध्यान से देखता हूँ। यह क्या? कभी उसके शरीर का हर हिस्सा लाल हो जाता है, कभी हरा, कभी पीला। यह हर पल रंग कैसे बदल लेता है? मैं अपने आप से यह प्रश्न बार-बार पूछता हूँ। भीतर से आई कोई अजनबी सी आवाज मुझे चौंका देती है। गिरगिट ठीक ऐसे ही रंग बदलता है, जैसे आदमी। बस, अंतर इतना है कि गिरगिट बेचारे के रंग दिखाई दे जाते हैं, आदमी के रंग दिखाई नहीं देते। आदमी से अधिक ‘टेक्नीकलर’ चीज तो दुनिया में कोई है नहीं। आदमी तो वह प्राणी है, जो रंग तो बदलता है, पर गिरगिट की भाँति उसका प्रदर्शन नहीं करता। गिरगिट के रंगों से आदमी को कोई खतरा नहीं, पर आदमी के रंग से? गिरगिट के भीतर जितने रंग हैं और जितने रंग वह बदलता है, वे कम-से-कम सब गिरगिटों में एक जैसे होते हैं, पर आदमी और आदमी के रंगों में तो जमीन-आसमान का अंतर है। भगवान्दत्त के जो रंग-ढंग हैं वे ईश्वरप्रसाद के नहीं और ईश्वरप्रसाद के जो रंग-ढंग हैं, वे परमात्माशरण के नहीं, और परमात्माशरण के जो हाव-भाव हैं, वे ब्रह्मानंद के नहीं। कम-से-कम एक गिरगिट और दूसरा गिरगिट अपनी अंतरात्मा में तो एक है। गिरगिट-गिरगिट में समानता और आदमी-आदमी में असमानता। मानव चरित्र के गिरते ग्राफ पर तीखी चोट करनेवाले ये व्यंग्य आदमी के चेहरे को बेनकाब करते हैं।.

About Author

जन्म: 14 जुलाई, 1944; संभल (मुरादाबाद) उ.प्र.। शिक्षा: एम.ए., पी-एच.डी. (हिंदी)। विधाएँ ड्डः गीत, गजल, कहानी, एकांकी, निबंध, हास्य-व्यंग्य, बाल साहित्य एवं समालोचना। मौलिक-लेखन: गजल, व्यंग्य, ललित निबंध, समसामयिक विषयों पर तीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। समग्र लेखन ग्यारह खंडों में प्रकाशित। संपादन के क्षेत्र में अपूर्व योगदान: चालीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित होकर बहुचर्चित-बहुप्रशंसित। पत्रकारिता: प्रधान संपादक ‘शोध दिशा’। पुरस्कार-सम्मान: केंद्रीय एवं राज्य स्तर पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित। शोधकार्य: डॉ. अग्रवाल के साहित्य पर देश के विविध विश्वविद्यालयों में 15 से अधिक शोधकार्य संपन्न हो चुके हैं।

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