Main Aryaputra Hoon

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Manoj Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Manoj Singh
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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‘‘हे आर्य! कोई बाहरी आक्रमणकारी जब किसी अन्य देश में प्रवेश करता है तो बाहर से भीतर आता है या भीतर से बाहर जाता है?’’ ‘‘यह कैसा प्रश्न हुआ, आर्या! स्वाभाविक रूप से बाहर से भीतर आता है।’’ ‘‘और इसी स्वाभाविक तर्क के आधार पर ही मैं भी एक प्रश्न पूछना चाहूँगी। अगर यह मान लिया जाए कि हम आर्य बाहर से आए थे तो पश्चिम दिशा से प्रवेश करने पर सर्वप्रथम सिंधु के तट पर बसना चाहिए था और फिर पूरब दिशा की ओर बढ़ना चाहिए था। लेकिन वेद और पुरातत्त्व के प्रमाण कहते हैं कि हम आर्य पहले सरस्वती के तट पर बसे थे, फिर सिंधु की ओर बढ़े। यही नहीं, सरस्वती काल से भी पहले हम आर्यों का इतिहास विश्व की प्राचीनतम नगरी शिव की काशी और मनु की अयोध्या से संबंधित रहा है। और ये दोनों नगर भारत भूखंड के भीतर सरस्वती नदी की पूरब दिशा में हैं अर्थात् हम आर्य पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बढ़े थे।…तो फिर ये कैसे बाहरी (?) आर्य थे जो भीतर से बाहर (!!) की ओर बढ़े थे।…झूठ के पाँव नहीं होते हैं आर्य, ये झूठे इतिहासकार आपके प्रामाणिक प्रश्नों के उत्तर क्या ही देंगे, जब ये मेरे इस सरल तर्क और सामान्य तथ्य पर बात नहीं कर सकते।’’ ‘‘असाधारण तर्क आर्या!’’.

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Description

‘‘हे आर्य! कोई बाहरी आक्रमणकारी जब किसी अन्य देश में प्रवेश करता है तो बाहर से भीतर आता है या भीतर से बाहर जाता है?’’ ‘‘यह कैसा प्रश्न हुआ, आर्या! स्वाभाविक रूप से बाहर से भीतर आता है।’’ ‘‘और इसी स्वाभाविक तर्क के आधार पर ही मैं भी एक प्रश्न पूछना चाहूँगी। अगर यह मान लिया जाए कि हम आर्य बाहर से आए थे तो पश्चिम दिशा से प्रवेश करने पर सर्वप्रथम सिंधु के तट पर बसना चाहिए था और फिर पूरब दिशा की ओर बढ़ना चाहिए था। लेकिन वेद और पुरातत्त्व के प्रमाण कहते हैं कि हम आर्य पहले सरस्वती के तट पर बसे थे, फिर सिंधु की ओर बढ़े। यही नहीं, सरस्वती काल से भी पहले हम आर्यों का इतिहास विश्व की प्राचीनतम नगरी शिव की काशी और मनु की अयोध्या से संबंधित रहा है। और ये दोनों नगर भारत भूखंड के भीतर सरस्वती नदी की पूरब दिशा में हैं अर्थात् हम आर्य पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बढ़े थे।…तो फिर ये कैसे बाहरी (?) आर्य थे जो भीतर से बाहर (!!) की ओर बढ़े थे।…झूठ के पाँव नहीं होते हैं आर्य, ये झूठे इतिहासकार आपके प्रामाणिक प्रश्नों के उत्तर क्या ही देंगे, जब ये मेरे इस सरल तर्क और सामान्य तथ्य पर बात नहीं कर सकते।’’ ‘‘असाधारण तर्क आर्या!’’.

About Author

मनोज सिंह जन्म: 1 सितंबर, 1964 को आगरा (उ.प्र.) में। शैक्षणिक योग्यताएँ: बी.ई. इलेक्ट्रॉनिक्स, एम.बी.ए.। विभिन्न विश्वविद्यालयों, इंजीनियरिंग कॉलेज, मैनेजमेंट कोर्स एवं मास-कम्युनिकेशन से संबंधित शिक्षण संस्थानों में विशेषज्ञ व्याख्यान के लिए आमंत्रित। प्रकाशित पुस्तकें: ‘चंद्रिकोत्सव’ (खंडकाव्य); ‘बंधन’, ‘कशमकश’, ‘हॉस्टल के पन्नों से’ (उपन्यास); ‘व्यक्तित्व का प्रभाव’, ‘चिंता नहीं चिंतन’ (लेख-संकलन); ‘मेरी पहचान’ (कहानी-संग्रह); ‘स्वर्ग यात्रा’ (कश्मीर से लद्दाख तक की यात्रा), ‘दुबई: सपनों का शहर’ तथा ‘वैदिक सनातन हिंदुत्व’।

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