Mahatma Gandhi – Pratham Darshan : Pratham Anubhuti

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Shanker Dayal Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Shanker Dayal Singh
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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‘महात्मा गांधी-प्रथम दर्शन: प्रथम अनुभूति’ कोई पुस्तक मात्र न होकर उन अनुभूतियों का संचय है जो हमारे लिए ऐतिहासिक धरोहर हैं। गांधीजी को जिन आँखों ने देखा, जिन कानों ने सुना तथा जिन्होंने उस महामानव के साथ अपने को संबद्ध किया उनमें से अधिकांश अब हमारे बीच नहीं हैं, और जो कुछ हैं भी वे भी कुछ वर्षों के मेहमान होंगे। गांधीजी की मृ‌त्यु पर अपनी श्रद्धांजलि में महान‍् वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था—आनेवाली पीढ़ी मु‌श्क‌िल से यह विश्‍वास कर सकेगी कि हमारे बीच हाड़-मांस का चलता-फिरता एक ऐसा भी पुतला था। निश्‍चय ही उस कथ्य के दस्तावेजी सत्य के रूप में यह पुस्तक सदियों तक मार्गदर्शन का काम करेगी। ‘माहत्मा गांधी-प्रथम दर्शन: प्रथम अनुभूति’ उन क्षणों का अभिषेक करतीहै जिनमें एक सौ के लगभग अनेक क्षेत्र के लोगों ने गांधीजी का प्रथम दर्शन किया और उन अनुभूतियों को व्यक्‍त किया। ऐसे लोगों में पूज्य राजेंद्र बाबू, रामदयाल साह और रामनवमी प्रसाद जैसे लोग हैं‌ जिन्‍होंने 1917 में गांधीजी के साथ काम किया और इस ग्रंथ के संपादक श्री शंकरदयाल सिंह हैं, जिन्होंने 1947 में गांधीजी के साथ काम किया और इस ग्रंथ के संपादक श्री शंकरदयाल सिंह हैं, जिन्‍होंने 1947 में पूज्य बापू के दर्शन किए। जैसे कोई सधा हुआ माली बाग के अनेक फूलों का गुच्‍छ बनाकर एक मोहक गुलदस्‍ता तैयार करता है, वैसे ही यह पुस्तक अनुभूतियों का दस्तावेजी गुच्छ है। गाँधीजी की 125वीं जयंती के अवसर पर इस पुस्तक का संयोजन-प्रकाशन एक विनम्र श्रद्धांजलि है|

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‘महात्मा गांधी-प्रथम दर्शन: प्रथम अनुभूति’ कोई पुस्तक मात्र न होकर उन अनुभूतियों का संचय है जो हमारे लिए ऐतिहासिक धरोहर हैं। गांधीजी को जिन आँखों ने देखा, जिन कानों ने सुना तथा जिन्होंने उस महामानव के साथ अपने को संबद्ध किया उनमें से अधिकांश अब हमारे बीच नहीं हैं, और जो कुछ हैं भी वे भी कुछ वर्षों के मेहमान होंगे। गांधीजी की मृ‌त्यु पर अपनी श्रद्धांजलि में महान‍् वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था—आनेवाली पीढ़ी मु‌श्क‌िल से यह विश्‍वास कर सकेगी कि हमारे बीच हाड़-मांस का चलता-फिरता एक ऐसा भी पुतला था। निश्‍चय ही उस कथ्य के दस्तावेजी सत्य के रूप में यह पुस्तक सदियों तक मार्गदर्शन का काम करेगी। ‘माहत्मा गांधी-प्रथम दर्शन: प्रथम अनुभूति’ उन क्षणों का अभिषेक करतीहै जिनमें एक सौ के लगभग अनेक क्षेत्र के लोगों ने गांधीजी का प्रथम दर्शन किया और उन अनुभूतियों को व्यक्‍त किया। ऐसे लोगों में पूज्य राजेंद्र बाबू, रामदयाल साह और रामनवमी प्रसाद जैसे लोग हैं‌ जिन्‍होंने 1917 में गांधीजी के साथ काम किया और इस ग्रंथ के संपादक श्री शंकरदयाल सिंह हैं, जिन्होंने 1947 में गांधीजी के साथ काम किया और इस ग्रंथ के संपादक श्री शंकरदयाल सिंह हैं, जिन्‍होंने 1947 में पूज्य बापू के दर्शन किए। जैसे कोई सधा हुआ माली बाग के अनेक फूलों का गुच्‍छ बनाकर एक मोहक गुलदस्‍ता तैयार करता है, वैसे ही यह पुस्तक अनुभूतियों का दस्तावेजी गुच्छ है। गाँधीजी की 125वीं जयंती के अवसर पर इस पुस्तक का संयोजन-प्रकाशन एक विनम्र श्रद्धांजलि है|

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‘महात्मा गांधी-प्रथम दर्शन: प्रथम अनुभति’ के संपादक श्री शंकरदयाल सिंह का नाम साहित्य और राजनीति के लिए अपरिचित नहीं है। गांधीवादी चिंतक, बहुचर्चित साहित्यकार और प्रतिष्‍ठ‌ित राजनेता के रूप में उन्हें देश में जो आदर प्राप्‍त है उसे वे अपने जीवन की सबसे बड़ी पूँजी मानते हैं। श्री शंकरदयाल सिंह जहाँ एक सक्रिय सांसद के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं, वहीं लेखन की निरंतरता के प्रतीक भी मानते जाते हैं। उनके जीवन की मुख्य रूप से दो ही प्रतिबद्धताएँ हैं—राष्‍ट्रपिता और राष्‍ट्रभाषा। इस संग्रह के द्वासरा आनेवाली पीढ़ियों के लिए जो जाग्रत संदेश है उसका सही मूल्यांकन आज से बीस-पचीस वर्षों बाद होगा जब गांधीजी को अपनी आँखोंदेखे, शायद ही कोई व्यक्‍त‌ि इस दुनिया में मौजूद हों|

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