Khilkhilata Bachapan : Aadaten aur Sanskar

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Veena Srivastava
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
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Veena Srivastava
Language:
Hindi
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Hardback

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जैसे कुम्हार गीली मिट्टी से मनचाहा आकार गढ़ता है, फिर उन्हें पक्का करने के लिए भट्ठी में पकाता है, वैसे ही बच्चे भी गीली मिट्टी हैं, जिन्हें आप बेहतर व मनचाहे आकार में ढाल सकते हैं। उन्हें पक्का करने के लिए आपको भी उन्हें समय और व्यावहारिकता की भट्ठी में पकाना होगा। तभी वे मजबूत बनेंगे। यह आप पर निर्भर है कि आप गीली मिट्टी से घड़ा, सुराही, गमला बनाते हैं या सजावटी सामान। मान लीजिए, आपने सुराही बनाई, मगर व्यस्तता के चलते उसकी फिनिशिंग नहीं कर सके या चाक से उतारते समय ध्यान भटक जाए, धागा टूट जाए. तो किसी भी सूरत में बिगड़ेगा उस सुराही का ही रूप-स्वरूप। जब तक आपका ध्यान जाएगा, सुराही बिगड़े रूप में ढल चुकी होगी। बच्चे बहता पानी भी हैं। जैसे जलधारा अपना रास्ता खुद बना लेती है; जिधर भी राह मिलती है, उधर ही चल पड़ती है, वैसे ही बच्चे भी अपना रास्ता तलाश लेते हैं—सही या गलत वे नहीं जानते। बच्चों को उनका रास्ता चुनने में मदद कीजिए। बच्चों के मन में अभिभावकों के प्रति डर नहीं, बल्कि प्यार-सम्मान होना चाहिए। हमारी असली संपत्ति बच्चे ही हैं। अगर उनको सही दिशा मिल गई तो हम सबसे अमीर और खुशकिस्मत हैं। यदि वही लायक न बनें तो भले ही हमारे पास महल हो, मगर हम कंगाल से भी बदतर हैं। बच्चे आपके हैं तो जिम्मेदारी भी आपकी ही है कि उनमें बचपन से ही अच्छी आदतें और संस्कार डालें। आदतें-संस्कार कोई घुट्टी नहीं कि घोटकर पिला दें। यह शुरुआत बचपन से ही होती है, जो आपको करनी है। बच्चों में अच्छे विचार और संस्कार पैदा करने के लिए हर माता-पिता के पढ़ने योग्य एक आवश्यक पुस्तक।.

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जैसे कुम्हार गीली मिट्टी से मनचाहा आकार गढ़ता है, फिर उन्हें पक्का करने के लिए भट्ठी में पकाता है, वैसे ही बच्चे भी गीली मिट्टी हैं, जिन्हें आप बेहतर व मनचाहे आकार में ढाल सकते हैं। उन्हें पक्का करने के लिए आपको भी उन्हें समय और व्यावहारिकता की भट्ठी में पकाना होगा। तभी वे मजबूत बनेंगे। यह आप पर निर्भर है कि आप गीली मिट्टी से घड़ा, सुराही, गमला बनाते हैं या सजावटी सामान। मान लीजिए, आपने सुराही बनाई, मगर व्यस्तता के चलते उसकी फिनिशिंग नहीं कर सके या चाक से उतारते समय ध्यान भटक जाए, धागा टूट जाए. तो किसी भी सूरत में बिगड़ेगा उस सुराही का ही रूप-स्वरूप। जब तक आपका ध्यान जाएगा, सुराही बिगड़े रूप में ढल चुकी होगी। बच्चे बहता पानी भी हैं। जैसे जलधारा अपना रास्ता खुद बना लेती है; जिधर भी राह मिलती है, उधर ही चल पड़ती है, वैसे ही बच्चे भी अपना रास्ता तलाश लेते हैं—सही या गलत वे नहीं जानते। बच्चों को उनका रास्ता चुनने में मदद कीजिए। बच्चों के मन में अभिभावकों के प्रति डर नहीं, बल्कि प्यार-सम्मान होना चाहिए। हमारी असली संपत्ति बच्चे ही हैं। अगर उनको सही दिशा मिल गई तो हम सबसे अमीर और खुशकिस्मत हैं। यदि वही लायक न बनें तो भले ही हमारे पास महल हो, मगर हम कंगाल से भी बदतर हैं। बच्चे आपके हैं तो जिम्मेदारी भी आपकी ही है कि उनमें बचपन से ही अच्छी आदतें और संस्कार डालें। आदतें-संस्कार कोई घुट्टी नहीं कि घोटकर पिला दें। यह शुरुआत बचपन से ही होती है, जो आपको करनी है। बच्चों में अच्छे विचार और संस्कार पैदा करने के लिए हर माता-पिता के पढ़ने योग्य एक आवश्यक पुस्तक।.

About Author

वीना श्रीवास्तव शिक्षा: एम.ए. (हिंदी, अंग्रेजी)। प्रकाशन: तुम और मैं, मचलते ख्वाब, लड़कियाँ (कविता-संग्रह); शब्द संवाद (संपादन); अनुगूँज, खामोश, खामोशी और हम, ख्वाब ईसा हुए, साँसे सुकरात (साझा संकलन); हैरिटेज झारखंड की पत्रिका ‘भोर’ की संपादक। सम्मान-पुरस्कार: ‘प्रमोद वर्मा युवा सम्मान’ (इजिप्ट), ‘साहित्य सरिता सम्मान’ (हंगरी), ‘साहित्य सरोज और शिक्षा प्रेरक सम्मान’, ‘सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान’, ‘नारी गौरव सम्मान’, ‘शिक्षा-साहित्य सेवा सम्मान’, ‘उत्कृष्ट कला सम्मान’ तथा अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत। अध्यक्ष—शब्दकार, सचिव—राष्ट्रीय कवि संगम (ग्रेटर राँची इकाई), सचिव (साहित्य)—हेरिटेज झारखंड, कार्यकारिणी सदस्य—एकल अभियान, कार्यकारिणी सदस्य—नारायणी साहित्य अकादमी, आजीवन सदस्य—झारखंड हिंदी साहित्य संस्कृति मंच। संप्रति: सदस्य (झारखंड), पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की कार्यकारी पार्षद।

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