Jhagra Niptarak Daftar

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Suryabala
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Suryabala
Language:
Hindi
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Hardback

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झगड़ा निपटारक दफ्तर—सूर्यबाला ”आप दोनों यहाँ झगड़ा निपटाने आई हैं?’ ’ ”और नहीं तो क्या मक्खी मारने आई हैं?’ ’ चिक्की ने चिढ़कर जवाब दिया। इस पर कुन्नी और मोना को भी बहुत गुस्सा आया। दफ्तर में थीं, नहीं तो बतातीं इस शैतान लड़की को! और चिक्की की तो आदत ही यह थी। अगर उससे पूछा जाता, ‘तुमने खाना खा लिया?’ तो वह ‘हाँ’ कहने के बदले कहती, ‘और नहीं तो क्या मैं भूखी बैठी हूँ!’ अगर सवाल होता—’क्या तुम आज अपनी मम्मी के साथ बाजार गई थी?’ तो वह जवाब देती—’और नहीं तो क्या तुम्हारी मम्मी के साथ जाऊँगी?’ कोई पूछता—’चिक्की! ये तुम्हारे कान के बूँदे सोने के हैं?’ तो फौरन कहती—’और नहीं तो क्या तुम्हारी तरह पीतल के हैं?’ मतलब वह हर बात में, हर शब्द में झगड़े का इंजेक्शन लिये रहती। इस बार कुन्नी बोली, ”पूरी बात बताइए झगड़े की।’ ’ चिक्की ही फिर बोली, ”बताना क्या है, इसने मेरे पैर की चटनी बना दी तो मैं इसे पीटूँगी ही।’ ’ दूसरे दफ्तर में बैठे बिल्लू ने सिर्फ चटनी ही सुना, फौरन बोला, ”देखो, मैं कहता था न, आम की मीठी चटनी है इनके पास।’ ’ इस पर सोनू गुर्राई—”मैंने जान-बूझकर इसका पैर नहीं कुचला था।’ ’ चिक्की गुस्साई—”जान-बूझकर नहीं कुचला था तो क्या अनजाने कुचला था? मेरा पैर कोई सूई-धागा था, जो तुझे दिखता नहीं था?’ ’ —इसी संग्रह से सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ. सूर्यबाला ने बड़ों के लिए ही नहीं, वरन् बच्चों के लिए भी विपुल मात्रा में साहित्य का सृजन किया है। प्रस्तुत है, बच्चों के लिए लिखीं उनकी हास्य-व्यंग्यपूर्ण कुछ चुटीली तथा मन को छूनेवाली रचनाएँ।.

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Description

झगड़ा निपटारक दफ्तर—सूर्यबाला ”आप दोनों यहाँ झगड़ा निपटाने आई हैं?’ ’ ”और नहीं तो क्या मक्खी मारने आई हैं?’ ’ चिक्की ने चिढ़कर जवाब दिया। इस पर कुन्नी और मोना को भी बहुत गुस्सा आया। दफ्तर में थीं, नहीं तो बतातीं इस शैतान लड़की को! और चिक्की की तो आदत ही यह थी। अगर उससे पूछा जाता, ‘तुमने खाना खा लिया?’ तो वह ‘हाँ’ कहने के बदले कहती, ‘और नहीं तो क्या मैं भूखी बैठी हूँ!’ अगर सवाल होता—’क्या तुम आज अपनी मम्मी के साथ बाजार गई थी?’ तो वह जवाब देती—’और नहीं तो क्या तुम्हारी मम्मी के साथ जाऊँगी?’ कोई पूछता—’चिक्की! ये तुम्हारे कान के बूँदे सोने के हैं?’ तो फौरन कहती—’और नहीं तो क्या तुम्हारी तरह पीतल के हैं?’ मतलब वह हर बात में, हर शब्द में झगड़े का इंजेक्शन लिये रहती। इस बार कुन्नी बोली, ”पूरी बात बताइए झगड़े की।’ ’ चिक्की ही फिर बोली, ”बताना क्या है, इसने मेरे पैर की चटनी बना दी तो मैं इसे पीटूँगी ही।’ ’ दूसरे दफ्तर में बैठे बिल्लू ने सिर्फ चटनी ही सुना, फौरन बोला, ”देखो, मैं कहता था न, आम की मीठी चटनी है इनके पास।’ ’ इस पर सोनू गुर्राई—”मैंने जान-बूझकर इसका पैर नहीं कुचला था।’ ’ चिक्की गुस्साई—”जान-बूझकर नहीं कुचला था तो क्या अनजाने कुचला था? मेरा पैर कोई सूई-धागा था, जो तुझे दिखता नहीं था?’ ’ —इसी संग्रह से सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ. सूर्यबाला ने बड़ों के लिए ही नहीं, वरन् बच्चों के लिए भी विपुल मात्रा में साहित्य का सृजन किया है। प्रस्तुत है, बच्चों के लिए लिखीं उनकी हास्य-व्यंग्यपूर्ण कुछ चुटीली तथा मन को छूनेवाली रचनाएँ।.

About Author

सूर्यबाला जन्म: 25 अक्‍तूबर, 1944 को वाराणसी (उ.प्र.) में। शिक्षा: एम.ए., पी-एच.डी. (रीति साहित्य—काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय)। कृतित्व: अब तक पाँच उपन्यास, ग्यारह कहानी-संग्रह तथा तीन व्यंग्य-संग्रह प्रकाशित। टी.वी. धारावाहिकों में ‘पलाश के फूल’, ‘न किन्नी, न’, ‘सौदागर दुआओं के’, ‘एक इंद्रधनुष...’, ‘सबको पता है’, ‘रेस’ तथा ‘निर्वासित’ आदि। अनेक राष्‍ट्रीय एवं अंतरराष्‍ट्रीय संगोष्‍ठियों में सहभागिता। अनेक कहानियाँ एवं उपन्यास विभिन्न शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित। कोलंबिया विश्‍वविद्यालय (न्यूयॉर्क), वेस्टइंडीज विश्‍वविद्यालय (त्रिनिदाद) तथा नेहरू सेंटर (लंदन) में कहानी एवं व्यंग्य रचनाओं का पाठ। सम्मान-पुरस्कार: साहित्य में विशिष्‍ट योगदान के लिए अनेक संस्थानों द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत। प्रसार भारती की इंडियन क्लासिक श्रृंखला (दूरदर्शन) में ‘सजायाफ्ता’ कहानी चयनित।

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