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Jambudweepe Bharatkhande : Sanatan Pravah Ka Mul Sthan
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr Mayank Murari
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹350 ₹263
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ISBN:
SKU 9789390372713 Categories History, Politics/Government
Categories: History, Politics/Government
Page Extent:
226
भारतीय चिंतन में कल्प की अवधारणा का समय के साथ-साथ व्योम, यानी देश के हिसाब से भी विचार किया गया है। पृथ्वी के द्वारा सूर्य का परिभ्रमण करने से संवत्सर काल बनता है। इसी प्रकार जब सूर्य अपनी आकाशगंगा का चक्कर लगाता है तो उसका एक चक्र पूरा होने के समयखंड को मन्वंतर कहा जाता है।इस प्रकार आकाशगंगा भी इस ब्रह्मांड में किसी ध्रुवतारे या सप्तर्षि या अन्य तारे का चक्कर लगाती है, उसके एक चक्कर की गणना को ही कल्प कहा गया। हमारा सौरमंडल आकाशगंगा के बाहरी इलाके में स्थित है और उसके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते हैं। -इसी पुस्तक सेभारतीय जीवन में देश और काल है। काल के साथ गति है और गति के संग जीवनदर्शन जुड़ा है। यह बात ही भारत को विशिष्ट बनाती है। कालचक्र, युगचक्र, ऋतुचक्र, धर्मचक्र, भाग्यचक्र और कर्मचक्र के विधान भारतीय सांस्कृतिक चेतना में समाए हुए हैं।सनातन के माहात्म्य, भारतीय चिंतन की वैज्ञानिकता और भारतीय जीवन-मूल्यों की पुनर्स्थापना करती विचारोत्तेजक पठनीय कृति।
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Sanatan Pravah Ka Mul Sthan” Cancel reply
Description
भारतीय चिंतन में कल्प की अवधारणा का समय के साथ-साथ व्योम, यानी देश के हिसाब से भी विचार किया गया है। पृथ्वी के द्वारा सूर्य का परिभ्रमण करने से संवत्सर काल बनता है। इसी प्रकार जब सूर्य अपनी आकाशगंगा का चक्कर लगाता है तो उसका एक चक्र पूरा होने के समयखंड को मन्वंतर कहा जाता है।इस प्रकार आकाशगंगा भी इस ब्रह्मांड में किसी ध्रुवतारे या सप्तर्षि या अन्य तारे का चक्कर लगाती है, उसके एक चक्कर की गणना को ही कल्प कहा गया। हमारा सौरमंडल आकाशगंगा के बाहरी इलाके में स्थित है और उसके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है। इसे एक परिक्रमा पूरी करने में लगभग 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते हैं। -इसी पुस्तक सेभारतीय जीवन में देश और काल है। काल के साथ गति है और गति के संग जीवनदर्शन जुड़ा है। यह बात ही भारत को विशिष्ट बनाती है। कालचक्र, युगचक्र, ऋतुचक्र, धर्मचक्र, भाग्यचक्र और कर्मचक्र के विधान भारतीय सांस्कृतिक चेतना में समाए हुए हैं।सनातन के माहात्म्य, भारतीय चिंतन की वैज्ञानिकता और भारतीय जीवन-मूल्यों की पुनर्स्थापना करती विचारोत्तेजक पठनीय कृति।
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About Author
डॉ. मयंक मुरारी का समाज,
इतिहास और लोकजीवन के अंतर्निहित मूल्य और आध्यात्मिक पहलुओं पर विशेष चिंतन है।
30 सालों के अपने सार्वजनिक जीवन में भारतीय दर्शन, आध्यात्मिकता और समसामयिक
विषयों पर अखबारों एवं पत्रिकाओं में 600 से अधिक आलेख और एक दर्जन किताबें लिख
चुके हैं, जो पाठकों के बीच खूब लोकप्रिय हुईं।
उन्होंने ग्रामीण विकास, प्रबंधन, जनसंपर्क एवं पत्रकारिता के अलावा राजनीति
शास्त्र में उच्च शिक्षा प्राह्रश्वत करने के बाद विकास के वैकल्पिक माध्यम पर
पी-एच. डी. की है। उनके कार्यों एवं योगदान के लिए विद्यावाचस्पति, झारखंड रत्न,
जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान, साहित्य अकादमी, रामदयाल मुंडा कथेतर सम्मान,
हिंदुस्तान टाइम्स समूह का कर्तव्य अवार्ड, आईएलओ की ओर से जेनेवा में प्रकाशित
जर्नल में सम्मान संदेश, लायंस क्लब ऑफ राँची की ओर से समाज सेवा के लिए अवार्ड
के अलावा कैंब्रिज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एवं झारखंड सरकार तथा अन्य
संस्थाओं के द्वारा कई सम्मान एवं पुरस्कार दिए गए हैं। व्यक्तित्व विकास,
प्रेरणा और संवाद के अलावा भारतीय परंपरा एवं जीवन पर व्याख्यान देते हैं।
संप्रति उषा मार्टिन, राँची कंपनी में जनसंपर्क और सीएसआर हेड।
मोबाइल : 9308270103 | इ-मेल : murari.mayank@gmail.com
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