Hamari Sanskritik Ekta – Hindi

Publisher:
Lokbharti
| Author:
Ramdhari Singh Dinkar
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback

213

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हिन्दू-संस्कृति की पाचन-शक्ति बड़ी ही प्रचंड मानी जाती है । इसका कारण शायद यह है कि जब आर्य इस संस्कृति का निर्माण करने लगे, तब उनके सामने अनेक जातियों को एक संस्कृति में पचाकर समन्वित करने का सवाल था जो उनके आगमन के पहले से ही इस देश में बस रही थी । अतएव उन्होंने आरम्भ से ही हिन्दू-संस्कृति का ऐसा लचीला रूप पसंद किया जो प्रत्येक नई संस्कृति से लिपटकर उसे अपनी बना सके ।.

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Description

हिन्दू-संस्कृति की पाचन-शक्ति बड़ी ही प्रचंड मानी जाती है । इसका कारण शायद यह है कि जब आर्य इस संस्कृति का निर्माण करने लगे, तब उनके सामने अनेक जातियों को एक संस्कृति में पचाकर समन्वित करने का सवाल था जो उनके आगमन के पहले से ही इस देश में बस रही थी । अतएव उन्होंने आरम्भ से ही हिन्दू-संस्कृति का ऐसा लचीला रूप पसंद किया जो प्रत्येक नई संस्कृति से लिपटकर उसे अपनी बना सके ।.

About Author

रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया।
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