Gorakhgatha (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ram Shankar Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
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Ram Shankar Mishra
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महायोगी गोरक्षनाथ एक महान समाज-दृष्टा थे। भारतीय इतिहास में मध्यकाल को संक्रान्ति काल भी कहा जाता है। इस युग में भोगवाद की प्रतिष्ठा थी। उच्च वर्ग भोगवादी था और निम्न वर्ग भोग्य था। महायोगी गोरक्षनाथ ने सामाजिक पुनरुत्थान तथा सामाजिक नवादर्शों की प्रस्थापना के लिए उस भोगात्मक साधना का प्रबल विरोध किया। वे निम्न वर्ग और समाज के लिए आराध्य देवता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए थे। योग और कर्म की सम्यक् साधना उन्होंने की थी।
गोरक्षनाथ योगमार्गी होते हुए भी एक महान रचनाधर्मी साधक थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषाओं में अनेक ग्रन्‍थों की रचना की थी। गोरक्षनाथ के शब्दों में अनुशासन भी है और बेलाग फक्कड़पन भी। उनकी काव्याभिव्यक्तियों में कबीर की काव्य-वस्तु के स्रोत मिलते हैं। गोरक्षनाथ अन्याय तथा शोषण के प्रति तेजस्वी हस्तक्षेप थे। पीड़ितों एवं शोषितों को दुख तथा शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने जनन्दोलनों का भी प्रवर्तन किया था। वे यायावर थे। दक्षिणात्य और आर्यावर्त में भ्रमण करते रहे और जनभाषा तथा जनसंस्कृति का साक्षात्कार करते रहे। अनेक जनश्रुतियाँ उनके व्यक्तित्व को महिमामंडित करने के लिए प्रचलित हैं। लेकिन इस औपन्यासिक कृति में मिथकों को तद् रूपों में स्वीकार न करते हुए वैज्ञानिक दृष्टि से उनका विश्लेषण किया गया है। यात्रा-वृत्तान्‍त और जीवनी के आस्वाद से भरपूर यह उपन्यास भारतीय आध्‍यात्मिक इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण दौर से परिचित कराता है।

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Description

महायोगी गोरक्षनाथ एक महान समाज-दृष्टा थे। भारतीय इतिहास में मध्यकाल को संक्रान्ति काल भी कहा जाता है। इस युग में भोगवाद की प्रतिष्ठा थी। उच्च वर्ग भोगवादी था और निम्न वर्ग भोग्य था। महायोगी गोरक्षनाथ ने सामाजिक पुनरुत्थान तथा सामाजिक नवादर्शों की प्रस्थापना के लिए उस भोगात्मक साधना का प्रबल विरोध किया। वे निम्न वर्ग और समाज के लिए आराध्य देवता के रूप में प्रतिष्ठित हो गए थे। योग और कर्म की सम्यक् साधना उन्होंने की थी।
गोरक्षनाथ योगमार्गी होते हुए भी एक महान रचनाधर्मी साधक थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत भाषाओं में अनेक ग्रन्‍थों की रचना की थी। गोरक्षनाथ के शब्दों में अनुशासन भी है और बेलाग फक्कड़पन भी। उनकी काव्याभिव्यक्तियों में कबीर की काव्य-वस्तु के स्रोत मिलते हैं। गोरक्षनाथ अन्याय तथा शोषण के प्रति तेजस्वी हस्तक्षेप थे। पीड़ितों एवं शोषितों को दुख तथा शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने जनन्दोलनों का भी प्रवर्तन किया था। वे यायावर थे। दक्षिणात्य और आर्यावर्त में भ्रमण करते रहे और जनभाषा तथा जनसंस्कृति का साक्षात्कार करते रहे। अनेक जनश्रुतियाँ उनके व्यक्तित्व को महिमामंडित करने के लिए प्रचलित हैं। लेकिन इस औपन्यासिक कृति में मिथकों को तद् रूपों में स्वीकार न करते हुए वैज्ञानिक दृष्टि से उनका विश्लेषण किया गया है। यात्रा-वृत्तान्‍त और जीवनी के आस्वाद से भरपूर यह उपन्यास भारतीय आध्‍यात्मिक इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण दौर से परिचित कराता है।

About Author

डॉ. रामशंकर मिश्र

जन्म : 13 अगस्त, 1933; बघराजी, जबलपुर (मध्य प्रदेश)।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी.।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘गोरखगाथा’, ‘राजशेखर’ (उपन्यास); ‘अक्षर पुरुष निराला’, ‘अगस्त्य’, ‘गान्‍धार धैवत’, ‘प्रियदर्शी अशोक’ (प्रबन्ध काव्य); ‘शब्द देवता आदिशंकराचार्य’ (महाकाव्य); ‘दर्पण देखे माँज के’ (परसाई : जीवन और चिन्तन), ‘युग की पीड़ा का सामना’ (परसाई : साहित्य समीक्षा), ‘त्रासदी का सौन्दर्यशास्त्र और परसाई’, ‘नई कविता : संस्कार और शिल्प’ (आलोचना); ‘तिरूक्कुरल’ (काव्यानुवाद); ‘कचारगढ़’ (पुरातात्विक सर्वेक्षण)।

प्रकाश्य : ‘मणिमेखला’ (उपन्यास); ‘ठाकुर जगमोहन सिंह : व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ (शोध-प्रबन्ध); ‘छायावादोत्तर प्रगीत और नई कविता’, ‘ज़मीन तलाशती कविता और उजाले के अनुप्रास’ (आलोचना); ‘गोंडी लोकगीत’, ‘लोकनृत्य और लोकनाट्य’, ‘गोंडी जनजाति की सांस्कृतिक विरासत और राजवंश’ (लोक-संस्कृति)।

प्रबन्‍ध काव्य : ‘महासेतु’, ‘महायात्रा’, ‘जँहँ जँहँ डोलूँ सोई परिकरम’, ‘न्याय मुद्रा’, ‘वसुन्धरा’, ‘यक्षप्रश्न’, ‘नाट्याचार्य’, ‘एक शास्ता और’, ‘सारिपुत्र’, ‘जनपद-जनपद’, ‘तुंगभद्रा’, ‘गांगेय’, ‘कालचक्र’, ‘राजघाट’, ‘रवीन्द्रनाथ’, ‘यीशुगाथा’, ‘मेकलसुता’, ‘उत्तरवर्ती’, ‘सौन्दर्य निकेतन’, ‘दीक्षाभूमि’, ‘कोणार्क’, ‘अर्थवाणी’, ‘मधुवन तुम कत रहत हरे’, ‘आदिकवि वाल्मीकि’, ‘कालजयी आर्यभट्ट’, ‘विकास पर्व’, ‘शैली भी एथिस्ट हो गया’, ‘वर्ड्सवर्थ था भाष्य प्रकृति का', ‘सिद्धान्त सूर्य’, ‘समय साक्षी उमर खय्याम’, ‘स्वर गन्धर्व तानसेन’।

महाकाव्य : ‘देववानी’।

भाषान्तर काव्यानुवाद : ‘ऐंगुरूनुरू’, ‘पुरनानूरू’  (तमिल संगम साहित्य); ‘अहनानूरू’।

जीवनी : ‘सेतु्बन्धु डॉ. सुन्दरम’।

निधन : 13 जनवरी, 2018

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