Gharvaas

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Mridula Sinha
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Mridula Sinha
Language:
Hindi
Format:
Hardback

300

Save: 25%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

ISBN:
SKU 9789386054166 Categories , Tag
Categories: ,
Page Extent:
24

जेब की अमावस्या आकाश की अमावस्या से अधिक दर्द देनेवाली। आँखों के आगे सूर्य के प्रकाश में भी अँधेरा लानेवाली। वे भाग्यवान हैं, जिनकी जेब ही नहीं होती। एक बार चाँदनी रात की लत पड़ जाए तो अँधेरी रातें काटने को दौड़ती हैं। सच है, जिसके घर लक्ष्मी विराजती हो, प्रतिदिन दीपावली है। वैसे लक्ष्मी कभी अकेली नहीं आती। अपनी दोनों बहनों को भी न्योत लाती है। सरस्वती बहुत आनाकानी करती है, पर उन्हें भी आना ही पड़ता है। दुर्गा की शक्ति भी उस घर में शोभायमान होती है। तीनों बहनों में से किसी एक का भी अनादर हुआ, धीरे से एक के बाद एक, तीनों खिसक लेती हैं। जीवन में अर्थ की प्रधानता ने सारे पुरातन जीवन-मूल्यों को पीछे धकेला है। इसलिए दीपावली का रूप तो बदल गया, पर आडंबर बढ़ता जा रहा है। व्यक्ति अंदर से जितना अकेला और कमजोर होता जा रहा है, उतना ही पर्व-त्योहारों पर धूम-धड़ाका करने की उसकी लालसा बलवती होती जा रही है। गरीब-बेबस आदमी तो पैसेवाले के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज को ही अपना आदर्श मानने लगता है। सदा से उसी आदर्श तक पहुँचने के असफल भगीरथ प्रयत्न में अपनी हड्डियाँ गलाता आया है। —इसी पुस्तक से दूसरे शहर में जाकर दो वक्त की रोटी और जीवनयापन के लिए अस्थायी विस्थापन का दंश झेलते श्रमिकों को केंद्र में रखकर लिखा गया पठनीयता से भरपूर उपन्यास।.

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Gharvaas”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

जेब की अमावस्या आकाश की अमावस्या से अधिक दर्द देनेवाली। आँखों के आगे सूर्य के प्रकाश में भी अँधेरा लानेवाली। वे भाग्यवान हैं, जिनकी जेब ही नहीं होती। एक बार चाँदनी रात की लत पड़ जाए तो अँधेरी रातें काटने को दौड़ती हैं। सच है, जिसके घर लक्ष्मी विराजती हो, प्रतिदिन दीपावली है। वैसे लक्ष्मी कभी अकेली नहीं आती। अपनी दोनों बहनों को भी न्योत लाती है। सरस्वती बहुत आनाकानी करती है, पर उन्हें भी आना ही पड़ता है। दुर्गा की शक्ति भी उस घर में शोभायमान होती है। तीनों बहनों में से किसी एक का भी अनादर हुआ, धीरे से एक के बाद एक, तीनों खिसक लेती हैं। जीवन में अर्थ की प्रधानता ने सारे पुरातन जीवन-मूल्यों को पीछे धकेला है। इसलिए दीपावली का रूप तो बदल गया, पर आडंबर बढ़ता जा रहा है। व्यक्ति अंदर से जितना अकेला और कमजोर होता जा रहा है, उतना ही पर्व-त्योहारों पर धूम-धड़ाका करने की उसकी लालसा बलवती होती जा रही है। गरीब-बेबस आदमी तो पैसेवाले के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज को ही अपना आदर्श मानने लगता है। सदा से उसी आदर्श तक पहुँचने के असफल भगीरथ प्रयत्न में अपनी हड्डियाँ गलाता आया है। —इसी पुस्तक से दूसरे शहर में जाकर दो वक्त की रोटी और जीवनयापन के लिए अस्थायी विस्थापन का दंश झेलते श्रमिकों को केंद्र में रखकर लिखा गया पठनीयता से भरपूर उपन्यास।.

About Author

27 नवंबर, 1942 (विवाह पंचमी), छपरा गाँव (बिहार) के एक मध्यम परिवार में जन्म। गाँव के प्रथम शिक्षित पिता की अंतिम संतान। बड़ों की गोद और कंधों से उतरकर पिताजी के टमटम, रिक्शा पर सवारी, आठ वर्ष की उम्र में छात्रावासीय विद्यालय में प्रवेश। 16 वर्ष की आयु में ससुराल पहुँचकर बैलगाड़ी से यात्रा, पति के मंत्री बनने पर 1971 में पहली बार हवाई जहाज की सवारी। 1964 से लेखन प्रारंभ। 1956-57 से प्रारंभ हुई लेखनी की यात्रा कभी रुकती, कभी थमती रही। 1977 में पहली कहानी ‘कादंबिनी’ पत्रिका में छपी। तब से लेखनी भी सक्रिय हो गई। विभिन्न विधाओं में लिखती रहीं। गाँव-गरीब की कहानियाँ हैं तो राजघरानों की भी। रधिया की कहानी है तो रजिया और मेरी की भी। लेखनी ने सीता, सावित्री, मंदोदरी के जीवन को खँगाला है, उनमें से आधुनिक बेटियों के लिए जीवन-संबल ढूँढ़ा है तो जल, थल और नभ पर पाँव रख रही आज की ओजस्विनियों की गाथाएँ भी हैं। लोकसंस्कारों और लोकसाहित्य में स्त्री की शक्ति-सामर्थ्य ढूँढ़ती लेखनी उनमें भारतीय संस्कृति के अथाह सूत्र पाकर धन्य-धन्य हुई है। लेखिका अपनी जीवन-यात्रा पगडंडी से प्रारंभ करके आज गोवा के राजभवन में पहुँची हैं।.

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Gharvaas”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

[wt-related-products product_id="test001"]

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED