Gahi Na Jai As Adbhut Bani 563

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Gahi Na Jai As Adbhut Bani

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कुबेरनाथ राय
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
कुबेरनाथ राय
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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SKU 9789355189219 Category
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326

असुरों का विनाश क्यों हुआ? कौरवों का विनाश क्यों हुआ? मुगलों का विनाश क्यों हुआ? इसलिए कि काल क्रम से उनके जीवन में मौज-शौक़ ही प्रधान हो गया। उनमें रचनात्मक तत्त्व समाप्त हो गये। न केवल दैनिक जीवन में बल्कि कला और चिन्तन के आदर्शों में भी वे भोगवादी हो उठे। भगवान रामचन्द्र में रावण से कौन-सी अधिक विशेषता थी? तेजस्वी, विद्वान, महापण्डित, परम साधक महात्मा रावण किस तत्त्व के प्रभाव में पराजित हुआ? वह तत्त्व था रचनात्मक दृष्टि और आदर्श-पालन राम में यह तत्त्व था, रावण में नहीं। एक अकेला, विपत्ति का मारा, वन-वन ठोकरें खाने वाला साधन-हीन व्यक्ति आदर्श से विचलित न होकर एक बड़ी-सी सेना इकट्ठी कर लेता है। किष्किन्धा और लंका जैसे शक्तिशाली राज्यों को जीत लेता है। फिर भी उन्हें अपने साम्राज्य का अंग न बनाकर शत्रुओं के सगे-सम्बन्धियों को दे देता है। रावण शुद्ध ब्राह्मण वंश-जात था और व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास को पाकर भी रचनात्मक दृष्टि को न पा सका। अतः उसकी पराजय हुई।
-इसी पुस्तक से

“यदि संस्कार परम्परावादी हों तो क्या दृष्टि आधुनिक हो सकती है। यानी आप अपने प्राचीन को आत्मसात् कर पचाकर कुछ ऐसा कह सकेँ जो वर्तमान से इतना समानधर्मी लगे कि आप इसकी बाँह थामकर भविष्य की ओर बढ़ सकें इस प्रश्न का जितना साफ़ उत्तर कुबेरनाथ राय के निबन्ध पढ़कर मिलता है, उतना हिन्दी में लिखी गयी किसी कृति को पढ़कर नहीं मिलता। इन निबन्धों का पढ़ना एक नया अनुभव है।”
– रघुवीर सहाय

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Description

असुरों का विनाश क्यों हुआ? कौरवों का विनाश क्यों हुआ? मुगलों का विनाश क्यों हुआ? इसलिए कि काल क्रम से उनके जीवन में मौज-शौक़ ही प्रधान हो गया। उनमें रचनात्मक तत्त्व समाप्त हो गये। न केवल दैनिक जीवन में बल्कि कला और चिन्तन के आदर्शों में भी वे भोगवादी हो उठे। भगवान रामचन्द्र में रावण से कौन-सी अधिक विशेषता थी? तेजस्वी, विद्वान, महापण्डित, परम साधक महात्मा रावण किस तत्त्व के प्रभाव में पराजित हुआ? वह तत्त्व था रचनात्मक दृष्टि और आदर्श-पालन राम में यह तत्त्व था, रावण में नहीं। एक अकेला, विपत्ति का मारा, वन-वन ठोकरें खाने वाला साधन-हीन व्यक्ति आदर्श से विचलित न होकर एक बड़ी-सी सेना इकट्ठी कर लेता है। किष्किन्धा और लंका जैसे शक्तिशाली राज्यों को जीत लेता है। फिर भी उन्हें अपने साम्राज्य का अंग न बनाकर शत्रुओं के सगे-सम्बन्धियों को दे देता है। रावण शुद्ध ब्राह्मण वंश-जात था और व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास को पाकर भी रचनात्मक दृष्टि को न पा सका। अतः उसकी पराजय हुई।
-इसी पुस्तक से

“यदि संस्कार परम्परावादी हों तो क्या दृष्टि आधुनिक हो सकती है। यानी आप अपने प्राचीन को आत्मसात् कर पचाकर कुछ ऐसा कह सकेँ जो वर्तमान से इतना समानधर्मी लगे कि आप इसकी बाँह थामकर भविष्य की ओर बढ़ सकें इस प्रश्न का जितना साफ़ उत्तर कुबेरनाथ राय के निबन्ध पढ़कर मिलता है, उतना हिन्दी में लिखी गयी किसी कृति को पढ़कर नहीं मिलता। इन निबन्धों का पढ़ना एक नया अनुभव है।”
– रघुवीर सहाय

About Author

कुबेरनाथ राय जन्म: 26 मार्च, 1935 ई., मतसा, गाजीपुर (उ.प्र.)। शिक्षा इंटरमीडिएट विज्ञान संवर्ग से क्वींस कॉलेज, वाराणसी से अंग्रेजी साहित्य, दर्शनशास्त्र एवं गणित विषयों के साथ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए.। कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से साहित्य रत्न । वृत्ति: एम.ए. करने के बाद विक्रम विद्यालय, हावड़ा में कुछ समय के लिए अंग्रेजी का अध्यापन। फिर, 1959 से नलवारी कॉलेज (असम) में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष 14 जुलाई, 1986. से 30 जून, 1995 तक स्वामी सहजानंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय गाजीपुर (उ.प्र.) में प्राचार्य 30 जून, 1995 को सेवा-निवृत्त । पुरस्कार / सम्मान : उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ की ओर से प्रिया नीलकंठी पर 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' और किरात नदी में चंद्रमधु पर 'महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा कई अन्य पुरस्कार पत्र मणि पुतुल के नाम गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नयी दिल्ली और त्रेता का बृहत्साम भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता द्वारा पुरस्कृत-सम्मानित 1993 ई. में कामधेनु पर भारतीय ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार 1995 ई. में उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा 'साहित्य भूषण' से सम्मानित । प्रकाशित रचनाएँ: प्रिया नीलकंटी (1969), रस आखेटक (1971), गंधमादन (1972), निपाद बांसुरी (1973), विषाद योग (1974), पर्ण मुकुट (1978), महाकवि की तर्जनी (1980), पत्र मणि पुतुल के नाम (1980), मन पवन की नौका (1983), किरात नदी में चंद्रमधु (1983), दृष्टि अभिसार (1985), त्रेता का बृहत्साम (1986), कामधेनु (1990), मराल (1995), उत्तरकुरु (1993), चिन्मय भारत (1996), वाणी का क्षीरसागर (1998), अन्धकार में अग्निशिखा (1998), आगम की नाथ (2005), कथामणि (कविता संग्रह) (1998), रामायण महातीर्थम् (2002), महाजागरण का शलाका पुरुष (2022)। देहावसान 05 जून, 1996 ई. 1 मनोज कुमार राय जन्म 5 अगस्त, 1968 ई. जन्म स्थान: शेरपुर कलां, जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश।। शिक्षा : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी तथा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से । डॉ. राय गांधी अध्ययन और कुबेर-साहित्य के अध्येता हैं। इस विधा में इनकी छः पुस्तकें प्रकाशित हैं- महात्मा गांधी का सौन्दर्य बोध (2003), महात्मा गांधी की धर्म दृष्टि (2007, मध्य प्रदेश विधानसभा के गांधी-दर्शन पुरस्कार से सम्मानित), गांधी चिन्तन में योग और शान्ति (2014), हिन्द स्वराज अरव अमित आखर अति योरे (2015), यापू ने कहा था (सम्पादित, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नयी दिल्ली, 2018), मेरी कहानी गांधी की कहानी गांधी की जुबानी ( सम्पादित, 2018), राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक सिंहावलोकन 2 (सम्पादित, 2020) गांधी चिन्तन का महायान (सम्पादित, 2021), महाजागरण का शलाका पुरुषः स्वामी सहजानंद सरस्वती (सम्पादित, 2022), संकलित निबन्ध: कुबेरनाथ राय (सम्पादित, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नयी दिल्ली, 2022), भारतीयता की पहचान (सम्पादित)। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में दर्जनों लेख तथा छिटपुट व्यंग्य रचनाएँ प्रकाशित। सम्प्रति: विभागाध्यक्ष, गांधी और शान्ति अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा। मो.: 9404822608 ई-मेल : chinmay6970@gmail.com

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