Emergency ka Kahar aur Censor ka Zahar

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Balbir Dutt
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Balbir Dutt
Language:
Hindi
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Hardback

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इस पुस्तक के पृष्ठों में आपातस्थिति के अँधेरे में किए गए काले कारनामों और करतूतों का विवरण दिया गया है। हमारे देश के इतिहास में आपातकाल एक ऐसा कालखंड है, जिसकी कालिख काल की धार से भी धुलकर साफ नहीं हुई है। इस दौरान विपक्ष के प्रायः सभी प्रमुख नेताओं और हजारों नागरिकों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया था। इनमें करीब 250 पत्रकार भी थे। लोगों को अनेक ज्यादतियों और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा था। अखबारों के समाचारों पर कठोर सेंसर लगा दिया गया था। यह इमरजेंसी का ब्रह्मास्त्र साबित हुआ। जो काम अंग्रेजों ने नहीं किया था, वह इंदिरा गांधी की सरकार ने कर दिखाया। विडंबना यह कि करीब साढ़े चार दशक बाद आज की पीढ़ी को यह भरोसा नहीं हो पा रहा है कि लोकतांत्रिक भारत में जनता की आजादी के विरुद्ध ऐसा भी तख्तापलट हुआ, जिसका विरोध-प्रतिरोध करने वालों को इसे ‘आजादी की दूसरी लड़ाई’ की संज्ञा देनी पड़ी। आपातकाल का काला अध्याय एक ऐसा विषय है, जिसपर देश-विभाजन की तरह अनेक पुस्तकें आनी चाहिए। स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषकों की दृष्टि में यह स्वतंत्र भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है। लोकशक्ति द्वारा लोकतंत्र को फिर पटरी पर ले आने की कहानी उन सबके लिए खास तौर पर पठनीय है, जिनका जन्म उस घटनाक्रम के बाद हुआ। प्लेटो के विश्व प्रसिद्ध ‘रिपब्लिक’ ग्रंथ पर जो विशद विवेचन है उससे स्पष्ट है कि गणतंत्र को सबसे बड़ा खतरा भीतर से है, बाहर से नहीं। गणतंत्र सदैव अपने ही संक्रमण से पतित होता है।.

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Description

इस पुस्तक के पृष्ठों में आपातस्थिति के अँधेरे में किए गए काले कारनामों और करतूतों का विवरण दिया गया है। हमारे देश के इतिहास में आपातकाल एक ऐसा कालखंड है, जिसकी कालिख काल की धार से भी धुलकर साफ नहीं हुई है। इस दौरान विपक्ष के प्रायः सभी प्रमुख नेताओं और हजारों नागरिकों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया था। इनमें करीब 250 पत्रकार भी थे। लोगों को अनेक ज्यादतियों और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा था। अखबारों के समाचारों पर कठोर सेंसर लगा दिया गया था। यह इमरजेंसी का ब्रह्मास्त्र साबित हुआ। जो काम अंग्रेजों ने नहीं किया था, वह इंदिरा गांधी की सरकार ने कर दिखाया। विडंबना यह कि करीब साढ़े चार दशक बाद आज की पीढ़ी को यह भरोसा नहीं हो पा रहा है कि लोकतांत्रिक भारत में जनता की आजादी के विरुद्ध ऐसा भी तख्तापलट हुआ, जिसका विरोध-प्रतिरोध करने वालों को इसे ‘आजादी की दूसरी लड़ाई’ की संज्ञा देनी पड़ी। आपातकाल का काला अध्याय एक ऐसा विषय है, जिसपर देश-विभाजन की तरह अनेक पुस्तकें आनी चाहिए। स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषकों की दृष्टि में यह स्वतंत्र भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है। लोकशक्ति द्वारा लोकतंत्र को फिर पटरी पर ले आने की कहानी उन सबके लिए खास तौर पर पठनीय है, जिनका जन्म उस घटनाक्रम के बाद हुआ। प्लेटो के विश्व प्रसिद्ध ‘रिपब्लिक’ ग्रंथ पर जो विशद विवेचन है उससे स्पष्ट है कि गणतंत्र को सबसे बड़ा खतरा भीतर से है, बाहर से नहीं। गणतंत्र सदैव अपने ही संक्रमण से पतित होता है।.

About Author

लेखक-पत्रकार बलबीर दत्त का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी नगर में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा रावलपिंडी, देहरादून, अंबाला छावनी और राँची में हुई। 1963 में राँची एक्सप्रेस के संस्थापक संपादक बने। साप्ताहिक पत्र जय मातृभूमि के प्रबंध संपादक, अंग्रेजी साप्ताहिक न्यू रिपब्लिक के स्तंभकार, दैनिक मदरलैंड के छोटानागपुर संवाददाता, आर्थिक दैनिक फाइनैंशियल एक्सप्रेस के बिहार न्यूजलेटर के स्तंभ-लेखक रहे। करीब 9000 संपादकीय लेखों, निबंधों और टिप्पणियों का प्रकाशन हो चुका है। ये साउथ एशिया फ्री मीडिया एसोसिएशन, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया व नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स के सदस्य हैं। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। राँची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता व जनसंपर्क विभाग में 26 वर्षों तक स्थायी सलाहकार व अतिथि व्याख्याता रहे। बहुचर्चित पुस्तकें ‘कहानी झारखंड आंदोलन की’, ‘सफरनामा पाकिस्तान’ और ‘जयपाल सिंह: एक रोमांचक अनकही कहानी’। कई अन्य पुस्तकें प्रकाशनाधीन। पत्रकारिता के सिलसिले में अनेक देशों की यात्राएँ। ‘पद्मश्री सम्मान’, ‘राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार’, ‘पत्रकारिता शिखर सम्मान’, ‘लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड’ (झारखंड सरकार), ‘झारखंड गौरव सम्मान’, ‘महानायक शारदा सम्मान’ आदि कई पुरस्कार प्राप्त। संप्रति दैनिक देशप्राण के संस्थापक संपादक।.

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