Ek Kahani Lagataar

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Ram Darash Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Ram Darash Mishra
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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144

माँ मुस्कुराई। लगा जैसे दर्द से मुसकरा रही हो। बोली—बेटे, बहुत कुछ मिलता है। और मुझे तो यह चुभ रहा है कि तुम मेरे बेटे होकर यह सबकुछ कह रहे हो। मैंने तुम्हें यह संस्कार तो नहीं देना चाहा था। तुम्हें इन गंदे गरीबों से इतनी घिनू है तो इनका इलाज कैसे करोगे? ‘इलाज की बात और है, मा। ये मेरे यहाँ आएँगे तो भगा तो नहीं दूँगा। मुझे तो जो भी फीस देगा, उसका इलाज करूँगा।’ ‘मगर वे तुम्हारी फीस कहाँ से दे पाएँगे? इसलिए वे वैसे भी तुम्हारे पास नहीं आएँगे!’ ‘ठीक कहती हो, माँ!’ ‘हाँ, लेकिन तुम ठीक नहीं कह रहे हो।’ ‘क्या, माँ?’ ‘वही, जो तुम कह रहे हो। जानते हो, इस देश में कितनी बड़ी संख्या है इन अभागों की? क्या उच्च शिक्षित लोगों का इनके प्रति कोई दायित्व नहीं होता? डॉक्टर इनका इलाज न करें, वकील इनका केस न लड़ें, शिक्षक इन्हें पढ़ाएँ नहीं, नेता और अफसर इन्हें अपने पास फटकने न दें, पुलिसवाले इन्हें कीड़े-मकोड़ों से बदतर समझें तो इनका क्या होगा? पैसेवाले इन्हे गरीबी और गंदगी में झोंककर सारी सुख-सुविधाओं पर कुंडली मारे बैठे हैं। आखिर यह कब तक चलेगा? क्या इनके घावों पर फाहा रखने का दायित्व हम लोगों का नहीं होता?’ ‘वाह माँ, तुम तो कवि हो गई हो। लेकिन आज कविता से काम नहीं चलता। और जिन्हें तुम गरीब कह रही हो, उनकी झुग्गियों में जाकर देखो, वहाँ क्या नहीं ’ —इसी पुस्तक से.

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Description

माँ मुस्कुराई। लगा जैसे दर्द से मुसकरा रही हो। बोली—बेटे, बहुत कुछ मिलता है। और मुझे तो यह चुभ रहा है कि तुम मेरे बेटे होकर यह सबकुछ कह रहे हो। मैंने तुम्हें यह संस्कार तो नहीं देना चाहा था। तुम्हें इन गंदे गरीबों से इतनी घिनू है तो इनका इलाज कैसे करोगे? ‘इलाज की बात और है, मा। ये मेरे यहाँ आएँगे तो भगा तो नहीं दूँगा। मुझे तो जो भी फीस देगा, उसका इलाज करूँगा।’ ‘मगर वे तुम्हारी फीस कहाँ से दे पाएँगे? इसलिए वे वैसे भी तुम्हारे पास नहीं आएँगे!’ ‘ठीक कहती हो, माँ!’ ‘हाँ, लेकिन तुम ठीक नहीं कह रहे हो।’ ‘क्या, माँ?’ ‘वही, जो तुम कह रहे हो। जानते हो, इस देश में कितनी बड़ी संख्या है इन अभागों की? क्या उच्च शिक्षित लोगों का इनके प्रति कोई दायित्व नहीं होता? डॉक्टर इनका इलाज न करें, वकील इनका केस न लड़ें, शिक्षक इन्हें पढ़ाएँ नहीं, नेता और अफसर इन्हें अपने पास फटकने न दें, पुलिसवाले इन्हें कीड़े-मकोड़ों से बदतर समझें तो इनका क्या होगा? पैसेवाले इन्हे गरीबी और गंदगी में झोंककर सारी सुख-सुविधाओं पर कुंडली मारे बैठे हैं। आखिर यह कब तक चलेगा? क्या इनके घावों पर फाहा रखने का दायित्व हम लोगों का नहीं होता?’ ‘वाह माँ, तुम तो कवि हो गई हो। लेकिन आज कविता से काम नहीं चलता। और जिन्हें तुम गरीब कह रही हो, उनकी झुग्गियों में जाकर देखो, वहाँ क्या नहीं ’ —इसी पुस्तक से.

About Author

जन्म: 15 अगस्त, 1924 को गोरखपुर जिले के डुमरी गाँव में। रचनासंसार: ‘पानी के प्राचीर’, ‘जल टूटता हुआ’, ‘सूखता हुआ तालाब’, ‘अपने लोग’, ‘रात का सफर’, ‘आकाश की छत’, ‘आदिम राग’, ‘बिना दरवाजे का मकान’, ‘दूसरा घर’, ‘थकी हुई सुबह’, ‘बीस बरस’, ‘परिवार’, ‘बचपन भास्कर का’ (उपन्यास); ‘खाली घर’, ‘एक वह’, ‘दिनचर्या’, ‘सर्पदंश’, ‘बसंत का एक दिन’, ‘इकसठ कहानियाँ’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘अपने लिए’, ‘चर्चित कहानियाँ’, ‘श्रेष्ठ आंचलिक कहानियाँ’, ‘आज का दिन भी’, ‘एक कहानी लगातार’, ‘फिर कब आएँगे?’, ‘अकेला मकान’, ‘विदूषक’, ‘दिन के साथ’, ‘मेरी कथायात्रा’ (कहानीसंग्रह) के अलावा बीस काव्यसंग्रह, पाँच ललित निबंध, दो आत्मकथा, दो यात्रावृत्तांत, तीन डायरी के अलावा 11 पुस्तकें समीक्षा की; 14 खंडों में रचनावली प्रकाशित। सम्मानपुरस्कार: दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, शलाका सम्मान, भारत भारती सम्मान, व्यास सम्मान, महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान, उदयराज सिंह स्मृति सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, रामविलास शर्मा सम्मान, राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार (इंदौर)|

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