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Dharmashastra Aur Jatiyon ka Sach
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Shashi Shekhar Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Shashi Shekhar Sharma
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹700 ₹490
Save: 30%
In stock
Ships within:
1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9789352661299
Categories General Fiction, Hindi
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
24
भारत की आर्ष-परंपरा के बारे में क काल से लेकर अब तक एक विशेष विचार का सृजन एवं पोषण किया गया है, जिसके अनुसार भारतीय समाज हजारों सालों से विभिन्न जातियों में बँटा हुआ था और ये जातियाँ एक-दूसरे को घृणा तथा हेयदृष्टि से देखती थीं। इसका कारण यह बताया गया कि ‘मनुस्मृति’ जैसी रचनाओं के कारण ही भारत में जाति प्रथा का सृजन हुआ और ऐसी रचनाओं के प्रभाव एवं दबाव के कारण ही आज तक भारत में जातियाँ प्रचलन में हैं। अंग्रेजों को जातियों को कलुषित करने से कई लाभ थे। वे भारतीय समाज को विखंडित कर सकते थे। दूसरे, भारतीय सृजन-परंपरा के मूल स्वरूप को ही भ्रष्ट कर सकते थे। यह वैचारिक स्थिति स्वतंत्रता तक आते-आते इतनी प्रबल हो गई कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत के ऐतिहासिक लेखन एवं समाजशास्त्रीय लेखन ने क चर्चा को ही आदर्श मान उसका अंधानुकरण किया और ‘मूल रचनाओं एवं कृतियों’ तथा वास्तविक अवस्था का सांगोपांग अध्ययन करना आवश्यक ही नहीं समझा। प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन भारतीय मामलों के विद्वानों के एकपक्षीय और मनपसंद विषय, मनु के सिद्धांतों पर वैकल्पिक विचार प्रस्तुत करने का गंभीर प्रयास किया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि कैसे अंग्रेज विद्वानों ने धर्म को कानून तथा धर्मशास्त्र के ग्रंथों को हिंदुओं का कानून बना दिया; और कैसे यह विचार-परंपरा अभी भी बलवान है।.
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Jatiyon ka Sach” Cancel reply
Description
भारत की आर्ष-परंपरा के बारे में क काल से लेकर अब तक एक विशेष विचार का सृजन एवं पोषण किया गया है, जिसके अनुसार भारतीय समाज हजारों सालों से विभिन्न जातियों में बँटा हुआ था और ये जातियाँ एक-दूसरे को घृणा तथा हेयदृष्टि से देखती थीं। इसका कारण यह बताया गया कि ‘मनुस्मृति’ जैसी रचनाओं के कारण ही भारत में जाति प्रथा का सृजन हुआ और ऐसी रचनाओं के प्रभाव एवं दबाव के कारण ही आज तक भारत में जातियाँ प्रचलन में हैं। अंग्रेजों को जातियों को कलुषित करने से कई लाभ थे। वे भारतीय समाज को विखंडित कर सकते थे। दूसरे, भारतीय सृजन-परंपरा के मूल स्वरूप को ही भ्रष्ट कर सकते थे। यह वैचारिक स्थिति स्वतंत्रता तक आते-आते इतनी प्रबल हो गई कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत के ऐतिहासिक लेखन एवं समाजशास्त्रीय लेखन ने क चर्चा को ही आदर्श मान उसका अंधानुकरण किया और ‘मूल रचनाओं एवं कृतियों’ तथा वास्तविक अवस्था का सांगोपांग अध्ययन करना आवश्यक ही नहीं समझा। प्रस्तुत पुस्तक में प्राचीन भारतीय मामलों के विद्वानों के एकपक्षीय और मनपसंद विषय, मनु के सिद्धांतों पर वैकल्पिक विचार प्रस्तुत करने का गंभीर प्रयास किया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि कैसे अंग्रेज विद्वानों ने धर्म को कानून तथा धर्मशास्त्र के ग्रंथों को हिंदुओं का कानून बना दिया; और कैसे यह विचार-परंपरा अभी भी बलवान है।.
About Author
शशि शेखर शर्मा संप्रति बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग के माननीय सदस्य हैं। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (से.नि.) के 1985 बैच के वरीय पदाधिकारी रहे और इस रूप में राज्य सरकार एवं भारत सरकार में कई महत्त्वपूर्ण पदों का दायित्व सँभाला। श्री शर्मा ने धर्मों का इतिहास तथा विभिन्न रिलीजंस के मूल सिद्धांतों का गहन अध्ययन किया है। वे भारतीय धर्म एवं चिंतन-परंपरा के भी गहन अध्येता हैं। इसके अलावा उन्होंने दशकों तक इसलाम का भी अध्ययन किया है। इतने विविध विषयों पर उनकी पकड़ विलक्षण है और धर्मशास्त्र तथा तत्त्व-मीमांसा जैसे विषयों पर उनके लेखन को विद्वज्जनों की व्यापक सराहना मिली है। वे हिंदी के जाने-माने कवि और कहानीकार भी हैं। अब तक हिंदी में उनके दो काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए हैं—‘इस भँवर के पार’ और ‘हरसिंगार के सपने’। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘ओह माई गॉड’, ‘नेचर ऑफ डिवाइन फाइटलाइंस’, ‘कैलिफ्स ऐंड सुल्तान्स, रिलीजियस आइडियोलॉजी ऐंड पॉलिटिकल प्रैक्टिस’, ‘इमैजिंड मनुवाद’। इसके अतिरिक्त भारतीय ज्ञान-परंपरा पर उनकी दो पुस्तकें हैं—‘प्राचीन भारत के गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री’ तथा ‘प्राचीन भारत के फिजिशियन एवं शल्य-चिकित्सक’।.
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