Dekho Hamari Kashi (HB)

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Hemant Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

375

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Page Extent:
240

जन्म और संस्कार पाया काशी में। समाज, प्रकृति, उत्सव, संस्कृति का ज्ञान यहीं हुआ। शब्द, तात्पर्य और धारणाओं की समझ भी वहीं बनी।

नौकरी के लिए लखनऊ में रहे। वहीं राजनीति के बहुलवादी चरित्र, समाज परिवर्तन, सांप्रदायिकता, दलित-उभार, चुनाव संबंधी अध्ययन हुआ। पंद्रह साल तक जनसत्ता के राज्य संवाददाता रहने के बाद दो साल हिंदुस्तान, लखनऊ में संपादकी की। फिर लंबे अर्से तक टीवी पत्रकारिता । अब दिल्लीवास। लेकिन बनारस भी छूटा नहीं।

अयोध्या आंदोलन को काफी करीब से देखा। ताला खुलने से लेकर ध्वंस तक की हर घटना की रिपोर्टिंग के लिए अयोध्या में मौजूद इकलौते पत्रकार। |

व्यवस्थित पढ़ाई के नाम पर बी.एच.यू. से हिंदी में डॉक्टरेट। लिखाई में समकालीन अखबारी दुनिया में कलम घिसी। कितना लिखा? गिनना मुश्किल है। गिनने की रुचि भी कभी नहीं रही। भारतेंदु समग्र का संपादन जरूर याद है। कैलास-मानसरोवर की अंतर्यात्रा कराती पुस्तक द्वितीयोनास्ति’ बहुचर्चित । व्यक्ति, समाज, समय, उत्सव, मौसम पर केंद्रित किताब ‘तमाशा मेरे आगे’ बहुपठित। ।

राजनीति, समाज, परंपरा को समझने और पढ़ने का क्रम अब भी अनवरत जारी।

पहले लेखन को गुजर-बसर का सहारा माना, अब जीवन जीने का।

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जन्म और संस्कार पाया काशी में। समाज, प्रकृति, उत्सव, संस्कृति का ज्ञान यहीं हुआ। शब्द, तात्पर्य और धारणाओं की समझ भी वहीं बनी।

नौकरी के लिए लखनऊ में रहे। वहीं राजनीति के बहुलवादी चरित्र, समाज परिवर्तन, सांप्रदायिकता, दलित-उभार, चुनाव संबंधी अध्ययन हुआ। पंद्रह साल तक जनसत्ता के राज्य संवाददाता रहने के बाद दो साल हिंदुस्तान, लखनऊ में संपादकी की। फिर लंबे अर्से तक टीवी पत्रकारिता । अब दिल्लीवास। लेकिन बनारस भी छूटा नहीं।

अयोध्या आंदोलन को काफी करीब से देखा। ताला खुलने से लेकर ध्वंस तक की हर घटना की रिपोर्टिंग के लिए अयोध्या में मौजूद इकलौते पत्रकार। |

व्यवस्थित पढ़ाई के नाम पर बी.एच.यू. से हिंदी में डॉक्टरेट। लिखाई में समकालीन अखबारी दुनिया में कलम घिसी। कितना लिखा? गिनना मुश्किल है। गिनने की रुचि भी कभी नहीं रही। भारतेंदु समग्र का संपादन जरूर याद है। कैलास-मानसरोवर की अंतर्यात्रा कराती पुस्तक द्वितीयोनास्ति’ बहुचर्चित । व्यक्ति, समाज, समय, उत्सव, मौसम पर केंद्रित किताब ‘तमाशा मेरे आगे’ बहुपठित। ।

राजनीति, समाज, परंपरा को समझने और पढ़ने का क्रम अब भी अनवरत जारी।

पहले लेखन को गुजर-बसर का सहारा माना, अब जीवन जीने का।

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