Culture Yaksha

Publisher:
Vani prakashan
| Author:
Bashir Badra
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback

200

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1-4 Days

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Weight 470 g
Book Type

ISBN:
Page Extent:
434

“हर बड़े शायर को कड़ी आजमाइशों से गुजरना होता है। मीर को अपनी अजमत के इजहार के लिए अजगर नामा लिखने की जरूरत पड़ी। ग़ालिब ने क्या क्या मारका आराइयाँ की। फ़ैज़ जिन्हें उनकी जिन्दगी में मकबूलियत और इज्जत मिल गयी उन्हें भी आसानी से यह रुतबा नहीं मिला था। गजिशता तीस बरस में बशीर बद्र ने भी ये सख्तियों झेली हैं। ‘इकाई’ से लेकर ‘आमद’ तक उन बड़ी-बड़ी आज़माइशों से वो गुजरे हैं। उनकी ग़ज़लों की पहली किताब ‘इकाई’ ने हमारे अदब में तहलका मचा दिया था। एक अजीब शान और धूम से बशीर बद्र ग़जल की दुनिया में आये लेकिन इस पर भी बड़े सर्दी गर्म मौसम गुजरे, तब वो यहाँ तक पहुँचे हैं। -प्रो. गोपी चन्द नारंग बशीर बद्र की ग़जल पढ़ते हुए मैंने हर लफ़्ज़ का मुनफ़रद जायका महसूस किया है। खुरदुरे से खुरदुरे और ग़ज़ल बाहर अल्फ़ाज़ भी उनके अशआर में नर्म, मीठे और सच्चे लगते हैं। -कुमार पाशी ग़ालिब के बाद बशीर बद्र के अशआर में जो ताजगी, शगुफ़्तगी, नदरत और बलाग़त है वो शायद उर्दू अदब के पूरे एहदेमाजी में कहीं नहीं –जगतार नयी गजल पर किसी भी उनवान से गुफ्तगू की जाये बशीर बद्र का जिक्र जरूर आयेगा वो एक सच्चे और जिन्दा शायर हैं। शहरयार बशीर बद्र की आवाज़ दूर से पहचानी जाती है। -निदा फ़ाज़ली गजलगो की हैसियत से बशीर बद्र की सलाहियतों पर ईमान न लाना कुछ है मोहम्मद हसन डॉ. बशीर बद्र से जब मिला था तो लगा जिन्दगी ने एक और एहसान किया। उनकी ग़ज़ल आज ही के दौर का एहसास होता है, वह कुल्ले साफ़े पहनी ग़ज़ल नहीं लगती। वे दो शेरों के बाद जैसे एक नुक्ते के गिर्द पूरे एक सबजेक्ट का दायरा बनाने लगते हैं। उनकी ग़ज़ल का शेर सिर्फ़ एक ख़याल नहीं रह जाता, हादसा भी बन जाता है, अफसाना भी मैं डॉ. बशीर बद्र का बहुत बड़ा फैन हूँ। – गुलज़ार ”

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“हर बड़े शायर को कड़ी आजमाइशों से गुजरना होता है। मीर को अपनी अजमत के इजहार के लिए अजगर नामा लिखने की जरूरत पड़ी। ग़ालिब ने क्या क्या मारका आराइयाँ की। फ़ैज़ जिन्हें उनकी जिन्दगी में मकबूलियत और इज्जत मिल गयी उन्हें भी आसानी से यह रुतबा नहीं मिला था। गजिशता तीस बरस में बशीर बद्र ने भी ये सख्तियों झेली हैं। ‘इकाई’ से लेकर ‘आमद’ तक उन बड़ी-बड़ी आज़माइशों से वो गुजरे हैं। उनकी ग़ज़लों की पहली किताब ‘इकाई’ ने हमारे अदब में तहलका मचा दिया था। एक अजीब शान और धूम से बशीर बद्र ग़जल की दुनिया में आये लेकिन इस पर भी बड़े सर्दी गर्म मौसम गुजरे, तब वो यहाँ तक पहुँचे हैं। -प्रो. गोपी चन्द नारंग बशीर बद्र की ग़जल पढ़ते हुए मैंने हर लफ़्ज़ का मुनफ़रद जायका महसूस किया है। खुरदुरे से खुरदुरे और ग़ज़ल बाहर अल्फ़ाज़ भी उनके अशआर में नर्म, मीठे और सच्चे लगते हैं। -कुमार पाशी ग़ालिब के बाद बशीर बद्र के अशआर में जो ताजगी, शगुफ़्तगी, नदरत और बलाग़त है वो शायद उर्दू अदब के पूरे एहदेमाजी में कहीं नहीं –जगतार नयी गजल पर किसी भी उनवान से गुफ्तगू की जाये बशीर बद्र का जिक्र जरूर आयेगा वो एक सच्चे और जिन्दा शायर हैं। शहरयार बशीर बद्र की आवाज़ दूर से पहचानी जाती है। -निदा फ़ाज़ली गजलगो की हैसियत से बशीर बद्र की सलाहियतों पर ईमान न लाना कुछ है मोहम्मद हसन डॉ. बशीर बद्र से जब मिला था तो लगा जिन्दगी ने एक और एहसान किया। उनकी ग़ज़ल आज ही के दौर का एहसास होता है, वह कुल्ले साफ़े पहनी ग़ज़ल नहीं लगती। वे दो शेरों के बाद जैसे एक नुक्ते के गिर्द पूरे एक सबजेक्ट का दायरा बनाने लगते हैं। उनकी ग़ज़ल का शेर सिर्फ़ एक ख़याल नहीं रह जाता, हादसा भी बन जाता है, अफसाना भी मैं डॉ. बशीर बद्र का बहुत बड़ा फैन हूँ। – गुलज़ार ”

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