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Cine Sangeet Ka Itihaas

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
स्वामी वाहिद काज़मी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
स्वामी वाहिद काज़मी
Language:
Hindi
Format:
Hardback

199

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1-4 Days

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Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789326352925 Category
Category:
Page Extent:
138

सिने संगीत का इतिहास –
देश में मूक के बाद जब सवाक् सिनेमा का जन्म हुआ तो उन्हीं सवाक् फ़िल्मों ने सिनेमा में गीत-संगीत की पृष्ठभूमि को जन्म दिया था। आज स्थिति ऐसी है कि सिनेमा में गीत-संगीत के स्थान को दरकिनार करके नहीं देखा जा सकता। संगीत न सिर्फ़ उसकी आवश्यकता है बल्कि एक अनिवार्य तत्त्व भी है, जिसके अभाव में किसी फ़िल्म का व्यावसायिक रूप से सफल होना आज भी सन्दिग्ध हो जाता है। स्वामी वाहिद काज़मी ने प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय सिनेमा में संगीत के विकास और उसके विकासक्रम को बड़ी ही शोधपरक दृष्टि से देखा है।
भारतीय सिनेमा में संगीत के विकास पर नज़र डालें तो यह तथ्य बड़ी शिद्दत से सामने आता है कि भारतीय संगीत के विकास में लोकगीतों के साथ-साथ क्षेत्रीय गीत-संगीत का भी बहुत बड़ा योगदान है। इसके अभाव में सम्पूर्ण भारतीय संगीत जगत का मूल्यांकन कर पाना सम्भव नहीं।
तकनीक में आये बदलाव के साथ-साथ संगीत में नये इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यन्त्रों के प्रयोग भी उसके विकास में अपना स्थायी महत्त्व रखते हैं। भारतीय सिनेमा में उसकी उपस्थिति को भी लेखक ने रेखांकित किया है।
स्वामी वाहिद काज़मी की यह पुस्तक अवश्य ही सिने-संगीत के अध्येताओं को पसन्द आयेगी।

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Description

सिने संगीत का इतिहास –
देश में मूक के बाद जब सवाक् सिनेमा का जन्म हुआ तो उन्हीं सवाक् फ़िल्मों ने सिनेमा में गीत-संगीत की पृष्ठभूमि को जन्म दिया था। आज स्थिति ऐसी है कि सिनेमा में गीत-संगीत के स्थान को दरकिनार करके नहीं देखा जा सकता। संगीत न सिर्फ़ उसकी आवश्यकता है बल्कि एक अनिवार्य तत्त्व भी है, जिसके अभाव में किसी फ़िल्म का व्यावसायिक रूप से सफल होना आज भी सन्दिग्ध हो जाता है। स्वामी वाहिद काज़मी ने प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय सिनेमा में संगीत के विकास और उसके विकासक्रम को बड़ी ही शोधपरक दृष्टि से देखा है।
भारतीय सिनेमा में संगीत के विकास पर नज़र डालें तो यह तथ्य बड़ी शिद्दत से सामने आता है कि भारतीय संगीत के विकास में लोकगीतों के साथ-साथ क्षेत्रीय गीत-संगीत का भी बहुत बड़ा योगदान है। इसके अभाव में सम्पूर्ण भारतीय संगीत जगत का मूल्यांकन कर पाना सम्भव नहीं।
तकनीक में आये बदलाव के साथ-साथ संगीत में नये इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यन्त्रों के प्रयोग भी उसके विकास में अपना स्थायी महत्त्व रखते हैं। भारतीय सिनेमा में उसकी उपस्थिति को भी लेखक ने रेखांकित किया है।
स्वामी वाहिद काज़मी की यह पुस्तक अवश्य ही सिने-संगीत के अध्येताओं को पसन्द आयेगी।

About Author

स्वामी वाहिद काज़मी - जन्म: सन् 1945। आँतरी, ग्वालियर (म.प्र.)। शिक्षा: विज्ञान का छात्र, स्नातक नहीं। शिक्षण-प्रशिक्षण, संस्कार स्वभाव सब ग्वालियर की देन। साहित्यिक अभिरुचि: इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति, प्राचीनकाव्य, संगीत, शोध एवं समालोचना अध्ययन एवं लेखन के प्रिय विषय। अज्ञात, साहित्यिक विभूतियों तथा प्राचीन पाण्डुलिपियों की खोज और उन पर शोधकार्य में गहन रुचि। प्रकाशित: विशिष्ट शोध पत्रिकाओं में साहित्यिक, सामाजिक, सामयिक विषयों पर 500 लेख, 350 कहानियाँ, 150 व्यंग्य तथा लोकरुचि विषयक फ़ीचर, संस्मरण आदि समेत लगभग 2000 रचनाएँ। केवल इतिहास विषयक 50 लेख तथा लगभग इतने ही संगीत विषयक भी। विविध विषयों पर लगभग 50 पुस्तकें अप्रकाशित। व्यावसायिक स्तर पर लगभग 200 उर्दू उपन्यासों का हिन्दी में अनुवाद। 4 वर्ष तक एक सामाजिक, साहित्यिक, पाक्षिक पत्रिका का सम्पादन।

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