Bundelkhand ka Svatantrata Sangarsha : Bharatiya Svadhinta Aandolan mein Bundelkhand ki Bhumika
Publisher:
| Author:
| Language:
| Format:
Publisher:
Author:
Language:
Format:
₹300 ₹240
Save: 20%
In stock
Ships within:
In stock
ISBN:
Page Extent:
प्रस्तुत पुस्तक के द्वारा भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में बुन्देलखण्ड की जनता के योगदान को सामने लाने का प्रयास किया गया है। गांधीजी की बुन्देलखण्ड यात्रा एवं ओरछा के समीप सतार नदी के किनारे चन्द्रशेखर आजाद के हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से कुटिया बनाकर रहने से समस्त बुन्देलखण्ड में तेजी से राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार हुआ। 1923 के झण्डा सत्याग्रह एवं 1930 के जंगल सत्याग्रह में बुन्देलखण्ड के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। ब्रिटिश भक्त देशी रियासत के राजाओं ने जब जनता पर अत्याचार किया तो जनता ने प्रजामण्डल की स्थापना कर उनका विरोध किया। इसी विरोध के फलस्वरूप संक्रांति के मेले के दिन 14 जनवरी 1931 को छतरपुर जिले में जलियाॅवाला बाग की तरह ही चरण-पादुका हत्याकाण्ड घटित हुआ। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने कर्मवीर समाचार पत्र के माध्यम से 1920 में रतौना में खोले जाने वाले कसाई खाने का इतना प्रखर विरोध किया कि सरकार को घबराकर अपनी कसाईखाना खोलने की योजना त्यागनी पड़ी। यह एक ओर बुन्देलखण्ड की धरती पर अंग्रेजों की करारी शिकस्त थी, तो दूसरी ओर पं. माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता की महत्वपूर्ण जीत थी।
सागर के भाई अब्दुलगनी, ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी, केशवराव खाण्डेकर एवं मास्टर बलदेव प्रसाद, दमोह के भैयालाल चैधरी, अजयगढ़ पन्ना के चंदीदीन चैरहा, छतरपुर के पं. रामसहाय तिवारी, टीकमगढ़ के लालाराम वाजपेयी एवं झांसी के भगवानदास माहौर आदि ने बुन्देलखण्ड के स्वतंत्रता संघर्ष को गति, दिशा एवं अर्थ प्रदान किया। इन्हें पं. द्वारका प्रसाद मिश्र एवं पं. सुन्दरलाल तपस्वी का कुशल नेतृत्व एवं मार्गदर्शन मिला। गोवा मुक्ति आन्दोलन में भी सागर की सहोद्राराय एवं केसरी चन्द मेहता सहित अनेक सत्याग्रहियों ने गोवा जाकर आन्दोलन को सफल बनाया। उक्त सभी घटनाक्रम की रोचक, सहज, सरल, सुबोध एवं तथ्यपरक जानकारी इस पुस्तक में दी गई है। छात्रों, शोधार्थियों, शिक्षक बन्धुओं सहित प्रत्येक वर्ग के लोगों को यह पुस्तक ज्ञानवर्धक एवं रुचिकर लगेगी।
प्रस्तुत पुस्तक के द्वारा भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में बुन्देलखण्ड की जनता के योगदान को सामने लाने का प्रयास किया गया है। गांधीजी की बुन्देलखण्ड यात्रा एवं ओरछा के समीप सतार नदी के किनारे चन्द्रशेखर आजाद के हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से कुटिया बनाकर रहने से समस्त बुन्देलखण्ड में तेजी से राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार हुआ। 1923 के झण्डा सत्याग्रह एवं 1930 के जंगल सत्याग्रह में बुन्देलखण्ड के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। ब्रिटिश भक्त देशी रियासत के राजाओं ने जब जनता पर अत्याचार किया तो जनता ने प्रजामण्डल की स्थापना कर उनका विरोध किया। इसी विरोध के फलस्वरूप संक्रांति के मेले के दिन 14 जनवरी 1931 को छतरपुर जिले में जलियाॅवाला बाग की तरह ही चरण-पादुका हत्याकाण्ड घटित हुआ। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने कर्मवीर समाचार पत्र के माध्यम से 1920 में रतौना में खोले जाने वाले कसाई खाने का इतना प्रखर विरोध किया कि सरकार को घबराकर अपनी कसाईखाना खोलने की योजना त्यागनी पड़ी। यह एक ओर बुन्देलखण्ड की धरती पर अंग्रेजों की करारी शिकस्त थी, तो दूसरी ओर पं. माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता की महत्वपूर्ण जीत थी।
सागर के भाई अब्दुलगनी, ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी, केशवराव खाण्डेकर एवं मास्टर बलदेव प्रसाद, दमोह के भैयालाल चैधरी, अजयगढ़ पन्ना के चंदीदीन चैरहा, छतरपुर के पं. रामसहाय तिवारी, टीकमगढ़ के लालाराम वाजपेयी एवं झांसी के भगवानदास माहौर आदि ने बुन्देलखण्ड के स्वतंत्रता संघर्ष को गति, दिशा एवं अर्थ प्रदान किया। इन्हें पं. द्वारका प्रसाद मिश्र एवं पं. सुन्दरलाल तपस्वी का कुशल नेतृत्व एवं मार्गदर्शन मिला। गोवा मुक्ति आन्दोलन में भी सागर की सहोद्राराय एवं केसरी चन्द मेहता सहित अनेक सत्याग्रहियों ने गोवा जाकर आन्दोलन को सफल बनाया। उक्त सभी घटनाक्रम की रोचक, सहज, सरल, सुबोध एवं तथ्यपरक जानकारी इस पुस्तक में दी गई है। छात्रों, शोधार्थियों, शिक्षक बन्धुओं सहित प्रत्येक वर्ग के लोगों को यह पुस्तक ज्ञानवर्धक एवं रुचिकर लगेगी।
About Author
Reviews
There are no reviews yet.
Related products
RELATED PRODUCTS
Empire of God: How the Byzantines Saved Civilization Hardcover
Save: 0%
Hitler’s Beneficiaries: Plunder, Racial War, And The Nazi Welfare State
Save: 25%
Shift Happens: The History Of Labor In The United States
Save: 25%
Reviews
There are no reviews yet.