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Bolti Anubhootiyan

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Mahesh Bhagchandka
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Mahesh Bhagchandka
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9789352665501 Categories , Tag
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136

बोलती अनुभूतियाँ की कविताओं के संदर्भ में साध्य का प्रश्न है, तो यहाँ यह साध्य कभी स्वयं कवि ही प्रतीत होता है, जो अपनी कविता के माध्यम से स्वयं तक पहुँचना चाहता है; इस स्थिति में ये कविताएँ आत्मसाक्षात्कार, आत्मचिंतन और आत्माभिव्यक्ति का ही दूसरा रूप लगती हैं। इस संग्रह की कुछ कविताओं में कवि का साध्य समाज और समाज का हित-चिंतन भी दिखाई देता है, यहाँ ये कविताएँ समाज-सुधारिका का बाना पहनकर लोगों के हृदय तक जाती हैं और उनके हृदय को निर्मल बनाती चलती हैं और कहीं-कहीं इस संग्रह की कविताएँ ऐसी भी हैं, जहाँ कवि का साध्य उसका वह आराध्य है, जिसे परमात्मा कहते हैं। कविता में इतनी सादगी, इतना औदात्य, इतनी स्पष्टता, इतनी स्वच्छता, इतना आकर्षण सामान्यतः नहीं मिलता, किंतु इस संग्रह की हर कविता ने हृदय को छुआ है और केवल छुआ ही नहीं, आलोकित भी किया है। यह काम शायद तब ही हो पाता है, जब साधक बनावट से दूर किसी ऐसे वट के नीचे बैठकर तपस्या करे, जिसे आत्मचिंतन का वटवृक्ष कहते हैं, जिसे निश्छल प्रेम के वंशी-वट की संज्ञा दी जाती है, जो समाज-हित की वाट में आनेवाले किसी भी वटमार के फंदे में नहीं फँसा है और जिसे अध्यात्म की संजीवनी वटी मिल गई है। प्रभु इस संग्रह के कवि के इस रूप को ऐसा ही बना रहने दें, यही प्रार्थना है। इस संग्रह में कविताओं के साथ जो रेखांकन हैं, वे भी इतने बोलते हुए हैं, जितनी कि इस संग्रह में कवि की बोलती हुई अनुभूतियों वाली कविताएँ बोल रही हैं।—डॉ. कुँअर बेचैन.

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Description

बोलती अनुभूतियाँ की कविताओं के संदर्भ में साध्य का प्रश्न है, तो यहाँ यह साध्य कभी स्वयं कवि ही प्रतीत होता है, जो अपनी कविता के माध्यम से स्वयं तक पहुँचना चाहता है; इस स्थिति में ये कविताएँ आत्मसाक्षात्कार, आत्मचिंतन और आत्माभिव्यक्ति का ही दूसरा रूप लगती हैं। इस संग्रह की कुछ कविताओं में कवि का साध्य समाज और समाज का हित-चिंतन भी दिखाई देता है, यहाँ ये कविताएँ समाज-सुधारिका का बाना पहनकर लोगों के हृदय तक जाती हैं और उनके हृदय को निर्मल बनाती चलती हैं और कहीं-कहीं इस संग्रह की कविताएँ ऐसी भी हैं, जहाँ कवि का साध्य उसका वह आराध्य है, जिसे परमात्मा कहते हैं। कविता में इतनी सादगी, इतना औदात्य, इतनी स्पष्टता, इतनी स्वच्छता, इतना आकर्षण सामान्यतः नहीं मिलता, किंतु इस संग्रह की हर कविता ने हृदय को छुआ है और केवल छुआ ही नहीं, आलोकित भी किया है। यह काम शायद तब ही हो पाता है, जब साधक बनावट से दूर किसी ऐसे वट के नीचे बैठकर तपस्या करे, जिसे आत्मचिंतन का वटवृक्ष कहते हैं, जिसे निश्छल प्रेम के वंशी-वट की संज्ञा दी जाती है, जो समाज-हित की वाट में आनेवाले किसी भी वटमार के फंदे में नहीं फँसा है और जिसे अध्यात्म की संजीवनी वटी मिल गई है। प्रभु इस संग्रह के कवि के इस रूप को ऐसा ही बना रहने दें, यही प्रार्थना है। इस संग्रह में कविताओं के साथ जो रेखांकन हैं, वे भी इतने बोलते हुए हैं, जितनी कि इस संग्रह में कवि की बोलती हुई अनुभूतियों वाली कविताएँ बोल रही हैं।—डॉ. कुँअर बेचैन.

About Author

महेश भागचन्दका जन्म: 1 अगस्त, 1958 जन्म-स्थान: कोलकाता। शिक्षा: बी.कॉम., कलकत्ता विश्व-विद्यालय। संस्थापक: अशोक सिंहल फाउंडेशन, भागचन्दका चैरीटेबल ट्रस्ट एवं अन्य अनेक सामाजिक संस्थाओं से संबद्ध। अभिरुचि: कविता, भ्रमण तथा मानव-कल्याण कार्य।

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