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Bolegi Na Bulbul Ab
Publisher:
Rajpal and Sons
| Author:
Khushwant Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
₹295 ₹266
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1-4 Days
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ISBN:
Category: Uncategorized
Page Extent:
236
बोलेगी ना बुलबुल अब’ खुशवंत सिंह के उपन्यास ‘आई शैल नॉट हियर द नाइटिंगल’ का अनुवाद है। समय है 1942-43 जब भारतीय क्रांतिकारियों का ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार, फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट सरदार बूटा सिंह अपने परिवार के साथ अमृतसर में रहते हैं और खबर है कि जल्दी ही सम्मान-सूची मे उनका नाम आने वाला है। लेकिन बूटा सिंह इस बात से बिलकुल बेखबर हैं कि उनका बेटा क्रांतिकारियों के एक गिरोह का नेता बन गया है और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने में लगा है। बूटा सिंह को जब यह बात पता चलती है तो मैं अपने बेटे को बेदखल कर देते हैं। भगवान में आस्था रखने वाली बूटा सिंह की पत्नी सभराई अपने वाहेगुरु से इस मुश्किल घड़ी का सामना करने के लिए अरदास करती है। एक तरफ बेटे की ज़िन्दगी जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही है तो दूसरी तरफ उसके पति की इज्ज़त का सवाल है। कैसे होगा इस कठिन घड़ी में बचने का उपाय…..
जाने-माने लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह का यह उपन्यास भावनाओं की उधेड़बुन को बखूबी दर्शाता है।
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Description
बोलेगी ना बुलबुल अब’ खुशवंत सिंह के उपन्यास ‘आई शैल नॉट हियर द नाइटिंगल’ का अनुवाद है। समय है 1942-43 जब भारतीय क्रांतिकारियों का ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था। अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार, फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट सरदार बूटा सिंह अपने परिवार के साथ अमृतसर में रहते हैं और खबर है कि जल्दी ही सम्मान-सूची मे उनका नाम आने वाला है। लेकिन बूटा सिंह इस बात से बिलकुल बेखबर हैं कि उनका बेटा क्रांतिकारियों के एक गिरोह का नेता बन गया है और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने में लगा है। बूटा सिंह को जब यह बात पता चलती है तो मैं अपने बेटे को बेदखल कर देते हैं। भगवान में आस्था रखने वाली बूटा सिंह की पत्नी सभराई अपने वाहेगुरु से इस मुश्किल घड़ी का सामना करने के लिए अरदास करती है। एक तरफ बेटे की ज़िन्दगी जीवन और मृत्यु के बीच झूल रही है तो दूसरी तरफ उसके पति की इज्ज़त का सवाल है। कैसे होगा इस कठिन घड़ी में बचने का उपाय…..
जाने-माने लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह का यह उपन्यास भावनाओं की उधेड़बुन को बखूबी दर्शाता है।
About Author
‘‘ ‘साहित्यिक’ दृष्टि से यह उपन्यास चौकाने वाला ही कहा जाएगा। लेकिन है यह बहुत ज़्यादा पठनीय-पाठक इसके पृष्ठ उलटता ही चला जाएगा। यह एक ऐसे अकेले, भले आदमी की कहानी है जो सेक्स की तलाश में भटक रहा है।
इस दृष्टि से उपन्यास बहुत सफल है। आश्चर्य ही होता है कि प्रतिभाशाली लेखकों से भरे इस देश में सेक्स का यथार्थ चित्रण करने के लिए एक 85-वर्षीय लेखक को ही आगे आना पड़ा।
खुशवन्त सिंह ने अनेक धर्मों-ईसाई, मुस्लिम, हिन्दू, बौद्ध और सिख-की स्त्रियों से नायक मोहनकुमार का सम्बन्ध कराया है-और अन्त में यह उपन्यास एक उदासी छोड़ जाता है।’’
-‘आउटलुक’
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