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Bhartiya Darshan Eak Parichay (An Introduction To Indian Philosophy)
Publisher:
Motilal Banarsidass International
| Author:
Satischandra Chatterjee & Dhirendramohan Datta
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Motilal Banarsidass International
Author:
Satischandra Chatterjee & Dhirendramohan Datta
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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Weight | 1000 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
Page Extent:
314
प्राचीन तथा अर्वाचीन हिंदू और अहिंदू, आस्तिक तथा नास्तिक जितने प्रकार के भारतीय है, सबों के दार्शनिक विचारों को भारतीय दर्शन कहते हैं। कुछ लोग भारतीय दर्शन को हिंदू दर्शन का पर्याय मानते हैं, किंतु यदि हिंदू शब्द का अर्थ वैदिक धर्मावलंबी हो तो भारतीय दर्शन’ का अर्थ केवल हिंदुओं का दर्शन समझना अनुचित होगा। इस संबंध में हम माधवाचार्य के सर्वदर्शन संग्रह का उल्लेख कर सकते हैं। माधवाचार्य स्वयं वेदानुयायी हिंदू थे। उन्होंने उपर्युक्त ग्रंथ में चार्वाक, बौद्ध तथा जैन मतों का भी दर्शन में स्थान दिया। इन मतों के प्रवर्त्तक वैदिक धर्मानुयायी हिंदू नहीं थे फिर भी इन मतों को भारतीय दर्शन में वही स्थान प्राप्त है, जो वैदिक हिंदुओं के द्वारा प्रवर्तित दर्शनों को है। भारतीय दर्शन की दृष्टि व्यापक है। यद्यपि भारतीय दर्शन की अनेक शाखाएँ हैं तथा उनमें मतभेद भी हैं, फिर भी वे एक-दूसरे की अपेक्षा नहीं करती हैं। सभी शाखाएँ एक-दूसरे के विचारों को समझने का प्रयत्न करती हैं। वे विचारों की युक्तिपूर्वक समीक्षा करती हैं, तभी किसी सिद्धांत पर पहुँचती है। इसी उदार मनोवृत्ति का फल है कि भारतीय दर्शन में विचार-विमर्श के लिए एक विशेष प्रणाली की उत्पत्ति हुई। इस प्रणाली के अनुसार पहल पूर्वपक्ष होता है, तब खंडन होता है, अंत में उत्तर पक्ष पा सिद्धांत होता है । पूर्वपक्ष में विरोधी मत की व्याख्या होती है। उसके बाद उसका खंडन या निराकरण होता है। अंत में उत्तर-पक्ष आता है जिसमें दार्शनिक अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है।
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Description
प्राचीन तथा अर्वाचीन हिंदू और अहिंदू, आस्तिक तथा नास्तिक जितने प्रकार के भारतीय है, सबों के दार्शनिक विचारों को भारतीय दर्शन कहते हैं। कुछ लोग भारतीय दर्शन को हिंदू दर्शन का पर्याय मानते हैं, किंतु यदि हिंदू शब्द का अर्थ वैदिक धर्मावलंबी हो तो भारतीय दर्शन’ का अर्थ केवल हिंदुओं का दर्शन समझना अनुचित होगा। इस संबंध में हम माधवाचार्य के सर्वदर्शन संग्रह का उल्लेख कर सकते हैं। माधवाचार्य स्वयं वेदानुयायी हिंदू थे। उन्होंने उपर्युक्त ग्रंथ में चार्वाक, बौद्ध तथा जैन मतों का भी दर्शन में स्थान दिया। इन मतों के प्रवर्त्तक वैदिक धर्मानुयायी हिंदू नहीं थे फिर भी इन मतों को भारतीय दर्शन में वही स्थान प्राप्त है, जो वैदिक हिंदुओं के द्वारा प्रवर्तित दर्शनों को है। भारतीय दर्शन की दृष्टि व्यापक है। यद्यपि भारतीय दर्शन की अनेक शाखाएँ हैं तथा उनमें मतभेद भी हैं, फिर भी वे एक-दूसरे की अपेक्षा नहीं करती हैं। सभी शाखाएँ एक-दूसरे के विचारों को समझने का प्रयत्न करती हैं। वे विचारों की युक्तिपूर्वक समीक्षा करती हैं, तभी किसी सिद्धांत पर पहुँचती है। इसी उदार मनोवृत्ति का फल है कि भारतीय दर्शन में विचार-विमर्श के लिए एक विशेष प्रणाली की उत्पत्ति हुई। इस प्रणाली के अनुसार पहल पूर्वपक्ष होता है, तब खंडन होता है, अंत में उत्तर पक्ष पा सिद्धांत होता है । पूर्वपक्ष में विरोधी मत की व्याख्या होती है। उसके बाद उसका खंडन या निराकरण होता है। अंत में उत्तर-पक्ष आता है जिसमें दार्शनिक अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है।
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