Bharatiya Sanskritik Moolya

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. Bajrang Lal Gupta
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Dr. Bajrang Lal Gupta
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Hindi
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Hardback

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भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है। समृद्ध कला, कौशल और तकनीक के बल पर विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में भारत की भागीदारी 25-30 प्रतिशत तक थी। लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा कई शताब्दियों तक इसे लगातार लूटे जाने और विदेशी शासन के कारण भारत का वैभव बीते दिनों की बात बनकर रह गया। उत्पीड़ित और असहाय जन-समुदाय ने इस आपदा से मुक्ति के लिए भगवान् की शरण ली। दो सौ वर्ष के अंग्रेजी राज में पश्चिम का बुद्धिजीवी वर्ग यह प्रचारित करने लगा कि भारतीय समाज केवल परलोक की चिंता करनेवाला व पलायनवादी है और आर्थिक मामलों को लेकर भारत की कोई सोच ही नहीं है। इसी अवधारणा की छाया में भारत ने स्वतंत्रता के उपरांत अपने विकास के लिए पश्चिमी वैचारिक अधिष्ठान पर आधारित सामाजिक, आर्थिक संरचना के निर्माण का प्रयोग किया। लेकिन इससे समस्याएँ सुलझने के बजाय उलझती ही जा रही हैं। यही नहीं, अनेक प्रकार की उपलब्धियों के बावजूद आज विश्व के अनेक विचारक पश्चिमी देशों की प्रगति की दृष्टि एवं दिशा से संतुष्ट नहीं हैं। आज पूरा विश्व एक वैकल्पिक विकास मॉडल चाहता है। प्रख्यात अर्थशास्त्रा् डॉ. बजरंग लाल गुप्ता ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू अर्थचिंतन : दृष्टि एवं दिशा’ में भारतीय अर्थचिंतन की सुदीर्घ एवं पुष्ट चिंतन परंपरा का विशद् वर्णन करते हुए पश्चिमी अर्थचिंतन की उन खामियों का भी सांगोपांग विश्लेषण किया है, जिसके कारण पूरा विश्व आज आर्थिक-सामाजिक संकट के कगार पर खड़ा है। इस वैश्विक संकट से उबरने के लिए उन्होंने भारतीय अर्थचिंतन पर आधारित एक ऐसा वैकल्पिक मार्ग भी सुझाया है, जो सर्वमंगलकारी है।

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Description

भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता रहा है। समृद्ध कला, कौशल और तकनीक के बल पर विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में भारत की भागीदारी 25-30 प्रतिशत तक थी। लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा कई शताब्दियों तक इसे लगातार लूटे जाने और विदेशी शासन के कारण भारत का वैभव बीते दिनों की बात बनकर रह गया। उत्पीड़ित और असहाय जन-समुदाय ने इस आपदा से मुक्ति के लिए भगवान् की शरण ली। दो सौ वर्ष के अंग्रेजी राज में पश्चिम का बुद्धिजीवी वर्ग यह प्रचारित करने लगा कि भारतीय समाज केवल परलोक की चिंता करनेवाला व पलायनवादी है और आर्थिक मामलों को लेकर भारत की कोई सोच ही नहीं है। इसी अवधारणा की छाया में भारत ने स्वतंत्रता के उपरांत अपने विकास के लिए पश्चिमी वैचारिक अधिष्ठान पर आधारित सामाजिक, आर्थिक संरचना के निर्माण का प्रयोग किया। लेकिन इससे समस्याएँ सुलझने के बजाय उलझती ही जा रही हैं। यही नहीं, अनेक प्रकार की उपलब्धियों के बावजूद आज विश्व के अनेक विचारक पश्चिमी देशों की प्रगति की दृष्टि एवं दिशा से संतुष्ट नहीं हैं। आज पूरा विश्व एक वैकल्पिक विकास मॉडल चाहता है। प्रख्यात अर्थशास्त्रा् डॉ. बजरंग लाल गुप्ता ने अपनी पुस्तक ‘हिंदू अर्थचिंतन : दृष्टि एवं दिशा’ में भारतीय अर्थचिंतन की सुदीर्घ एवं पुष्ट चिंतन परंपरा का विशद् वर्णन करते हुए पश्चिमी अर्थचिंतन की उन खामियों का भी सांगोपांग विश्लेषण किया है, जिसके कारण पूरा विश्व आज आर्थिक-सामाजिक संकट के कगार पर खड़ा है। इस वैश्विक संकट से उबरने के लिए उन्होंने भारतीय अर्थचिंतन पर आधारित एक ऐसा वैकल्पिक मार्ग भी सुझाया है, जो सर्वमंगलकारी है।

About Author

डॉ. बजरंग लाल गुप्ता ने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से 1966 में अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और 1985 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से अपने शोध प्रबंध ‘वैल्यू एंड डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम इन एनशियंट इंडिया’ पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। अनेक वर्षों के अध्यापन के अनुभव के उपरांत 2005 में दिल्ली विश्वविद्यालय के स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज में अर्थशास्त्र के रीडर पद से सेवानिवृत्त हुए। रचना-संसार : ‘भारत का आर्थिक इतिहास’ हरियाणा साहित्य अकादमी; ‘वैल्यू एंड डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम इन एनशियंट इंडिया’ ज्ञान पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली; ‘हिंदू अर्थ चिंतन’ भारतीय विचार साधना, नागपुर; ‘विकास का नया प्रतिमान : सुमंगलम्’ सुरुचि प्रकाशन, नई दिल्ली; ‘ए न्यू पैराडाइम ऑफ डवलेपमेंट’ ज्ञान पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, अंग्रेजी अनुवाद; ‘सुमंगलम्’ साहित्य संगम, बेंगलुरु, कन्नड़ अनुवाद। डॉ. बजरंग लाल गुप्ता ने हिंदू आर्थिक चिंतन के आधार पर विकास की जिस नई अवधारणा का प्रतिपादन किया है, उसपर कई विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हो रहे हैं। ऐसा ही एक शोधग्रंथ ‘सुमंगलम् एन एनेलेटिकल स्टडी—संपादक प्रो. सुदेश कुमार गर्ग’ हिमाचल विश्वविद्यालय की ‘दीनदयाल उपाध्याय पीठ’ द्वारा प्रकाशित किया गया है।

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