Bharatiya Girmitiya Mazdoor Aur Unke Vanshaj

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dinesh Chandra Shrivastava
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Dinesh Chandra Shrivastava
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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इस पुस्तक में गुलामी प्रथा के उन्मूलन के बाद ब्रिटिश तथा अन्य यूरोपीय देशों द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से लेकर बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक तक भारतीयों को छल-कपट द्वारा गिरमिटिया मजदूर बनाकर दुनिया भर में दक्षिण अमेरिका से लेकर प्रशांत क्षेत्र तक फैले अपने उपनिवेशों में भेजने, भारतीय गिरमिटिया मजदूरों पर होनेवाले जुल्मों और उसके विरुद्ध संघर्ष तथा गिरमिट मजदूरी के उन्मूलन से संबंधित विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इन सुदूर उपनिवेशों में क शक्तियों का अत्याचार सहते हुए विकट परिस्थितियों में भी इन भारतीय गिरमिटिया मजदूरों ने जिस तरह अपने धर्म एवं संस्कृति को बचाए रखा और इसी के अवलंबन से आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में जो प्रगति की, वह अवश्य ही बहु प्रसंशनीय है। यद्यपि बँधुआ मजदूरी प्रथा का अंत लगभग एक सदी पूर्व हो चुका है, परंतु इन उपनिवेशों में बसे भारतीय मूल के बँधुआ मजदूरों के वंशजों के समक्ष कई समस्याएँ अभी भी मौजूद हैं, जिसका वर्णन इस पुस्तक में किया गया है। भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के शोषण और उनपर हुए अन अत्याचारों की व्यथा-कथा है यह पुस्तक। साथ ही इनसे संघर्ष करके अद्भुत जिजीविषा का प्रदर्शन कर सफलता के उच्च स्तर को प्राप्त करने की सफलगाथा भी।.

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Description

इस पुस्तक में गुलामी प्रथा के उन्मूलन के बाद ब्रिटिश तथा अन्य यूरोपीय देशों द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से लेकर बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक तक भारतीयों को छल-कपट द्वारा गिरमिटिया मजदूर बनाकर दुनिया भर में दक्षिण अमेरिका से लेकर प्रशांत क्षेत्र तक फैले अपने उपनिवेशों में भेजने, भारतीय गिरमिटिया मजदूरों पर होनेवाले जुल्मों और उसके विरुद्ध संघर्ष तथा गिरमिट मजदूरी के उन्मूलन से संबंधित विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इन सुदूर उपनिवेशों में क शक्तियों का अत्याचार सहते हुए विकट परिस्थितियों में भी इन भारतीय गिरमिटिया मजदूरों ने जिस तरह अपने धर्म एवं संस्कृति को बचाए रखा और इसी के अवलंबन से आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में जो प्रगति की, वह अवश्य ही बहु प्रसंशनीय है। यद्यपि बँधुआ मजदूरी प्रथा का अंत लगभग एक सदी पूर्व हो चुका है, परंतु इन उपनिवेशों में बसे भारतीय मूल के बँधुआ मजदूरों के वंशजों के समक्ष कई समस्याएँ अभी भी मौजूद हैं, जिसका वर्णन इस पुस्तक में किया गया है। भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के शोषण और उनपर हुए अन अत्याचारों की व्यथा-कथा है यह पुस्तक। साथ ही इनसे संघर्ष करके अद्भुत जिजीविषा का प्रदर्शन कर सफलता के उच्च स्तर को प्राप्त करने की सफलगाथा भी।.

About Author

जन्म सन् 1963 में ग्राम खेमपिपरा, जिला महराजगंज (उत्तर प्रदेश) में। मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज, गोरखपुर तथा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से क्रमशः बी.ई. और एम.टेक. की शिक्षा ग्रहण की। उसके उपरांत नेशनल ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिसी स्टडीज, टोक्यो, जापान से मास्टर ऑफ पब्लिक पॉलिसी की शिक्षा प्राप्त की, जहाँ पर उन्हें उत्कृष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन (डिस्टिंग्विश्ड एकैडेमिक परफॉर्मेंस) के लिए सम्मानित किया गया। संप्रति: भारत सरकार की संस्था में वरिष्ठ प्रशासनिक स्तर के अधिकारी हैं। ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, राजनीति शास्त्र तथा रक्षा उत्पादन से संबंधित लेख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं।.

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