Bharatiya Bhoogol Ka Sankshipt Itihas

Publisher:
Penguin Random House
| Author:
Sanjeev Sanyal
| Language:
English
| Format:
Paperback

255

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SKU 9780143441083 Category Tag
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304

यह पुस्तक भारत के भूगोल के इतिहास की कहानी है। हालाँकि मेरे पास बतौर इतिहासकार न तो कोई औपचारिक प्रशिक्षण है और न ही भूगोल-विज्ञानी की योग्यता, लेकिन फिर भी, मैंने यह पुस्तक लिखी। इस पुस्तक को लिखते समय मुझे ऐसा लगता रहा मानो मैं बरसों से इस पुस्तक को लिखने की तैयारी कर रहा था। इससे जुड़े विचार, तथ्य, संवाद जो शायद वर्षों से मेरे अंतर्मन में दबे-छिपे पड़े थे इस पुस्तक के हर अध्याय के साथ एक-एक करके बाहर आ गए। अर्थशास्त्री के तौर पर मेरा व्यवसाय, पुराने नक्शों और वन्य जीवन के प्रति मेरा प्रेम, शहरों के बसाव के बारे में मेरी जानकारी और भारत एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के अनेक दौरों के दौरान हासिल अनुभव स्वतः ही आपस में घुल-मिलकर एक चित्र बनाने लगे थे। लेकिन इस सबके बावजूद इस इतिहास को लिखना आसान नहीं था। मैंने ढेरों प्राचीन धार्मिक ग्रंथ पढ़े, बहुत से मध्यकालीन यात्रा संस्मरणों को खँगाला और अनेक अकादमिक पत्रों के पन्ने पलट डाले, जो कि अनगिनत ऐसे उलझे विषय थे, जिनका आपस में सीधे तौर पर कोई संबंध नहीं था। अकसर इन विषयों को सही मायनों में समझने के लिए एक से ज्यादा बार पढ़ना पड़ता था और यह एक अच्छी-खासी मेहनत थी; लेकिन मैंने इस मेहनत से कभी परहेज नहीं किया, क्योंकि इस पुस्तक में लिखी हर बात मेरे दिलो-दिमाग पर छाई हुई थी।

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Description

यह पुस्तक भारत के भूगोल के इतिहास की कहानी है। हालाँकि मेरे पास बतौर इतिहासकार न तो कोई औपचारिक प्रशिक्षण है और न ही भूगोल-विज्ञानी की योग्यता, लेकिन फिर भी, मैंने यह पुस्तक लिखी। इस पुस्तक को लिखते समय मुझे ऐसा लगता रहा मानो मैं बरसों से इस पुस्तक को लिखने की तैयारी कर रहा था। इससे जुड़े विचार, तथ्य, संवाद जो शायद वर्षों से मेरे अंतर्मन में दबे-छिपे पड़े थे इस पुस्तक के हर अध्याय के साथ एक-एक करके बाहर आ गए। अर्थशास्त्री के तौर पर मेरा व्यवसाय, पुराने नक्शों और वन्य जीवन के प्रति मेरा प्रेम, शहरों के बसाव के बारे में मेरी जानकारी और भारत एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के अनेक दौरों के दौरान हासिल अनुभव स्वतः ही आपस में घुल-मिलकर एक चित्र बनाने लगे थे। लेकिन इस सबके बावजूद इस इतिहास को लिखना आसान नहीं था। मैंने ढेरों प्राचीन धार्मिक ग्रंथ पढ़े, बहुत से मध्यकालीन यात्रा संस्मरणों को खँगाला और अनेक अकादमिक पत्रों के पन्ने पलट डाले, जो कि अनगिनत ऐसे उलझे विषय थे, जिनका आपस में सीधे तौर पर कोई संबंध नहीं था। अकसर इन विषयों को सही मायनों में समझने के लिए एक से ज्यादा बार पढ़ना पड़ता था और यह एक अच्छी-खासी मेहनत थी; लेकिन मैंने इस मेहनत से कभी परहेज नहीं किया, क्योंकि इस पुस्तक में लिखी हर बात मेरे दिलो-दिमाग पर छाई हुई थी।

About Author

संजीव सान्याल एक अर्थशास्त्री, विचारक और लेखक हैं। वे सिक्किम, कलकत्ता और दिल्ली में पले-बढ़े और फिर रोड्स के छात्र के रूप में ऑक्सफोर्ड चले गए। संजीव ने अपने जीवन का अधिकांश समय अंतरराष्ट्रीय वित्त बाजारों से जूझते हुए बिताया, जिनमें से कुछ वर्ष मुंबई और काफी सिंगापुर में बीते। वर्ष 2008 में, बस अपनी मर्जी से ही, एक दिन उन्होंने भारत लौटने और पूरे परिवार के साथ देश भर में घूमने का फैसला किया। इसका परिणाम उनकी दूसरी बेहद लोकप्रिय पुस्तक ‘लैंड ऑफ द सेवन रिवर्स’ के रूप में सामने आया। फिर वर्ष 2011 में बिना किसी विशेष कारण के वे वित्त क्षेत्र में लौटे और दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में से एक में वैश्विक रणनीतिकार की भूमिका निभाई। उन्होंने अगले कुछ वर्ष हिंद महासागर के तटीय देशों ओमान, श्रीलंका, जंजीबार, वियतनाम, इंडोनेशिया से लेकर भारत के तट तक बिताए। इन यात्राओं के फलस्वरूप ‘द ओशन ऑफ चर्न ः हाउ द इंडियन ओशन शेप्ड ह्यूमन हिस्टरी’ सामने आई। वर्तमान में संजीव नई दिल्ली में रहते हैं, जहाँ वे भारत सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार की भूमिका निभा रहे हैं| --This text refers to an out of print or unavailable edition of this title.
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