Bharat-China Rishte : Dragon Ne Hathi Ko Kyon Dasa

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Ranjeet Kumar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

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न केवल भारत, बल्कि संपूर्ण विश्व में चीन रहस्यों के आवरण में ढका एक प्राचीन देश माना जाता रहा है। इसलिए चीन को समझने और चीन के प्रति अपना तटस्थ नजरिया बनाने के लिए जरूरी है कि प्राचीन चीन से लेकर आज के चीन की मानसिकता को हम समझें । जैसे-जैसे चीन की पश्चिमी देशों से होड़ बढ़ रही है और भारत का पश्चिमी झुकाव बढ़ता जा रहा है, उस माहौल में चीन यह देखता है कि भारत चीन के खिलाफ खड़ा हो चुका है। चीन को लेकर भारत और भारतीयों की सोच में एक बहुत बड़ी रिक्तता है। चीन के समक्ष आज भारत खड़ा है, लेकिन चीन की तरह भारत भी एक सभ्यतागत देश रहा है, इसलिए भारत विश्वगुरु बनने की चीनी महत्त्वाकांक्षा में आड़े आ रहा है, लेकिन कोई नहीं कहता कि भारत और चीन के बीच सभ्यताओं का टकराव है। भारत और चीन के बीच टकराव मुख्य तौर पर विश्व पर प्रभुत्व स्थापित करने की चीनी महत्त्वाकांक्षाओं के कारण है, जिसे समझाने का प्रयास आज के दौर के ताजा प्रकरणों के संदर्भ में रंजीत कुमार ने प्रस्तुत पुस्तक में किया है।

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Description

न केवल भारत, बल्कि संपूर्ण विश्व में चीन रहस्यों के आवरण में ढका एक प्राचीन देश माना जाता रहा है। इसलिए चीन को समझने और चीन के प्रति अपना तटस्थ नजरिया बनाने के लिए जरूरी है कि प्राचीन चीन से लेकर आज के चीन की मानसिकता को हम समझें । जैसे-जैसे चीन की पश्चिमी देशों से होड़ बढ़ रही है और भारत का पश्चिमी झुकाव बढ़ता जा रहा है, उस माहौल में चीन यह देखता है कि भारत चीन के खिलाफ खड़ा हो चुका है। चीन को लेकर भारत और भारतीयों की सोच में एक बहुत बड़ी रिक्तता है। चीन के समक्ष आज भारत खड़ा है, लेकिन चीन की तरह भारत भी एक सभ्यतागत देश रहा है, इसलिए भारत विश्वगुरु बनने की चीनी महत्त्वाकांक्षा में आड़े आ रहा है, लेकिन कोई नहीं कहता कि भारत और चीन के बीच सभ्यताओं का टकराव है। भारत और चीन के बीच टकराव मुख्य तौर पर विश्व पर प्रभुत्व स्थापित करने की चीनी महत्त्वाकांक्षाओं के कारण है, जिसे समझाने का प्रयास आज के दौर के ताजा प्रकरणों के संदर्भ में रंजीत कुमार ने प्रस्तुत पुस्तक में किया है।

About Author

रंजीत कुमार हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स से साढ़े तीन दशक तक जुड़े रहे और राजनयिक संपादक के तौर पर सेवारत रहे लेखक रंजीत कुमार 1984- 85 के दौरान पेइचिंग में रहे । चीन से नवभारत टाइम्स और कई अन्य पत्र-पत्रिकाओं के लिए रिपोर्ताज व लेख भेजकर भारतीयों को बदलते चीन के बारे में अवगत करानेवाले वह पहले भारतीय पत्रकारों में रहे हैं । दो हजार सालों के भारत-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि में आज के दौर में इन रिश्तों में इतनी कटुता क्‍यों पैदा हो गई है--इसकी पड़ताल लेखक ने अपने निजी संस्मरणों और अनुभवों के आधार पर करने की कोशिश प्रस्तुत पुस्तक में की है। लेखक की यह चौथी पुस्तक है । 1998 में परमाणु बम-रक्षा व राजनीति, 1999 में करगिल का सच, 2005 में SOUTH ASIAN UNION पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । 2004 में उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय में वुल्फसन प्रेस फेलो के तौर पर आमंत्रित किया गया था। वह अंतरराष्ट्रीय सामरिक व कूटनीतिक विषयों पर हिंदी व अंग्रेजी की पत्र- पत्रिकाओं में नियमित लिखते हैं । email : ranjitkumar101@gmail.com
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