BHAKTIYOG

Publisher:
Maple Press
| Author:
Swami Vivekanand
| Language:
English
| Format:
Paperback
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Maple Press
Author:
Swami Vivekanand
Language:
English
Format:
Paperback

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‘भक्ति योग’ – स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों पर आधारित है। इन्होनें दुनिया को एक राष्ट्र के रूप में भारत की एकता की सच्ची नींव के राज का खुलासा किया है। उन्होंने यह सिखाया है कि – भारत जो कि विशाल विविधता वाले देश है। इसको कैसे मानवता और भाईचारे की भावना से एक साथ बांधाकर रखा जा सकता है। विवेकानंद ने पश्चिमी संस्कृति की कमियों को उजागर कर और उन पर काबू कर पाने में भारत के योगदान के बिंदुओं पर जोर दिया है। उन्होंने शेष विश्व से भारत के सांस्कृतिक अलगाव को समाप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
‘भक्ति योग’ भगवान के लिए एक वास्तविक खोज है, जिसकी शुरुआत और अंत प्रेम पर होता है। इस किताब में ईश्वर के प्रति अत्यधिक प्रेम के पागलपन का एक क्षण हमें शाश्वत मुक्ति प्रदान करता है, इस पर जोर दिया गया है। जब मनुष्य इस वास्तविक प्रेम को प्राप्त कर लेता है, तो वह सबसे प्रेम करता है, किसी से घृणा नहीं करता और हमेशा के लिए संतुष्ट हो जाता है।

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Description

‘भक्ति योग’ – स्वामी विवेकानंद के व्याख्यानों पर आधारित है। इन्होनें दुनिया को एक राष्ट्र के रूप में भारत की एकता की सच्ची नींव के राज का खुलासा किया है। उन्होंने यह सिखाया है कि – भारत जो कि विशाल विविधता वाले देश है। इसको कैसे मानवता और भाईचारे की भावना से एक साथ बांधाकर रखा जा सकता है। विवेकानंद ने पश्चिमी संस्कृति की कमियों को उजागर कर और उन पर काबू कर पाने में भारत के योगदान के बिंदुओं पर जोर दिया है। उन्होंने शेष विश्व से भारत के सांस्कृतिक अलगाव को समाप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
‘भक्ति योग’ भगवान के लिए एक वास्तविक खोज है, जिसकी शुरुआत और अंत प्रेम पर होता है। इस किताब में ईश्वर के प्रति अत्यधिक प्रेम के पागलपन का एक क्षण हमें शाश्वत मुक्ति प्रदान करता है, इस पर जोर दिया गया है। जब मनुष्य इस वास्तविक प्रेम को प्राप्त कर लेता है, तो वह सबसे प्रेम करता है, किसी से घृणा नहीं करता और हमेशा के लिए संतुष्ट हो जाता है।

About Author

The real name of Swami Vivekananda was Narendranath Datta. He was born on 12 January, 1863 in Kolkata in a noble and religious Bengali family. He completed his studies from the Presidency College. He was not only a great saint but also a patriot, an orator, a theoretician as well as a great writer. On 4 July, 1902 he passed away while doing meditation. Swamiji was highly devoted towards the concept of ‘karma’. He always said, “One needs to be practical while dealing with any kind of work. Excessive theoretical principles have led to the destruction of the entire nation.” In Karmayoga, he has presented ‘karma’ as the guiding path to mental discipline and enlightenment. By summarizing the facts of the Bhagavad Gita, Swamiji has defined the essence of ‘karma’ and its importance in life.

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