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Aurat Ke Haq Mein
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
तसलीमा नसरीन, अनुवाद - मुनमुन सरकार
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
तसलीमा नसरीन, अनुवाद - मुनमुन सरकार
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹495 ₹347
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ISBN:
SKU
9788181432940
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
192
पुरुष शासित समाज में स्त्रियों के अधिकार और नारी मुक्ति को लेकर चाहे जितने बड़े-बड़े दावे पेश किये जायें, नारे लगाये जायें और चाहे जितनी बातें की जायें, बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन का स्वर, निस्सन्देह, सबसे भास्वर है। उनके लेखन का तेवर सर्वाधिक व्यंग्य मुखर और तिलमिला देने वाला है। संस्कार मुक्त प्रतिवादी और बेबाक तसलीमा ने अपने ‘निर्वाचित कलाम’ द्वारा बांग्लादेश में एक ज़बरदस्त हलचल सी मचा दी और जैसा कि तय था, विवाद के केन्द्र में आ गयीं। इस अप्रतिम रचना को आनन्द पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की ख़बर से सारे देश में इस कृति के प्रति स्वभावतः कौतूहल पैदा हो गया। उक्त रचना के साथ उनके द्वारा इसी विषय पर लिखित उनके अन्य लेखों को भी प्रस्तुत संस्करण में सम्मिलित कर लिया गया है। इस कृति में तसलीमा के बचपन से लेकर अब तक की निर्मम नग्न और निष्ठुर घटनाओं और अनुभवों के आलोक में नये सवाल उठाये गये हैं, जिनसे स्त्रियों के समान अधिकारों को एक सार्थक एवं निर्णायक प्रस्थान प्राप्त हुआ है।
प्रस्तुत कृति में पुरुष शासित समाज में स्त्रियों की दुर्दशा का हू-ब-हू चित्रण है। स्त्री-भोग्या मात्र है और धर्मशास्त्रों ने भी उसके पाँवों में बेड़ियाँ डाल रखी हैं। ईश्वर की कल्पना तक में परोक्षतः नारी-पीड़ा का समर्थन किया गया है। सामाजिक रूढ़ियों के पालन में, और दाम्पत्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यानी स्त्रियों के किसी भी मामले में पुरुषों की लालसा, नीचता, आक्रामकता और निरंकुश अधिकार भाव को तसलीमा ने खुलेआम चुनौती दी है। अपनी दुस्साहसपूर्ण भाषा-शैली और दो टूक अन्दाज़ में अपने विचारों को इस तरह रखा है कि पाठक एकबारगी तिलमिला उठता है।
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Description
पुरुष शासित समाज में स्त्रियों के अधिकार और नारी मुक्ति को लेकर चाहे जितने बड़े-बड़े दावे पेश किये जायें, नारे लगाये जायें और चाहे जितनी बातें की जायें, बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन का स्वर, निस्सन्देह, सबसे भास्वर है। उनके लेखन का तेवर सर्वाधिक व्यंग्य मुखर और तिलमिला देने वाला है। संस्कार मुक्त प्रतिवादी और बेबाक तसलीमा ने अपने ‘निर्वाचित कलाम’ द्वारा बांग्लादेश में एक ज़बरदस्त हलचल सी मचा दी और जैसा कि तय था, विवाद के केन्द्र में आ गयीं। इस अप्रतिम रचना को आनन्द पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की ख़बर से सारे देश में इस कृति के प्रति स्वभावतः कौतूहल पैदा हो गया। उक्त रचना के साथ उनके द्वारा इसी विषय पर लिखित उनके अन्य लेखों को भी प्रस्तुत संस्करण में सम्मिलित कर लिया गया है। इस कृति में तसलीमा के बचपन से लेकर अब तक की निर्मम नग्न और निष्ठुर घटनाओं और अनुभवों के आलोक में नये सवाल उठाये गये हैं, जिनसे स्त्रियों के समान अधिकारों को एक सार्थक एवं निर्णायक प्रस्थान प्राप्त हुआ है।
प्रस्तुत कृति में पुरुष शासित समाज में स्त्रियों की दुर्दशा का हू-ब-हू चित्रण है। स्त्री-भोग्या मात्र है और धर्मशास्त्रों ने भी उसके पाँवों में बेड़ियाँ डाल रखी हैं। ईश्वर की कल्पना तक में परोक्षतः नारी-पीड़ा का समर्थन किया गया है। सामाजिक रूढ़ियों के पालन में, और दाम्पत्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यानी स्त्रियों के किसी भी मामले में पुरुषों की लालसा, नीचता, आक्रामकता और निरंकुश अधिकार भाव को तसलीमा ने खुलेआम चुनौती दी है। अपनी दुस्साहसपूर्ण भाषा-शैली और दो टूक अन्दाज़ में अपने विचारों को इस तरह रखा है कि पाठक एकबारगी तिलमिला उठता है।
About Author
तसलीमा नसरीन
तसलीमा नसरीन ने अनगिनत पुरस्कार और सम्मान अर्जित किये हैं, जिनमें शामिल हैं-मुक्त चिन्तन के लिए यूरोपीय संसद द्वारा प्रदत्त - सखारव पुरस्कार; सहिष्णुता और शान्ति प्रचार के लिए यूनेस्को पुरस्कार; फ्रांस सरकार द्वारा मानवाधिकार पुरस्कार; धार्मिक आतंकवाद के ख़िलाफ संघर्ष के लिए फ्रांस का एडिट द नान्त पुरस्कार; स्वीडन लेखक संघ का टूखोलस्की पुरस्कार; जर्मनी की मानववादी संस्था का अर्विन फिशर पुरस्कार; संयुक्त राष्ट्र का फ्रीडम नाम रिलिजन फाउण्डेशन से फ्री थॉट हीरोइन पुरस्कार और बेल्जियम के मेंट विश्वविद्यालय से सम्मानित डॉक्टरेट! वे अमेरिका की ह्युमैनिस्ट अकादमी की ह्युमैनिस्ट लॉरिएट हैं। भारत में दो बार, अपने 'निर्वाचित कलाम' और 'मेरे बचपन के दिन' के लिए वे 'आनन्द पुरस्कार' से सम्मानित ।
तसलीमा की पुस्तकें अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इतालवी, स्पैनिश, जर्मन समेत दुनिया की तीस भाषाओं में अनूदित हुई हैं। मानववाद, मानवाधिकार, नारी-स्वाधीनता और नास्तिकता जैसे विषयों पर दुनिया के अनगिनत विश्वविद्यालयों के अलावा, इन्होंने विश्वस्तरीय मंचों पर अपने बयान जारी किये हैं। 'अभिव्यक्ति के अधिकार' के समर्थन में, वे समूची दुनिया में, एक आन्दोलन का नाम बन चुकी हैं।
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