Angrezi-Hindi Shabdon Ka Theek Prayog

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. K.C. Bhatia
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

375

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Page Extent:
236

राजभाषा अधिनियम सन् 1963 के अनुसार, भारत सरकार में व्यापक रूप से द्विभाषा-हिंदी तथा अंग्रेजी-नीति का परिपालन अनिवार्य हो गया है । प्रत्येक भाषा में ऐसे अनेक मिलते-जुलते शब्द होते हैं जिनको पर्याय समझ लिया जाता है । ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो गया है कि इन मिलते-जुलते शब्दों की स्पष्‍ट संकल्पना, अंग्रेजी-हिंदी दोनों में, हो । साहित्यपरक शब्दों पर तो ऐसा कार्य हुआ है, पर दिन-प्रतिदिन प्रयोग में आनेवाले शब्दों के सूक्ष्म अर्थभेद 7 अर्थच्छटाएँ स्पष्‍ट हों, ऐसा प्रयास नहीं हुआ था । प्रयोग और संदर्भ- भेद से ही अर्थ- भेद निश्‍च‌ित होता है । इस प्रक्रिया से शब्दों के ठीक प्रयोग की ओर प्रयोगकर्ता उन्मुख हो सकेंगे और श‍ब्‍दों क अर्थो के सूक्ष्म अंतर को भी समझने का प्रयास कर सकेंगे । प्रकारांतर से इस कार्य से यह बात भी स्वयं सिद्ध हो जाती है कि अंग्रेजी की तुलना में हिंदी की अभिव्यंजना-शक्‍त‌ि किसी भी प्रकार कम नहीं है । विश्‍वास है कि व्यावहारिक क्षेत्र में इस पुस्तक का विशेष उपयोग होगा ।.

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Description

राजभाषा अधिनियम सन् 1963 के अनुसार, भारत सरकार में व्यापक रूप से द्विभाषा-हिंदी तथा अंग्रेजी-नीति का परिपालन अनिवार्य हो गया है । प्रत्येक भाषा में ऐसे अनेक मिलते-जुलते शब्द होते हैं जिनको पर्याय समझ लिया जाता है । ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो गया है कि इन मिलते-जुलते शब्दों की स्पष्‍ट संकल्पना, अंग्रेजी-हिंदी दोनों में, हो । साहित्यपरक शब्दों पर तो ऐसा कार्य हुआ है, पर दिन-प्रतिदिन प्रयोग में आनेवाले शब्दों के सूक्ष्म अर्थभेद 7 अर्थच्छटाएँ स्पष्‍ट हों, ऐसा प्रयास नहीं हुआ था । प्रयोग और संदर्भ- भेद से ही अर्थ- भेद निश्‍च‌ित होता है । इस प्रक्रिया से शब्दों के ठीक प्रयोग की ओर प्रयोगकर्ता उन्मुख हो सकेंगे और श‍ब्‍दों क अर्थो के सूक्ष्म अंतर को भी समझने का प्रयास कर सकेंगे । प्रकारांतर से इस कार्य से यह बात भी स्वयं सिद्ध हो जाती है कि अंग्रेजी की तुलना में हिंदी की अभिव्यंजना-शक्‍त‌ि किसी भी प्रकार कम नहीं है । विश्‍वास है कि व्यावहारिक क्षेत्र में इस पुस्तक का विशेष उपयोग होगा ।.

About Author

भाषा विज्ञान तथा हिंदी भाषा के विविध पक्षों पर अनुसंधान के साथ-साथ साहित्य की नवीन विधाओं की ओर प्रवृत्त। मदन मोहन मालवीय पुरस्कार, अयोध्याप्रसाद खत्री पुरस्कार, नातालि पुरस्कार आदि से सम्मानित। आगरा तथा अलीगढ़ विश्‍वविद्यालय से संबद्ध रहे। भूतपूर्व प्रोफेसर तथा अध्यक्ष, हिंदी तथा प्रादेशिक भाषाएँ, लाल बहादुर शास्त्री राष्‍ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी। पूर्व निदेशक, वृंदावन शोध संस्थान, वृंदावन। भारत सरकार के अनेक मंत्रालयों की राजभाषा सलाहकार समितियों के सदस्य। रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ इंग्लैंड के फेलो। प्रमुख रचनाएँ: अंग्रेजी-हिंदी अभिव्यक्ति कोश, अंग्रेजी-हिंदी शब्दों का ठीक प्रयोग, भारतीय भाषाएँ, शब्दश्री, अखिल भारतीय प्रशासनिक कोश, अनुवाद कला: सिद्धांत और प्रयोग, कामकाजी हिंदी, व्यावहारिक हिंदी, विधा-विविधा, भाषा-भूगोल, हिंदी भाषा शिक्षण, हिंदी की बेसिक शब्दावली, हिंदी काव्य भाषा की प्रवृत्तियाँ, रोडा कृत राउलवेल, हिंदी साहित्य की नवीन विधाएँ, उभरी-गहरी रेखाएँ (सं.), हिंदी भाषा में अक्षर तथा शब्द की सीमा, ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली का तुलनात्मक अध्ययन, हिंदी साहित्य का वृहद् इतिहास: अद्यतन काल (सं.), हिंदी भाषा: स्वरूप और विकास, राजभाषा हिंदी, मानक हिंदी वर्तनी, संक्षेपण और पल्लवन, प्रयोजनमूलक हिंदी।.

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