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Ameeri Rekha Ki Khoj Mein
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Vijay Kumar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Vijay Kumar
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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Book Type |
---|
ISBN:
Page Extent:
168
काफी सिर खपाने के बाद पिछले दिनों मुझे इस बारे में अंतिम सत्य पता लग ही गया। वह यह है कि अमीरी की रेखा मन, गाड़ी, घड़ी, कपड़े या कलम से नहीं, शौचालय से तय होती है। हमारे देश के महान् ‘योजना आयोग’ के कार्यालय में दो शौचालयों की मरम्मत में 35 लाख रुपए खर्च कर दिए गए। जरा सोचिए, मरम्मत में इतने खर्च हुए, तो नए बनने में कितने होते होंगे? जब कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति की, तो योजना आयोग के मुखिया श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने इसे बिल्कुल ठीक बताया। मैं उनकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ। बहुत से विचारकों का अनुभव है कि यही एकमात्र ऐसी जगह है, जहाँ व्यक्ति बिल्कुल एकांत में कुछ देर बैठकर, शांत भाव से मौलिक चिंतन कर सकता है। कई लेखकों को कालजयी उपन्यासों के विचार यहीं बैठकर आए हैं। श्री अहलूवालिया और उनके परम मित्र मनमोहन सिंह की जिन योजनाओं से रुपया रसातल में जा रहा है, उसके बारे में चिंतन और मनन इतने आलीशान शौचालय में ही हो सकता है। —इसी संग्रह से ——1—— समाज की विषमताओं और विद्रूपताओं पर मारक प्रहार करके अंतरावलोकन करने का भाव जाग्रत् करनेवाले व्यंग्य। ये न केवल आपको हँसाएँगे-गुदगुदाएँगे, बल्कि आपके अंतर्मन को उद्वेलित कर मानवीय संवेदना को उभारेंगे।.
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Khoj Mein” Cancel reply
Description
काफी सिर खपाने के बाद पिछले दिनों मुझे इस बारे में अंतिम सत्य पता लग ही गया। वह यह है कि अमीरी की रेखा मन, गाड़ी, घड़ी, कपड़े या कलम से नहीं, शौचालय से तय होती है। हमारे देश के महान् ‘योजना आयोग’ के कार्यालय में दो शौचालयों की मरम्मत में 35 लाख रुपए खर्च कर दिए गए। जरा सोचिए, मरम्मत में इतने खर्च हुए, तो नए बनने में कितने होते होंगे? जब कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति की, तो योजना आयोग के मुखिया श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने इसे बिल्कुल ठीक बताया। मैं उनकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ। बहुत से विचारकों का अनुभव है कि यही एकमात्र ऐसी जगह है, जहाँ व्यक्ति बिल्कुल एकांत में कुछ देर बैठकर, शांत भाव से मौलिक चिंतन कर सकता है। कई लेखकों को कालजयी उपन्यासों के विचार यहीं बैठकर आए हैं। श्री अहलूवालिया और उनके परम मित्र मनमोहन सिंह की जिन योजनाओं से रुपया रसातल में जा रहा है, उसके बारे में चिंतन और मनन इतने आलीशान शौचालय में ही हो सकता है। —इसी संग्रह से ——1—— समाज की विषमताओं और विद्रूपताओं पर मारक प्रहार करके अंतरावलोकन करने का भाव जाग्रत् करनेवाले व्यंग्य। ये न केवल आपको हँसाएँगे-गुदगुदाएँगे, बल्कि आपके अंतर्मन को उद्वेलित कर मानवीय संवेदना को उभारेंगे।.
About Author
Author जन्म: 1956। शिक्षा: एम.ए. (राजनीति शास्त्र, मेरठ वि.वि.)। आपातकाल में चार माह मेरठ कारावास में। 1980 से संघ के प्रचारक। 2000 से 2008—सहायक संपादक, राष्ट्रधर्म मासिक, लखनऊ। 2008 से 2016—प्रकाशन विभाग, वि.हि.प. केंद्रीय कार्यालय, दिल्ली। प्रकाशित पुस्तकें: पाँच बाल चित्रकथा, एक सचित्र बाल गीत, तीन व्यंग्य-संग्रह और यह जीवन समर्पित, है समाज आराध्य हमारा, सेवा पथ पर संन्यासी, तेजस्विनी, जीवन दीप जले, भारत जिनके मन बसा। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में 500 से अधिक लेख, व्यंग्य, कहानी तथा निबंध प्रकाशित। साप्ताहिक पाञ्चजन्य में 1991 से स्थायी स्तंभ ‘प्रशांत वाणी’ तथा 2010 से 2015 तक पाक्षिक स्तंभ ‘व्यंग्य बाण’। पर्यटन मंत्रालय की ‘सिंधु दर्शन स्मारिका’ में लेह-लद््दाख यात्रा-वर्णन। अनेक स्मारिकाओं तथा विशेषांकों के संकलन, संपादन व प्रकाशन में सहयोग। संप्रति: निदेशक, विश्व संवाद केंद्र, सुमन नगर, धर्मपुर
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