Bandi (HB)

Publisher:
Radhakrishna Prakashan
| Author:
Mannu Bhandari
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Radhakrishna Prakashan
Author:
Mannu Bhandari
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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मन्नू भंडारी की अभी तक असंकलित कहानियों की यह प्रस्तुति पाठकों को एक बार फिर अपनी उस प्रिय कथाकार की जादुई क़लम की याद दिलाएगी जिसने नई हिन्दी कहानी, और आज़ादी बाद बनते नए भारतीय समाज में अपनी पहचान तलाशती स्त्री के मन को रूपाकार देने में निर्णायक भूमिका निभाई।
नई कहानी आन्दोलन के उन दिनों में जब हिन्दी की रचनात्मकता अपनी प्रयोगशीलता को लेकर न सिर्फ़ मुखर बल्कि वाचाल प्रतीत होती थी, मन्नू जी ने अत्यन्त संयम के साथ बहुत सार्थक, रुचिकर, पठनीय और लोकप्रिय कहानियों-उपन्यासों की रचना की। अपने लेखक-व्यक्तित्व को लेकर हमेशा संशय में रहनेवाली मन्नू जी ने अपनी रचना-यात्रा के किसी भी मोड़ पर अपने स्वभाव को न किसी फ़ैशन के लिए छोड़ा, न किसी उपलब्धि के लिए। उनका रचना-लोक उनकी अपनी आभा से परिपूर्ण, हर नई कृति के साथ एक नए क्षितिज को रचता रहा। उनकी रचनाओं ने लेखक और पाठक के बीच दोतरफ़ा और सजीव रिश्ता बनाया। न उनकी कहानियों ने, और न ही उपन्यासों या नाटकों ने कभी पाठक से माँग की कि वह साहित्य को पढ़ने, उसकी प्रशंसा करने, उसका आनन्द लेने का प्राकृतिक अधिकार नहीं रखता, कि इसके लिए उसे किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। उनकी लिखी कथाएँ हर किसी को अपनी लगीं। और अपने अलावा सबकी भी। हिन्दी में ऐसे लेखकों की बहुतायत नहीं रही। न कभी पहले, न आज।
बाद के दिनों में मन्नू जी का लिखना बहुत कम हो गया था। ऐसे में उनकी ये कहानियाँ हमारे लिए अत्यधिक बहुमूल्य हो जाती हैं। इन कहानियों में से कुछ पत्र-पत्रिकाओं में आ चुकी हैं, जबकि कुछ पहली बार इस संग्रह में शामिल हैं।

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Description

मन्नू भंडारी की अभी तक असंकलित कहानियों की यह प्रस्तुति पाठकों को एक बार फिर अपनी उस प्रिय कथाकार की जादुई क़लम की याद दिलाएगी जिसने नई हिन्दी कहानी, और आज़ादी बाद बनते नए भारतीय समाज में अपनी पहचान तलाशती स्त्री के मन को रूपाकार देने में निर्णायक भूमिका निभाई।
नई कहानी आन्दोलन के उन दिनों में जब हिन्दी की रचनात्मकता अपनी प्रयोगशीलता को लेकर न सिर्फ़ मुखर बल्कि वाचाल प्रतीत होती थी, मन्नू जी ने अत्यन्त संयम के साथ बहुत सार्थक, रुचिकर, पठनीय और लोकप्रिय कहानियों-उपन्यासों की रचना की। अपने लेखक-व्यक्तित्व को लेकर हमेशा संशय में रहनेवाली मन्नू जी ने अपनी रचना-यात्रा के किसी भी मोड़ पर अपने स्वभाव को न किसी फ़ैशन के लिए छोड़ा, न किसी उपलब्धि के लिए। उनका रचना-लोक उनकी अपनी आभा से परिपूर्ण, हर नई कृति के साथ एक नए क्षितिज को रचता रहा। उनकी रचनाओं ने लेखक और पाठक के बीच दोतरफ़ा और सजीव रिश्ता बनाया। न उनकी कहानियों ने, और न ही उपन्यासों या नाटकों ने कभी पाठक से माँग की कि वह साहित्य को पढ़ने, उसकी प्रशंसा करने, उसका आनन्द लेने का प्राकृतिक अधिकार नहीं रखता, कि इसके लिए उसे किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है। उनकी लिखी कथाएँ हर किसी को अपनी लगीं। और अपने अलावा सबकी भी। हिन्दी में ऐसे लेखकों की बहुतायत नहीं रही। न कभी पहले, न आज।
बाद के दिनों में मन्नू जी का लिखना बहुत कम हो गया था। ऐसे में उनकी ये कहानियाँ हमारे लिए अत्यधिक बहुमूल्य हो जाती हैं। इन कहानियों में से कुछ पत्र-पत्रिकाओं में आ चुकी हैं, जबकि कुछ पहली बार इस संग्रह में शामिल हैं।

About Author

मन्नू भंडारी

भानपुरा, मध्य प्रदेश में 3 अप्रैल, 1931 को जन्मी मन्नू भंडारी को लेखन-संस्कार पिता श्री सुखसम्पतराय से विरासत में मिले। स्नातकोत्तर के उपरान्त लेखन के साथ-साथ वर्षों दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में हिन्दी का अध्यापन। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में ‘प्रेमचन्द सृजनपीठ’ की अध्यक्ष भी रहीं।

‘आपका बंटी’ और ‘महाभोज’ आपकी चर्चित औपन्यासिक कृतियाँ हैं। अन्य उपन्यास हैं ‘एक इंच मुस्कान’ (राजेन्द्र यादव के साथ) तथा ‘स्वामी’। ये सभी उपन्यास ‘सम्पूर्ण उपन्यास’ शीर्षक से एक जिल्द में भी उपलब्ध हैं।

आपके कहानी-संग्रह हैं—‘एक प्लेट सैलाब’, ‘मैं हार गई’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’, ‘यही सच है’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ तथा सभी कहानियों का समग्र ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’। ‘एक कहानी यह भी’ आपकी आत्मकथ्यात्मक पुस्तक है जिसे आपने अपनी 'लेखकीय आत्मकथा’ कहा है। ‘निर्मला’ और ‘रजनीगंधा’ आपकी पटकथा पुस्तकें हैं। ‘महाभोज’, ‘बिना दीवारों के घर’, ‘उजली नगरी चतुर राजा’ नाट्य-कृतियाँ तथा बच्चों के लिए पुस्तकों में प्रमुख हैं—‘आसमाता’ (उपन्यास), ‘आँखों देखा झूठ’, ‘कलवा’ (कहानी) आदि।

आप 'व्यास सम्मान’, 'शिखर सम्मान’ (हिन्दी अकादमी, दिल्ली), 'शब्द साधक शिखर सम्मान’ आदि से सम्मानित की जा चुकी हैं।

निधन : 15 नवम्बर, 2021

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