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Gusse Ka Software aur Operating System
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Manoj Srivastav; Shipra Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Manoj Srivastav; Shipra Mishra
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹350 ₹263
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In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
168
अथॉरिटी में एंगर नहीं है। हमें अपना रोल, अपनी रिस्पोंसिबिलिटी निभानी है, लेकिन सभी कार्य बिना डिस्टर्ब होकर करने हैं। हम अथॉरिटी का प्रयोग करें, लेकिन गुस्सा नहीं करें। गुस्से में हम अंदर से डिस्टर्ब होकर अपने ऊपर कंट्रोल खो देते हैं। हम ऊपर से नीचे तक पूरी तरह हिल जाते हैं, लेकिन अथॉरिटी में हम पूरी तरह शांत व स्थिर रहकर कार्य करते हैं। अथॉरिटी में रहकर हम एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलते जाते हैं। हम सकारात्मक रहते हैं। सामान्य जीवन में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसे क्रोध न आता हो, लेकिन एक सीमा के बाद क्रोध हमारे जीवन को डिस्टर्ब करने लगता है। हमें इस सीमा की पहचान करनी आवश्यक है। हम क्रोध को नेचुरल कहकर अपने क्रोध का बचाव नहीं कर सकते हैं। हमें क्रोधित होने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेनी होगी। जिम्मेदारी लेने से हम मजबूत बनते हैं और बहाना बनाने से हम कमजोर हो जाते हैं। यदि हम अपने क्रोध की जिम्मेदारी लेते हैं, तब हमें क्रोध-मुक्ति का रास्ता भी मिलेगा। यदि पुस्तक में दिए गए उपायों का पालन किया जाए, तो हमें क्रोध से शेयर-संस्कृत-प्रतिशत मुक्ति मिल सकती है, परंतु यदि पुस्तक में दिए गए थोड़े भी उपाय का पालन किया जाए, तो हमारा गुस्सा न्यूनतम स्तर पर अवश्य आ जाएगा।.
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aur Operating System” Cancel reply
Description
अथॉरिटी में एंगर नहीं है। हमें अपना रोल, अपनी रिस्पोंसिबिलिटी निभानी है, लेकिन सभी कार्य बिना डिस्टर्ब होकर करने हैं। हम अथॉरिटी का प्रयोग करें, लेकिन गुस्सा नहीं करें। गुस्से में हम अंदर से डिस्टर्ब होकर अपने ऊपर कंट्रोल खो देते हैं। हम ऊपर से नीचे तक पूरी तरह हिल जाते हैं, लेकिन अथॉरिटी में हम पूरी तरह शांत व स्थिर रहकर कार्य करते हैं। अथॉरिटी में रहकर हम एक-एक शब्द सोच-समझकर बोलते जाते हैं। हम सकारात्मक रहते हैं। सामान्य जीवन में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसे क्रोध न आता हो, लेकिन एक सीमा के बाद क्रोध हमारे जीवन को डिस्टर्ब करने लगता है। हमें इस सीमा की पहचान करनी आवश्यक है। हम क्रोध को नेचुरल कहकर अपने क्रोध का बचाव नहीं कर सकते हैं। हमें क्रोधित होने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेनी होगी। जिम्मेदारी लेने से हम मजबूत बनते हैं और बहाना बनाने से हम कमजोर हो जाते हैं। यदि हम अपने क्रोध की जिम्मेदारी लेते हैं, तब हमें क्रोध-मुक्ति का रास्ता भी मिलेगा। यदि पुस्तक में दिए गए उपायों का पालन किया जाए, तो हमें क्रोध से शेयर-संस्कृत-प्रतिशत मुक्ति मिल सकती है, परंतु यदि पुस्तक में दिए गए थोड़े भी उपाय का पालन किया जाए, तो हमारा गुस्सा न्यूनतम स्तर पर अवश्य आ जाएगा।.
About Author
मनोज श्रीवास्तव मनोज श्रीवास्तव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विभिन्न विषयों की अकादमिक पढ़ाई की। उत्तराखंड पी.सी.एस. 2002 बैच, प्रशासनिक सेवा में आने के बाद दर्शन के आधारभूत तत्त्व का व्यावहारिक विश्लेषण प्रारंभ किया। पूर्व प्रकाशित पुस्तकें: ‘मेडिटेशन के नवीन आयाम’, ‘आत्मदीप बनें’। विक्रमशिला हिंदी पीठ द्वारा विद्यावाचस्पति (पी-एच.डी.) की मानद उपाधि। वर्तमान में सहायक निदेशक सूचना एवं लोक संपर्क विभाग, प्रभारी अधिकारी, उत्तराखंड विधानसभा मीडिया सेंटर, उत्तराखंड सरकार के रूप में सेवारत हैं। डॉ. शिप्रा मिश्रा डॉ. शिप्रा मिश्रा (अंजू) वर्तमान में होम्योपैथिक चिकित्सक के रूप में महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलाई जानेवाले प्रोजेक्ट मुंबई डिस्ट्रिक्ट एड्स कंट्रोल सोसाइटी के अंतर्गत राष्ट्र स्वास्थ्य प्रबोधिनी संस्था में मेडिकल सेवाएँ दे रही हैं। इसके साथ ही मुंबई में, ज्यूडिशियल अकादमी में मेडिकल ऑफिसर के पद पर भी सेवारत हैं।.
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