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Narad Muni Ki Aatmkatha
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Dr. Laxmi Narayan Garg
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Dr. Laxmi Narayan Garg
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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Book Type |
---|
ISBN:
Category: Hindi
Page Extent:
184
नारद मुनि की आत्मकथा’ पुस्तक में कुल मिलाकर छोटे-बड़े ऐसे छियालीस वृंत हैं, जो देवर्षि नारद के अपने मुखार-विंद से निसृत हुए और जिन्हें महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास एवं गोस्वामी तुलसीदास ने पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न स्थलों पर प्रस्तुत किया है। इन आयानों से पता चलता है कि नारदजी की कथनी-करनी न केवल भेद रहित है, बल्कि सर्वत्र सात्विक और मधुर है। वे एक ओर लोक-कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, तो दूसरी ओर दक्ष-पुत्रों, वेदव्यास, वाल्मीकि, राजा बलि, बालक ध्रुव, दैत्य पत्नी कयाधू का हित साधन करते हैं और जहाँ आवश्यक समझते हैं, वहाँ ज्ञान देकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इन सब नेक और शुभ कर्मों को करते हुए भी वे राम और कृष्ण एवं विष्णु रूप अपने ‘नारायण’ को कभी विस्मृत नहीं करते। बहुआयामी सकारात्मक व्यक्तित्व वाले देवर्षि नारद, बिना भेदभाव के सभी से मधुर व्यवहार करते हुए व्यष्टि और समष्टि के कल्याण हेतु तत्पर रहते हैं। इसीलिए या देव, दानव और राक्षस, तो या मनुष्य, उनका आदर और सम्मान करते हैं। ऐसे दुर्लभ गुण एवं विशेषताओं वाले नारद मुनि श्रीकृष्ण के लिए भी स्तुत्य हैं।
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Aatmkatha” Cancel reply
Description
नारद मुनि की आत्मकथा’ पुस्तक में कुल मिलाकर छोटे-बड़े ऐसे छियालीस वृंत हैं, जो देवर्षि नारद के अपने मुखार-विंद से निसृत हुए और जिन्हें महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास एवं गोस्वामी तुलसीदास ने पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न स्थलों पर प्रस्तुत किया है। इन आयानों से पता चलता है कि नारदजी की कथनी-करनी न केवल भेद रहित है, बल्कि सर्वत्र सात्विक और मधुर है। वे एक ओर लोक-कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, तो दूसरी ओर दक्ष-पुत्रों, वेदव्यास, वाल्मीकि, राजा बलि, बालक ध्रुव, दैत्य पत्नी कयाधू का हित साधन करते हैं और जहाँ आवश्यक समझते हैं, वहाँ ज्ञान देकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इन सब नेक और शुभ कर्मों को करते हुए भी वे राम और कृष्ण एवं विष्णु रूप अपने ‘नारायण’ को कभी विस्मृत नहीं करते। बहुआयामी सकारात्मक व्यक्तित्व वाले देवर्षि नारद, बिना भेदभाव के सभी से मधुर व्यवहार करते हुए व्यष्टि और समष्टि के कल्याण हेतु तत्पर रहते हैं। इसीलिए या देव, दानव और राक्षस, तो या मनुष्य, उनका आदर और सम्मान करते हैं। ऐसे दुर्लभ गुण एवं विशेषताओं वाले नारद मुनि श्रीकृष्ण के लिए भी स्तुत्य हैं।
About Author
जन्म: 1938, अजमेर (राजस्थान)। शिक्षा: एम.ए., पी.एच-डी., पी.जी. डिप्लोमा अनुप्रयुत भाषा विज्ञान, पी.जी. डिप्लोमा पत्रकारिता। प्रकाशन: ‘हिंदी कथा साहित्य में इतिहास’ (आलोचना), ‘अनुकंपा’, ‘सिरफिरा’, ‘मनमाने के रिश्ते’, ‘अमर्ष’ (उपन्यास), ‘कथा के सात रंग’, (कहानी), ‘हिंदी शद-प्रयोग कोश’, ‘परमाणु से नैनो-प्रौद्योगिकी तक’, ‘शिक्षार्थी हिंदी प्रयोग कोश’, ‘महाभारत कोश’, ‘अंत्याक्षरी कोश’, ‘मनुष्य: आंतरिक शतियों का नियामक’, ‘दूरसंचार कथा’, ‘आयुर्वेद विभिन्न पहलू’, ‘आज का अंतरिक्ष’, ‘फलित ज्योतिष: सार्थक या निरर्थक’ (अनुवाद), ‘Once Upon A Blue Moon’ (प्रकाशनाधीन)। संप्रति: केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उप-निदेशक पद से सेवा-निवृत्ति के पश्चात् लेखन, संपादन और अनुवाद कार्य में संलग्न
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