SalePaperback
Khudai Mein Hinsa (PB)
₹199 ₹198
Save: 1%
Khilega To Dekhenge Hard Cover
₹795 ₹636
Save: 20%
Yutopiya (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Vandana Rag
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Vandana Rag
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹250 ₹200
Save: 20%
In stock
Ships within:
3-5 days
In stock
ISBN:
SKU
9789393768964
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
वन्दना राग अपने समय की ऐसी कथाकार हैं, जिन्हें किसी पूर्वग्रह समाहित ढाँचे में नहीं बाँधा जा सकता है। वे अपनी कथा-रचना की प्रक्रिया के दौरान ही सारे स्थापित ढाँचों का अतिक्रमण कर अपने लिए सर्वाधिक नया स्पेस बनाती चलती हैं। एक बिन्दास, खुले, यायावर समान। यही नयापन उनके विविध आयामी कृतित्व में उद्भासित होता है। उनके यहाँ थीम्स और पात्रों का सीमा-बन्धन नहीं है। वहाँ स्त्री, पुरुष, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और वंचित सभी हैं और वे सभी अपने संश्लिष्ट और मनुष्यगत स्वरूपों में हैं। वे अपनी अच्छाइयों और बुराइयों समेत अपने समय से मुठभेड़ करते हैं। उनकी चिन्ताओं में अतीत के शेष प्रश्न और भविष्य के विज़न शामिल हैं। इस तरह वन्दना राग लगातार अपने समय का क्रिटीक रचती हैं। उनकी सर्वाधिक चर्चित कहानी ‘यूटोपिया’ साम्प्रदायिकता जैसे नाज़ुक विषय को एक नए अन्दाज़ में उठाती है। रोमान से हटकर यह कहानी साम्प्रदायिकता बोध और साम्प्रदायिक अस्मिताओं के संघर्ष की उस कठोर स्थापना को रेखांकित करती है, जिसके आगे प्रेम, मनुष्यता अथवा अन्य कोमल भावनाओं के लिए कोई स्थान बचा नहीं रह जाता। यह हमारे समय की सबसे बड़ी त्रासदी है।
इसी प्रकार कहानी ‘कबिरा खड़ा बज़ार में’ और ‘शहादत और अतिक्रमण’ स्त्री की पहचान तथा स्त्री की शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक स्वाधीनता के मार्ग को तलाशनेवाले संघर्षों की कहानियाँ हैं। अपनी कहानियों में वन्दना अनेक बार उन विषयों को भी उठाती हैं, जिन्हें समाज चुप कर देता है। उन चुप, कुंठित, वैचारिक, सामाजिक तथा अवश मानसिक स्थितियों को वे शब्द देती हैं। ‘नमक’, ‘छाया युद्ध’, ‘टोली’ तथा ‘नक़्शा और इबारत’ इस तरह की प्रामाणिक कहानियाँ हैं।
वन्दना का नज़रिया सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि वाला है। उनमें हाज़िर-जवाबी और व्यंग्य वाला हास्यबोध है और भावनाओं की अतल गहराई को छूनेवाला कौशल भी। मगर सबसे बड़ी बात यह है कि वे एक धुनी क़िस्सागो हैं। उनकी भाषा चुस्त और सधी हुई है और उसमें विचारों का प्रवाह रवानगी भरा है।
आज के इस हाय-तौबा वाले युग में उनकी कहानियाँ समय की विडम्बनाओं का साहसी प्रतिमान रचती हैं। इसीलिए हमें उन्हें और भी गम्भीरता से देखने की ज़रूरत है।
Be the first to review “Yutopiya (PB)” Cancel reply
Description
वन्दना राग अपने समय की ऐसी कथाकार हैं, जिन्हें किसी पूर्वग्रह समाहित ढाँचे में नहीं बाँधा जा सकता है। वे अपनी कथा-रचना की प्रक्रिया के दौरान ही सारे स्थापित ढाँचों का अतिक्रमण कर अपने लिए सर्वाधिक नया स्पेस बनाती चलती हैं। एक बिन्दास, खुले, यायावर समान। यही नयापन उनके विविध आयामी कृतित्व में उद्भासित होता है। उनके यहाँ थीम्स और पात्रों का सीमा-बन्धन नहीं है। वहाँ स्त्री, पुरुष, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक और वंचित सभी हैं और वे सभी अपने संश्लिष्ट और मनुष्यगत स्वरूपों में हैं। वे अपनी अच्छाइयों और बुराइयों समेत अपने समय से मुठभेड़ करते हैं। उनकी चिन्ताओं में अतीत के शेष प्रश्न और भविष्य के विज़न शामिल हैं। इस तरह वन्दना राग लगातार अपने समय का क्रिटीक रचती हैं। उनकी सर्वाधिक चर्चित कहानी ‘यूटोपिया’ साम्प्रदायिकता जैसे नाज़ुक विषय को एक नए अन्दाज़ में उठाती है। रोमान से हटकर यह कहानी साम्प्रदायिकता बोध और साम्प्रदायिक अस्मिताओं के संघर्ष की उस कठोर स्थापना को रेखांकित करती है, जिसके आगे प्रेम, मनुष्यता अथवा अन्य कोमल भावनाओं के लिए कोई स्थान बचा नहीं रह जाता। यह हमारे समय की सबसे बड़ी त्रासदी है।
इसी प्रकार कहानी ‘कबिरा खड़ा बज़ार में’ और ‘शहादत और अतिक्रमण’ स्त्री की पहचान तथा स्त्री की शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक स्वाधीनता के मार्ग को तलाशनेवाले संघर्षों की कहानियाँ हैं। अपनी कहानियों में वन्दना अनेक बार उन विषयों को भी उठाती हैं, जिन्हें समाज चुप कर देता है। उन चुप, कुंठित, वैचारिक, सामाजिक तथा अवश मानसिक स्थितियों को वे शब्द देती हैं। ‘नमक’, ‘छाया युद्ध’, ‘टोली’ तथा ‘नक़्शा और इबारत’ इस तरह की प्रामाणिक कहानियाँ हैं।
वन्दना का नज़रिया सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि वाला है। उनमें हाज़िर-जवाबी और व्यंग्य वाला हास्यबोध है और भावनाओं की अतल गहराई को छूनेवाला कौशल भी। मगर सबसे बड़ी बात यह है कि वे एक धुनी क़िस्सागो हैं। उनकी भाषा चुस्त और सधी हुई है और उसमें विचारों का प्रवाह रवानगी भरा है।
आज के इस हाय-तौबा वाले युग में उनकी कहानियाँ समय की विडम्बनाओं का साहसी प्रतिमान रचती हैं। इसीलिए हमें उन्हें और भी गम्भीरता से देखने की ज़रूरत है।
About Author
वन्दना राग
वन्दना राग मूलत: बिहार के सीवान ज़िले से हैं। जन्म इन्दौर मध्य प्रदेश में हुआ और पिता की स्थानान्तरण वाली नौकरी की वजह से भारत के विभिन्न शहरों में स्कूली शिक्षा पाई। 1990 में दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया। पहली कहानी ‘हंस’ में 1999 में छपी और फिर निरन्तर लिखने और छपने का सिलसिला चल पड़ा। तब से कहानियों की चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं—‘यूटोपिया’, ‘हिजरत से पहले’, ‘ख़यालनामा’ और ‘मैं और मेरी कहानियाँ’। इसके अलावा अनेक अनुवाद कर चुकी है जिनमें प्रख्यात इतिहासकार ई.जे. हॉब्सबाम की किताब ‘एज ऑफ़ कैपिटल’ का अनुवाद ‘पूँजी का युग’ शीर्षक से किया है। यदा-कदा अख़बारों में सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर लिखती रहती हैं। ‘बिसात पर जुगनू’ इनका पहला उपन्यास है।
Reviews
There are no reviews yet.
Be the first to review “Yutopiya (PB)” Cancel reply
[wt-related-products product_id="test001"]
Reviews
There are no reviews yet.