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Yugon Ka Yatri : Nagarjun Ki Jeewani (HB)
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Yugon Ka Yatri : Nagarjun Ki Jeewani (PB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Taranand Viyogi
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Taranand Viyogi
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹450 ₹315
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9789388933759
Category Hindi
Category: Hindi
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मिथिला के बन्द समाज से बाहर निकलकर नागार्जुन ने अपनी तमाम रचनाओं और सहज सुलभ व्यक्तित्व से एक ऐसा जागरण किया जिसकी आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है। वे सच्चे अर्थों में क्लैसिकल मॉडर्न थे।
तारानन्द वियोगी की यह जीवनी पाठक को नागार्जुन के अन्त:करण में प्रवेश कराने में सक्षम है। उनके घने साहचर्य में जो रहे हैं, वे इसे पढ़कर बाबा की उपस्थिति फिर से अपने भीतर महसूस करेंगे। अपनी सशक्त लेखनी से तारानन्द ने बाबा नागार्जुन को पुनर्जीवित कर दिया है। यहाँ तथ्य और सत्य का सन्तुलित समन्वय है। बाबा से जुड़े शताधिक जनों के अनुभव उन्होंने बड़ी सहृदयता से अन्तर्ग्रथित किए हैं।
बाबा नागार्जुन को संसार से विदा हुए बीस वर्ष से ज़्यादा हुए। इस बीच हिन्दी-मैथिली की जो तरुण पीढ़ी आई है, वह भी इस कृति से बाबा नागार्जुन का सम्पूर्ण साक्षात्कार कर सकेगी। बाबा के बारे में एक जगह लेखक ने लिखा है, ‘स्मृति, दृष्टान्त और अनुभव का ज़खीरा था उनके पास।’ तारानन्द की इस जीवनी में भी ये तीनों बातें आद्यन्त मौजूद हैं। बाबा के जीवन-सृजन पर यह बहुत रचनात्मक, ऐतिहासिक महत्त्व का कार्य सम्पन्न हो सका है। मैं इतना ही कहूँगा कि बाबा की ऐसी प्रामाणिक जीवनी मैं भी नहीं लिख पाता।
‘युगों का यात्री’ हिन्दी की कुछ सुप्रसिद्ध जीवनियों की शृंखला की अद्यतन सशक्त कड़ी है।
—वाचस्पति, वाराणसी
(दशकों तक नागार्जुन के क़रीब रहे अध्येता समीक्षक)
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Description
मिथिला के बन्द समाज से बाहर निकलकर नागार्जुन ने अपनी तमाम रचनाओं और सहज सुलभ व्यक्तित्व से एक ऐसा जागरण किया जिसकी आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है। वे सच्चे अर्थों में क्लैसिकल मॉडर्न थे।
तारानन्द वियोगी की यह जीवनी पाठक को नागार्जुन के अन्त:करण में प्रवेश कराने में सक्षम है। उनके घने साहचर्य में जो रहे हैं, वे इसे पढ़कर बाबा की उपस्थिति फिर से अपने भीतर महसूस करेंगे। अपनी सशक्त लेखनी से तारानन्द ने बाबा नागार्जुन को पुनर्जीवित कर दिया है। यहाँ तथ्य और सत्य का सन्तुलित समन्वय है। बाबा से जुड़े शताधिक जनों के अनुभव उन्होंने बड़ी सहृदयता से अन्तर्ग्रथित किए हैं।
बाबा नागार्जुन को संसार से विदा हुए बीस वर्ष से ज़्यादा हुए। इस बीच हिन्दी-मैथिली की जो तरुण पीढ़ी आई है, वह भी इस कृति से बाबा नागार्जुन का सम्पूर्ण साक्षात्कार कर सकेगी। बाबा के बारे में एक जगह लेखक ने लिखा है, ‘स्मृति, दृष्टान्त और अनुभव का ज़खीरा था उनके पास।’ तारानन्द की इस जीवनी में भी ये तीनों बातें आद्यन्त मौजूद हैं। बाबा के जीवन-सृजन पर यह बहुत रचनात्मक, ऐतिहासिक महत्त्व का कार्य सम्पन्न हो सका है। मैं इतना ही कहूँगा कि बाबा की ऐसी प्रामाणिक जीवनी मैं भी नहीं लिख पाता।
‘युगों का यात्री’ हिन्दी की कुछ सुप्रसिद्ध जीवनियों की शृंखला की अद्यतन सशक्त कड़ी है।
—वाचस्पति, वाराणसी
(दशकों तक नागार्जुन के क़रीब रहे अध्येता समीक्षक)
About Author
तारानन्द वियोगी
मिथिला के प्रसिद्ध गाँव महिषी में 1966 में जन्म। गाँव के विद्यालयों में विधिवत् संस्कृत की पढ़ाई। शिक्षा : साहित्याचार्य, एम.ए., पीएच.डी. आदि। अस्सी के दशक से साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रियता। सात वर्ष केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन किया, फिर बिहार प्रशासनिक सेवा में आ गए।
आरम्भिक दिनों में हिन्दी तथा मैथिली दोनों भाषाओं में लेखन। हिन्दी में तब उनका नाम तारानन्द होता था। फिर उन्होंने अपने आपको मैथिली में एकाग्र कर लिया, जहाँ पिछले तीन दशक से बहुलवाद के प्रतिष्ठापन के लिए संघर्षरत हैं। मैथिली के वर्तमान लेखन में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण नाम। चालीस के क़रीब उनकी मौलिक, सम्पादित, अनूदित किताबें छपी हैं। रचनाओं के अनुवाद अंग्रेज़ी सहित कई भारतीय भाषाओं में प्रकाशित हुए हैं। नागार्जुन पर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'तुमि चिर सारथि' भी उन्होंने मूलत: मैथिली में ही लिखी थी। बाद में पहल-पुस्तिका के रूप में जारी होने पर हिन्दी-संसार इससे परिचित हुआ। हाल में राजकमल चौधरी के प्रसंगों पर लिखी उनकी किताब 'जीवन क्या जिया' भी ख़ासी चर्चित रही। इसे पहले ‘तद्भव' ने अपने एक अंक में छापा था।
एक ज़माने में ‘कल के लिए' ने उनकी कविताओं के लिए ‘मुक्तिबोध पुरस्कार’ दिया था। बच्चों की किताब के लिए साहित्य अकादेमी का ‘बाल साहित्य पुरस्कार’ मिला। ‘यात्री चेतना सम्मान’, ‘विदेह साहित्य सम्मान’, ‘किरण सम्मान’, ‘कोशी सम्मान’ आदि मिले हैं।
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