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Warahmihir : Jal Jeevan Hai (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Pandit Ishnarayan Joshi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Pandit Ishnarayan Joshi
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹295 ₹207
Save: 30%
In stock
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3-5 days
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ISBN:
SKU
9788126709700
Category Hindi
Category: Hindi
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जीवन के लिए जल एक अनिवार्य पदार्थ है। वनस्पति की उत्पत्ति और कृषि जल पर ही निर्भर है। हमारा देश कृषि-प्रधान देश है, इसलिए खेती के लिए वांछित जल की आवश्यकता सदा बनी रहती है। मनुष्य के जीवन के लिए और खेती बाड़ी के लिए हमें नदियों, तालाबों और कुओं से जल मिलता है। नदियाँ अथवा तालाब प्रत्येक गाँव, क़स्बे तथा नगर में उपलब्ध नहीं हैं और सरलता से हर कहीं बनाए भी नहीं जा सकते, इसलिए पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए लोग कुआँ खोदते हैं।
हमारे देश में प्राचीनकाल में ही समाजसेवी विद्वान मनुष्यों की इस परम और अनिवार्य आवश्यकता का अनुभव कर भू-गर्भ के जल का पता लगाने के अनेक प्रयास और प्रयोग भू-भागों में निरन्तर चलते रहे। इस विषय का जो ग्रन्थ मुद्रित उपलब्ध होता है, वह आचार्य वराहमिहिर की ‘वृहत्-संहिता’ है। ‘वृहत्-संहिता’ ज्योतिष का ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ का 53वाँ अध्याय—दृकार्गल है। इसमें भू-गर्भ के जल का ज्ञान करने, पता लगाने की विधि बताई गई है। वराहमिहिर ने इस विज्ञान को दृकार्गल कहा है, जिसका अर्थ है भूमि के अन्दर के जल (उदक, दक) का लकड़ी की छड़ी के माध्यम से निश्चय करना, पता लगाना।
आचार्य वराहमिहिर ने पानी की खोज में जिन विषयों-विज्ञानों को आधार बनाया है। इस पुस्तक का अनुवाद करने में आवश्यक था कि उन विज्ञानों के जानकार विद्वानों से चर्चा की जाए और आधुनिक विज्ञान कहाँ तक पुरानी खोजों और प्रयोगों का समर्थन करते हैं।
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Description
जीवन के लिए जल एक अनिवार्य पदार्थ है। वनस्पति की उत्पत्ति और कृषि जल पर ही निर्भर है। हमारा देश कृषि-प्रधान देश है, इसलिए खेती के लिए वांछित जल की आवश्यकता सदा बनी रहती है। मनुष्य के जीवन के लिए और खेती बाड़ी के लिए हमें नदियों, तालाबों और कुओं से जल मिलता है। नदियाँ अथवा तालाब प्रत्येक गाँव, क़स्बे तथा नगर में उपलब्ध नहीं हैं और सरलता से हर कहीं बनाए भी नहीं जा सकते, इसलिए पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए लोग कुआँ खोदते हैं।
हमारे देश में प्राचीनकाल में ही समाजसेवी विद्वान मनुष्यों की इस परम और अनिवार्य आवश्यकता का अनुभव कर भू-गर्भ के जल का पता लगाने के अनेक प्रयास और प्रयोग भू-भागों में निरन्तर चलते रहे। इस विषय का जो ग्रन्थ मुद्रित उपलब्ध होता है, वह आचार्य वराहमिहिर की ‘वृहत्-संहिता’ है। ‘वृहत्-संहिता’ ज्योतिष का ग्रन्थ है।
इस ग्रन्थ का 53वाँ अध्याय—दृकार्गल है। इसमें भू-गर्भ के जल का ज्ञान करने, पता लगाने की विधि बताई गई है। वराहमिहिर ने इस विज्ञान को दृकार्गल कहा है, जिसका अर्थ है भूमि के अन्दर के जल (उदक, दक) का लकड़ी की छड़ी के माध्यम से निश्चय करना, पता लगाना।
आचार्य वराहमिहिर ने पानी की खोज में जिन विषयों-विज्ञानों को आधार बनाया है। इस पुस्तक का अनुवाद करने में आवश्यक था कि उन विज्ञानों के जानकार विद्वानों से चर्चा की जाए और आधुनिक विज्ञान कहाँ तक पुरानी खोजों और प्रयोगों का समर्थन करते हैं।
About Author
पं. ईशनारायण जोशी
सादगी, मृदुभाषा और शालीनता की प्रतिमूर्ति पं. ईशनारायण जोशी भोपाल के उन विरले विद्वानों की अग्रपंक्ति में शामिल हैं जिनकी ज्ञान-गरिमा पर कोई विवाद नहीं है।
भोपाल रियासत के प्रतिष्ठित धर्मशास्त्री के पद पर रह चुके श्री जोशी ने समय-समय पर प्रबन्धक हिन्दू धर्मस्व, सदावर्त, एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफ़िसर डिस्पोजल्स, कोषालय, अधिकारी का कार्य-दायित्व भी निभाया है।
भोपाल-सीहोर-वाराणसी-जयपुर में शिक्षित-दीक्षित और साहित्य, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि के अधिकारी विद्वान जोशी जी की विविध विषयों पर महत्त्वपूर्ण पुस्तकें हैं, जिनमें ‘मुखाकृति रहस्य’ (सामुद्रिक—1935), ‘धर्म-शिक्षा’ (तीन भागों में, 1941-45), ‘साकोरी का सन्त’ (1942), ‘भोजपुर’ (1945), कन्नड़ से अनूदित ‘भगवत गीतोपन्यास’ (भाग-1, 2), ‘मालवा की लोकचित्र कला’, ‘जुड़े हैं ज़मीन से’ (गद्य-गीत) प्रमुख हैं। अप्रकाशित पुस्तकों में उपन्यास—‘अमृतपुत्र’, ‘वनस्पति नामावली—महाकवि कालिदास के वृक्ष और जीवन-योगी आनन्ददेव’; ‘कोष और सन्दर्भ : त्रैमासिक वनस्पति कोश’ (संस्कृत-हिन्दी-लेटिन), ‘लेटिन-संस्कृत वनस्पति कोश’, मानस सन्दर्भ और सामुद्रिक विधा सम्बन्धी ‘आपका चेहरा और हाथ’ महत्त्वपूर्ण हैं।
1913 में जन्मे जोशी जी का परिवार कोई सौ-सवा सौ साल पहले सिरोंज से भोपाल आया था। आपके पितामह को पहले-पहल भोपाल राज्य का धर्मशास्त्री पद मिला था। इसके बाद पं. प्रेमनारायण जोशी को उत्तराधिकार मिला। पं. ईशनारायण जोशी इस पर आसीन रहनेवाले एक ही परिवार के तीसरे और अन्तिम पुरुष रहे।
आपको विविधवर्णी श्रेष्ठ सेवाओं के उपलक्ष्य में ‘राष्ट्रपति रजत पुरस्कार’, ‘साहित्य-सेवा सम्मान’, ‘श्रेष्ठ लेखन पुरस्कार’, राज्यपाल द्वारा ‘साहित्यश्री सम्मान’, ‘शान्तिवन सम्मान’, ‘भारतीय ज्योतिष अनुसंधान सम्मान’, ‘रत्नभारती सम्मान’, ‘ज्योतिषश्री सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कार-सम्मान मिल चुके हैं। आकाशवाणी से प्रसारित लगभग 100 कर्त्ताओं के अतिरिक्त आपके 300 से अधिक आलेख संस्कृत, हिन्दी, उर्दू की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए जिनमें कई शोध—लेख हैं।
पं. जोशी जहाँ उर्दू पंचांग—‘मोहरताज जंत्री’ के सम्पादन से जुड़े रहे, वहीं उन्होंने ‘धर्मयुद्ध’, ‘स्वामी विवेकानन्द सन्देश’, ‘ज्ञान प्रदीप’, ‘जय जवान जय किसान‘, ‘मानस समाचार’, ‘मानस भारती’ और ‘तुलसी मानस भारती’ का भी सम्पादन किया।
निधन : 19 जुलाई, 2007
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