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Vyomkesh Darvesh (HB)
Publisher:
Rajkamal
| Author:
Vishwanath Tripathi
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Rajkamal
Author:
Vishwanath Tripathi
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹750 ₹525
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In stock
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3-5 days
In stock
ISBN:
SKU
9788126720507
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
आकाशधर्मा गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने जीवन-काल में ही मिथक-पुरुष बन गए थे। हिन्दी में ‘आकाशधर्मा’ और ‘मिथक’ इन दोनों शब्दों के प्रयोग का प्रवर्तन उन्होंने ही किया था।
उनका रचित साहित्य विविध एवं विपुल है। उनके शिष्य देश-विदेश में बिखरे हैं। लगभग साठ वर्षों तक उन्होंने सरस्वती की अनवरत साधना की। उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास का नया दिक्काल एवं प्राचीन भारत का आत्मीय-सांस्कृतिक पर्यावरण रचा। हिन्दी की जातीय संस्कृति के मूल्यों की खोज की, उन्हें अखिल भारतीय एवं मानवीय मूल्यों के सन्दर्भ में परिभाषित किया। परम्परा और आधुनिकता की पहचान कराई। सहज के सौन्दर्य को प्रतिष्ठित किया। वे उन दुर्लभ विद्वान सर्जकों की परम्परा में हैं जिसके प्रतिमान तुलसीदास हैं और जिसमें पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी स्मरणीय हैं।
उनका जीवन-संघर्ष विस्थापित होते रहने का संघर्ष है। उनकी जीवन-यात्रा के बारे में लिखना जितना ज़रूरी है उससे ज़्यादा मुश्किल। इस पुस्तक के लेखक को दो दशकों से भी अधिक समय तक उनका सान्निध्य और शिष्यत्व प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। इसलिए पुस्तक को संस्मरणात्मक भी हो जाना पड़ा है। प्रयास किया गया है कि प्रसंगों और स्थितियों को यथासम्भव प्रामाणिक स्रोतों से ही ग्रहण किया जाए। आदरणीयों के प्रति आदर में कमी न आने पावे। काशी की तत्कालीन साहित्य-मंडली, लेखक की मित्र-मंडली अनायास पुस्तक में आ गई है।
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Description
आकाशधर्मा गुरु आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी अपने जीवन-काल में ही मिथक-पुरुष बन गए थे। हिन्दी में ‘आकाशधर्मा’ और ‘मिथक’ इन दोनों शब्दों के प्रयोग का प्रवर्तन उन्होंने ही किया था।
उनका रचित साहित्य विविध एवं विपुल है। उनके शिष्य देश-विदेश में बिखरे हैं। लगभग साठ वर्षों तक उन्होंने सरस्वती की अनवरत साधना की। उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास का नया दिक्काल एवं प्राचीन भारत का आत्मीय-सांस्कृतिक पर्यावरण रचा। हिन्दी की जातीय संस्कृति के मूल्यों की खोज की, उन्हें अखिल भारतीय एवं मानवीय मूल्यों के सन्दर्भ में परिभाषित किया। परम्परा और आधुनिकता की पहचान कराई। सहज के सौन्दर्य को प्रतिष्ठित किया। वे उन दुर्लभ विद्वान सर्जकों की परम्परा में हैं जिसके प्रतिमान तुलसीदास हैं और जिसमें पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी स्मरणीय हैं।
उनका जीवन-संघर्ष विस्थापित होते रहने का संघर्ष है। उनकी जीवन-यात्रा के बारे में लिखना जितना ज़रूरी है उससे ज़्यादा मुश्किल। इस पुस्तक के लेखक को दो दशकों से भी अधिक समय तक उनका सान्निध्य और शिष्यत्व प्राप्त होने का सौभाग्य मिला। इसलिए पुस्तक को संस्मरणात्मक भी हो जाना पड़ा है। प्रयास किया गया है कि प्रसंगों और स्थितियों को यथासम्भव प्रामाणिक स्रोतों से ही ग्रहण किया जाए। आदरणीयों के प्रति आदर में कमी न आने पावे। काशी की तत्कालीन साहित्य-मंडली, लेखक की मित्र-मंडली अनायास पुस्तक में आ गई है।
About Author
विश्वनाथ त्रिपाठी
जन्म : 16 फ़रवरी, 1931; ज़िला बस्ती (अब सिद्धार्थनगर) के बिस्कोहर गाँव में।
शिक्षा : पहले गाँव में, फिर बलरामपुर क़स्बे में, उच्च शिक्षा कानपुर और वाराणसी में। पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से पीएच.डी.।
प्रमुख कृतियाँ : ‘प्रारम्भिक अवधी’, ‘हिन्दी आलोचना’, ‘हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास’, ‘लोकवादी तुलसीदास’, ‘मीरा का काव्य’, ‘कुछ कहानियाँ : कुछ विचार’, (आलोचना); ‘देश के इस दौर में’ (परसाई केन्द्रित), ‘पेड़ का हाथ’ (केदारनाथ अग्रवाल केन्द्रित), ‘जैसा कह सका’ (कविता संकलन); ‘नंगातलाई का गाँव’ (स्मृति-आख्यान); ‘व्योमकेश दरवेश’ (आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का पुण्य स्मरण)।
सम्पादन : आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के साथ अद्दहमाण (अब्दुल रहमान) के अपभ्रंश काव्य ‘सन्देश रासक’ का सम्पादन; ‘कविताएँ 1963’, ‘कविताएँ 1964’, ‘कविताएँ 1965’ (तीनों अजित कुमार के साथ); ‘हिन्दी के प्रहरी : रामविलास शर्मा’ (अरुण प्रकाश के साथ)।
सम्मान : ‘मूर्तिदेवी सम्मान, ‘व्यास सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू सम्मान’, ‘शलाका सम्मान’, ‘भारत भारती पुरस्कार’, ‘राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’, ‘राजकमल प्रकाशन सृजनात्मक गद्य सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘गोकुलचन्द्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार’, ‘डॉ. रामविलास शर्मा सम्मान’, ‘हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान’ आदि।
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