Vishkanya

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रवींद्रनाथ त्यागी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
रवींद्रनाथ त्यागी
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 978812634007 Category
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120

विषकन्या –
मैं रवीन्द्र त्यागी को एक श्रेष्ठ कवि और एक श्रेष्ठ व्यंग्यकार स्वीकार करता हूँ। उनकी विशिष्टता का एक प्रमुख कारण यह है कि हमारे जो पुराने क्लासिक हैं, उनमें उनकी गति है। वे सचमुच बहुत अच्छा लिखते हैं। ऐसा प्रवाहमय विट-सम्पन्न गद्य मुझसे लिखते नहीं बनता…।—हरिशंकर परसाई
त्यागी जी में वह ज़िन्दादिली है या मस्ती और बेफ़िक्री है कि उनके लेखन को उन्मुक्त लेखन का दर्जा दिया जा सकता है। वैसे भी हिन्दी की नामर्दी और स्त्रैणता दूर करने के लिए जिन लोगों ने काम किया है, उनमें रवीन्द्रनाथ त्यागी का नाम भुलाना मुश्किल है। जो लेखन एक ‘ज्वॉय’ दे, एक ‘एक्सटैसी’ दे, उसके महत्त्व को इनकार कैसे किया जा सकता है….।—डॉ. धनंजय वर्मा
ये रचनाएँ ढँके को उघारती हैं, औंधे को सीधा करती हैं, फूलों का सुवास बिखेरती हैं और काँटे चुभाकर भी गुदगुदी पैदा करती हैं। लगता है जैसे हीरे को तराशा जाता हुआ देख रहा हूँ। रवीन्द्रनाथ त्यागी धन्य हैं जो लाठी से बाँसुरी बजाते हैं….।—राधाकृष्ण
हमारे इने-गिने निबन्ध-लेखकों में रवीन्द्रनाथ त्यागी का अपना रंग है, अपनी जगह है—और वह भी केवल निबन्ध-लेखकों की विरलता के कारण ही नहीं वरन्, अपने स्तरीय वैशिष्ट्य के कारण….।—बालकृष्ण राव

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Description

विषकन्या –
मैं रवीन्द्र त्यागी को एक श्रेष्ठ कवि और एक श्रेष्ठ व्यंग्यकार स्वीकार करता हूँ। उनकी विशिष्टता का एक प्रमुख कारण यह है कि हमारे जो पुराने क्लासिक हैं, उनमें उनकी गति है। वे सचमुच बहुत अच्छा लिखते हैं। ऐसा प्रवाहमय विट-सम्पन्न गद्य मुझसे लिखते नहीं बनता…।—हरिशंकर परसाई
त्यागी जी में वह ज़िन्दादिली है या मस्ती और बेफ़िक्री है कि उनके लेखन को उन्मुक्त लेखन का दर्जा दिया जा सकता है। वैसे भी हिन्दी की नामर्दी और स्त्रैणता दूर करने के लिए जिन लोगों ने काम किया है, उनमें रवीन्द्रनाथ त्यागी का नाम भुलाना मुश्किल है। जो लेखन एक ‘ज्वॉय’ दे, एक ‘एक्सटैसी’ दे, उसके महत्त्व को इनकार कैसे किया जा सकता है….।—डॉ. धनंजय वर्मा
ये रचनाएँ ढँके को उघारती हैं, औंधे को सीधा करती हैं, फूलों का सुवास बिखेरती हैं और काँटे चुभाकर भी गुदगुदी पैदा करती हैं। लगता है जैसे हीरे को तराशा जाता हुआ देख रहा हूँ। रवीन्द्रनाथ त्यागी धन्य हैं जो लाठी से बाँसुरी बजाते हैं….।—राधाकृष्ण
हमारे इने-गिने निबन्ध-लेखकों में रवीन्द्रनाथ त्यागी का अपना रंग है, अपनी जगह है—और वह भी केवल निबन्ध-लेखकों की विरलता के कारण ही नहीं वरन्, अपने स्तरीय वैशिष्ट्य के कारण….।—बालकृष्ण राव

About Author

रवीन्द्रनाथ त्यागी - जन्म 9 मई, 1930 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले में स्थित नहटौर नामक क़स्बे में। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए.। देश की सिविल सर्विसेस की परीक्षा में सफलता प्राप्त कर इंडियन डिफेंस एकाउंट्स के लिए नियुक्त। नौकरी के सात वर्ष केन्द्रीय सचिवालय में रक्षा मन्त्रालय में उपसचिव, 'नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट ऐंड एकाउंट्स' के निदेशक तथा वायुसेना, थलसेना की उत्तरी कमान के कंट्रोलर ऑफ़ डिफेंस एकाउंट्स रहे। सन् 1989 में सरकारी सेवा से निवृत्त। लेखन: चौबीस व्यंग्य-संग्रह के अतिरिक्त सात कविता-संग्रह, एक उपन्यास, बालकथाओं के चार संग्रह व चुनी हुई रचनाओं के आठ संग्रह प्रकाशित। 'उर्दू हिन्दी हास्य-व्यंग्य' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ का सम्पादन। 'रवीन्द्रनाथ त्यागी प्रतिनिधि रचनाएँ' बृहद् ग्रन्थ डॉ. कमल किशोर गोयनका द्वारा सम्पादित। 'वसन्त से पतझर तक' के अलावा सौ-सौ चुनी हुई विशिष्ट व्यंग्य रचनाओं के दो बृहद् संकलन—'पूरब खिले पलाश' और 'कबूतर, कौए और तोते' भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित। कुछेक रचनाएँ देश की विभिन्न भाषाओं में अनूदित। अनेक महत्त्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित। 4 सितम्बर, 2004 को देहावसान।

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