Vidrohi Sannyasi

Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Rajeev Sharma
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Prabhat Prakashan
Author:
Rajeev Sharma
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Hindi
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Hardback

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★ श्री नगर से कामरूप-कामाख्या और कलकत्ता से कोच्चि तक आदिशंकर के नाम की पारसमणि हमारा मार्ग प्रदीप्त करती गई। उस महान् यात्री के पदचिह्न खोजते हुए अनायास ही भारत भर की प्रदक्षिणा कब संपन्न हो गई पता नहीं चला। हर सुधार कालांतर में स्वयं रूढि़ बन जाता है★ हर क्रांति को पोंगापंथी बनते हुए और मुक्ति-योद्धाओं को तानाशाह बनते देखना इतिहास की आदत है। वे विद्रोही थे, उन्होंने मानव बलि समेत तत्समय के ढोंग, पाखंड, वामाचार का प्राणपण से विरोध किया। संन्यासी होते हुए उनमें यह कहने का साहस था कि मैं न मूर्ति हूँ, न पूजा हूँ, न पुजारी हूँ, न धर्म हूँ, न जाति हूँ। ★ आदिशंकराचार्य के पास आज के युवाओं के सभी प्रश्नों का उत्तर है, उनकी जिज्ञासाओं और कुंठाओं के भी। उनसे बड़ा प्रबंधन गुरु कौन होगा, जिसने शताब्दियों पहले केरल के गाँव से यात्रा प्रारंभ कर संपूर्ण राष्ट्र की चेतना और जीवन-पद्धति को बदल दिया। जो संन्यासी संसार के सारे अनुशासनों से परे हुआ करते थे, उन्हें अखाड़ों और आश्रमों में संगठित कर अनुशासित और नियमबद्ध कर दिया। बौद्धों और हिंदुओं के संघर्ष को शांत कर दिया। शैवों, वैष्णवों, शाक्तों, गाणपत्यों, सभी को एक सूत्र में पिरो दिया।★ उस अद्भुत तेजस्वी बालक, चमत्कारी किशोर और सम्मोहक युवा शंकर की यह कथा आपको उनके विख्यात जीवन के अज्ञात प्रसंगों का दिग्दर्शन करा पाएगी, यह इस पुस्तक का विनम्र उद्देश्य है।

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Description

★ श्री नगर से कामरूप-कामाख्या और कलकत्ता से कोच्चि तक आदिशंकर के नाम की पारसमणि हमारा मार्ग प्रदीप्त करती गई। उस महान् यात्री के पदचिह्न खोजते हुए अनायास ही भारत भर की प्रदक्षिणा कब संपन्न हो गई पता नहीं चला। हर सुधार कालांतर में स्वयं रूढि़ बन जाता है★ हर क्रांति को पोंगापंथी बनते हुए और मुक्ति-योद्धाओं को तानाशाह बनते देखना इतिहास की आदत है। वे विद्रोही थे, उन्होंने मानव बलि समेत तत्समय के ढोंग, पाखंड, वामाचार का प्राणपण से विरोध किया। संन्यासी होते हुए उनमें यह कहने का साहस था कि मैं न मूर्ति हूँ, न पूजा हूँ, न पुजारी हूँ, न धर्म हूँ, न जाति हूँ। ★ आदिशंकराचार्य के पास आज के युवाओं के सभी प्रश्नों का उत्तर है, उनकी जिज्ञासाओं और कुंठाओं के भी। उनसे बड़ा प्रबंधन गुरु कौन होगा, जिसने शताब्दियों पहले केरल के गाँव से यात्रा प्रारंभ कर संपूर्ण राष्ट्र की चेतना और जीवन-पद्धति को बदल दिया। जो संन्यासी संसार के सारे अनुशासनों से परे हुआ करते थे, उन्हें अखाड़ों और आश्रमों में संगठित कर अनुशासित और नियमबद्ध कर दिया। बौद्धों और हिंदुओं के संघर्ष को शांत कर दिया। शैवों, वैष्णवों, शाक्तों, गाणपत्यों, सभी को एक सूत्र में पिरो दिया।★ उस अद्भुत तेजस्वी बालक, चमत्कारी किशोर और सम्मोहक युवा शंकर की यह कथा आपको उनके विख्यात जीवन के अज्ञात प्रसंगों का दिग्दर्शन करा पाएगी, यह इस पुस्तक का विनम्र उद्देश्य है।

About Author

राजीव शर्मा जन्म : रंगपंचमी 1965 को ‘किरण-निवास’, भिंड (म.प्र.) में। आजीविका : भारतीय प्रशासनिक सेवा में। साहित्यिक : तीन कविता-संग्रह ‘उम्र की इक्कीस गलियाँ’ (2000), ‘धूप के ग्लेशियर’ (2001) तथा ‘प्रिज्म’ (2007)। मंडला जिले पर ‘युगयुगीन मंडला’ (2010)। छायांकन : कान्हा और बांधवगढ़ के जंगलों में सौ से ज्यादा प्रजातियों का छायांकन। गिर के सिंहों, मदुमलाई-बाँदीपुर के बाघों, चंबल के घडि़यालों, सुंदरवन सतपुड़ा, कॉर्बेट, पेंच, मेलघाट सहित दुनिया भर के अभ्यारण्यों का सान्निध्य। छायाचित्र प्रदर्शनी ‘Birds of Bandhavgarh’. अभिरुचियाँ : वन्य जीवन, ग्रामीण विकास, जनजातीय मुद्दों, जल संवर्धन, जैव विविधता, हस्तशिल्प में मैदानी कार्य। विदेश यात्रा : संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड, यूरोप। विशेषज्ञता : मानव संसाधन प्रबंधन, ग्रामीण विकास। शीघ्र प्रकाश्य : ओ...शो (आचार्य रजनीश के जीवन पर) बांधवगढ़ की चिरइयाँ, बांधवगढ़ के राजा बाघ। संप्रति : आयुक्त, हथकरघा एवं हस्तशिल्प।

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