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Vairagya Shatak
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वैराग्य शतकम् में भर्तृहरि ने कारुण्य और निराकुलता के साथ संसार की नश्वरता और वैराग्य की आवश्यकता पर बल दिया है। संसार एक विचित्र पहेली है-कही वीणा का सुमधुर संगीत है, कही सुन्दर रमणीयाँ दिख पड़ती हैं, तो कहीं कुष्ठ पीडि़त शरीरों के बहते घाव तो, कहीं प्रिय के खोने पर बिलखते स्वजन, अतः पता नहीं, यह संसार अमृतमय है या विषमय, वरदान है या अभिशाप। वैराग्य शतकम् में भर्तृहरि क्या कहते हैं: बुद्धिमान लोग ईर्ष्या ग्रस्त हैं, राजा अथवा धनी लोग धन के मद में मत्त हैं, अन्य लोग अज्ञान से दबे हुये हैं अतः सुभाषित (उत्तम काव्य) शरीर में ही जीर्ण हो जाते हैं।.
वैराग्य शतकम् में भर्तृहरि ने कारुण्य और निराकुलता के साथ संसार की नश्वरता और वैराग्य की आवश्यकता पर बल दिया है। संसार एक विचित्र पहेली है-कही वीणा का सुमधुर संगीत है, कही सुन्दर रमणीयाँ दिख पड़ती हैं, तो कहीं कुष्ठ पीडि़त शरीरों के बहते घाव तो, कहीं प्रिय के खोने पर बिलखते स्वजन, अतः पता नहीं, यह संसार अमृतमय है या विषमय, वरदान है या अभिशाप। वैराग्य शतकम् में भर्तृहरि क्या कहते हैं: बुद्धिमान लोग ईर्ष्या ग्रस्त हैं, राजा अथवा धनी लोग धन के मद में मत्त हैं, अन्य लोग अज्ञान से दबे हुये हैं अतः सुभाषित (उत्तम काव्य) शरीर में ही जीर्ण हो जाते हैं।.
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