Utarti Hui Dhoop (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Govind Mishra
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
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Govind Mishra
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Hindi
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Paperback

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आधुनिक भारतीय समाज में कॉलेज-जीवन का यथार्थ क्या है ? अध्ययन, प्रेम और रोमांस या कि हमारी परम्परागत सामाजिकता के विभिन्न दबाव ? निश्चय ही गोविन्द मिश्र का यह उपन्यास हमें इन सवालों के जवाब देता है, लेकिन किसी गणितीय गुणा-भाग से नहीं, बल्कि एक भावप्रवण काव्यात्मक रचाव के साथ।समर्थ रचनाकार के नाते गोविन्द मिश्र की एक अलग पहचान है और हमारे मध्यवर्गीय जीवन में उन्होंने नारी-स्वातन्त्र्य तथा प्रेम एवं काम-सम्बन्धों की बहुस्तरीय पड़ताल की है। कहने की आवश्यकता नहीं कि उनका यह बहुचर्चित उपन्यास भी एक ऐसी ही पड़ताल का नतीजा है। इसमें उन्होंने एक कॉलेजियेट युगल के धूप-छाँही रोमांस और परवर्ती परिस्थितियों के परिणामस्वरूप उनके मोहभंग का प्रभावी अंकन किया है। प्रेमिल स्मृतियों और अधूरे सपनों के प्रति उद्दाम आकर्षण के बावजूद अन्ततः उन्हें इस सच्‍चाई को स्वीकार करना पड़ता है कि सामाजिक यथार्थ उनके व्यक्तिगत भावावेश से कहीं ज्यादा अहम है। संक्षेप में, अपने तमाम रागात्मक खुलेपन के बावजूद यह कथाकृति हमें सामाजिक दायित्वबोध के स्वीकार की प्रेरणा देती है।

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Description

आधुनिक भारतीय समाज में कॉलेज-जीवन का यथार्थ क्या है ? अध्ययन, प्रेम और रोमांस या कि हमारी परम्परागत सामाजिकता के विभिन्न दबाव ? निश्चय ही गोविन्द मिश्र का यह उपन्यास हमें इन सवालों के जवाब देता है, लेकिन किसी गणितीय गुणा-भाग से नहीं, बल्कि एक भावप्रवण काव्यात्मक रचाव के साथ।समर्थ रचनाकार के नाते गोविन्द मिश्र की एक अलग पहचान है और हमारे मध्यवर्गीय जीवन में उन्होंने नारी-स्वातन्त्र्य तथा प्रेम एवं काम-सम्बन्धों की बहुस्तरीय पड़ताल की है। कहने की आवश्यकता नहीं कि उनका यह बहुचर्चित उपन्यास भी एक ऐसी ही पड़ताल का नतीजा है। इसमें उन्होंने एक कॉलेजियेट युगल के धूप-छाँही रोमांस और परवर्ती परिस्थितियों के परिणामस्वरूप उनके मोहभंग का प्रभावी अंकन किया है। प्रेमिल स्मृतियों और अधूरे सपनों के प्रति उद्दाम आकर्षण के बावजूद अन्ततः उन्हें इस सच्‍चाई को स्वीकार करना पड़ता है कि सामाजिक यथार्थ उनके व्यक्तिगत भावावेश से कहीं ज्यादा अहम है। संक्षेप में, अपने तमाम रागात्मक खुलेपन के बावजूद यह कथाकृति हमें सामाजिक दायित्वबोध के स्वीकार की प्रेरणा देती है।

About Author

गोविन्द मिश्र

गोविन्द मिश्र समकालीन कथा-साहित्य में एक ऐसी उपस्थिति हैं जिनकी वरीयताओं में लेखन सर्वोपरि है, जिनकी चिन्ताएँ समकालीन समाज से उठकर ‘पृथ्वी पर मनुष्य’ के रहने के सन्दर्भ तक जाती हैं और जिनका लेखन-फलक लाल पीली ज़मीन के खुरदरे यथार्थ, तुम्हारी रोशनी में की कोमलता और काव्यात्मकता, धीरसमीरे  की भारतीय परम्परा की खोज, हुज़ूर दरबार और पाँच आँगनोंवाला घर के इतिहास और अतीत के सन्दर्भ में आज के प्रश्नों की पड़ताल–इन्हें एक साथ समेटे हुए है।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—वह अपना चेहरा, उतरती हुई धूप, लाल पीली ज़मीन, हुज़ूर दरबार, तुम्हारी रोशनी में, धीरसमीरे, पाँच आँगनोंवाला घर, फूल...इमारतें और बन्दर, कोहरे में क़ैद रंग, धूल पौधों पर, अरण्यतंत्र, शाम की ​​झिलमिल, ख़िलाफ़त (उपन्यास); पगला बाबा, आसमान...कितना नीला, हवाबाज़, मुझे बाहर निकालो, नये सिरे से आदि (कहानी-संग्रह); निर्झरिणी (सम्पूर्ण कहानियाँ दो खंडों में); धुंध-भरी सुर्ख़ी, दरख़्तों के पार...शाम, झूलती जड़ें, परतों के बीच (यात्रा-वृत्त); साहित्य का सन्दर्भ, कथा भूमि, संवाद अनायास, समय और सर्जना, साहित्य, साहित्यकार और प्रेम, सान्निध्य-साहित्यकार (निबन्ध); ओ प्रकृति माँ! (कविता); मास्टर मनसुखराम, कवि के घर में चोर, आदमी का जानवर (बाल-साहित्य); रंगों की गंध (समग्र यात्रा-वृत्त दो खंडों में); चुनी हुई रचनाएँ (तीन खंडों में); गोविन्द मिश्र रचनावली : संपादक नन्दकिशोर आचार्य (बारह खंडों में)।

उन्हें प्राप्त कई पुरस्कारों/सम्मानों में पाँच आँगनोंवाला घर के लिए 1998 का ‘व्यास सम्मान’, 2008 में ‘साहित्य अकादेमी’, 2011 में ‘भारत-भारती सम्मान’, 2013 का ‘सरस्वती सम्मान’ विशेष उल्लेखनीय हैं।

सम्पर्क : एच.एक्स. 94, ई-7, अरेरा कॉलोनी,

भोपाल-462016

ई-मेल : govindmishra1939@gmail.com

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