Urdu Hindi Kosh (HB)

Publisher:
Lokbharti
| Author:
Badri Nath Kapoor (Varanasi)
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Lokbharti
Author:
Badri Nath Kapoor (Varanasi)
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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उर्दू और हिन्दी दोनों भाषाओं के प्रामाणिक ज्ञान और उन्हें निकट लाने में यह कोश अत्यन्त सहायक है।
उर्दू-भाषी पाठक और प्रेमी प्रायः ऐसे शब्दकोश की ज़रूरत महसूस करते हैं जो हो तो उर्दू की लिपि में किन्तु जिससे हिन्दी शब्दों का अर्थज्ञान हो सके। इसी प्रकार उर्दू से अनभिज्ञ हिन्दीभाषी नागरी लिपि में उर्दू शब्दों की प्रस्तुति से प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। इस दिशा में यह ‘उर्दू-हिन्दी कोश’ एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
यह कोश उर्दू भाषा में प्रयुक्त होनेवाले अरबी-फ़ारसी आदि के शब्दों का हिन्दी अर्थ जानने में पर्याप्त सहायक है। अरबी, फ़ारसी व तुर्की आदि की अधिकांश संज्ञाओं और विशेषणों के समावेश ने इस कोश की सार्थकता बढ़ा दी है। कोश की विश्वसनीयता फ़ारसी लिपि में मुख्य प्रविष्टियों के अंकन के कारण बढ़ गई है।
भाषाविदों, साहित्य-साधकों, शिक्षकों, विद्यार्थियों, अनुवादकों, सम्पादकों, शोधार्थियों आदि के लिए यह कोश बहुत उपयोगी है।

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Description

उर्दू और हिन्दी दोनों भाषाओं के प्रामाणिक ज्ञान और उन्हें निकट लाने में यह कोश अत्यन्त सहायक है।
उर्दू-भाषी पाठक और प्रेमी प्रायः ऐसे शब्दकोश की ज़रूरत महसूस करते हैं जो हो तो उर्दू की लिपि में किन्तु जिससे हिन्दी शब्दों का अर्थज्ञान हो सके। इसी प्रकार उर्दू से अनभिज्ञ हिन्दीभाषी नागरी लिपि में उर्दू शब्दों की प्रस्तुति से प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। इस दिशा में यह ‘उर्दू-हिन्दी कोश’ एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
यह कोश उर्दू भाषा में प्रयुक्त होनेवाले अरबी-फ़ारसी आदि के शब्दों का हिन्दी अर्थ जानने में पर्याप्त सहायक है। अरबी, फ़ारसी व तुर्की आदि की अधिकांश संज्ञाओं और विशेषणों के समावेश ने इस कोश की सार्थकता बढ़ा दी है। कोश की विश्वसनीयता फ़ारसी लिपि में मुख्य प्रविष्टियों के अंकन के कारण बढ़ गई है।
भाषाविदों, साहित्य-साधकों, शिक्षकों, विद्यार्थियों, अनुवादकों, सम्पादकों, शोधार्थियों आदि के लिए यह कोश बहुत उपयोगी है।

About Author

रामचन्द्र वर्मा

रामचन्‍द्र वर्मा का जन्म सन् 1890 में काशी के एक सम्मानित खत्री परिवार में हुआ था। वर्मा जी की पाठशालीय शिक्षा साधारण ही थी, किन्तु अपने विद्याप्रेम के कारण उन्होंने विद्वानों के संसर्ग तथा स्वाध्याय द्वारा हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू, फ़ारसी, मराठी, बांग्ला, गुजराती, अंग्रेज़ी आदि कई भाषाओं का अच्छा अध्ययन कर लिया था। उन्‍होंने विभिन्न भाषाओं के ग्रन्थों के आदर्श अनुवाद प्रस्तुत किए हैं, जिनमें ‘हिन्दू राजतंत्र’, ‘ज्ञानेश्वरी’, ‘छत्रसाल’ आदि पुस्तकें उल्‍लेखनीय हैं।

वर्मा जी की स्थायी देन भाषा के क्षेत्र में है। अपने जीवन का अधिकांश उन्होंने शब्दार्थनिर्णय और भाषापरिष्कार में बिताया। उनका आरम्भिक जीवन पत्रकारिता का रहा। वे सन्‌ 1907 में 'हिन्दी केसरी' के सम्पादक हुए। फिर 'बिहार बन्धु' का योग्यतापूर्वक सम्पादन किया। बाद में ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ के सम्पादक-मंडल में रहे। वे ‘नागरी प्रचारिणी सभा’, काशी से सम्पादित होनेवाले 'हिन्दी शब्दसागर' में सहायक सम्पादक नियुक्त हुए, जिसमें 1910 से 1929 तक कार्य किया। बाद में उन्हें 'संक्षिप्त हिन्दी शब्दसागर' के सम्‍पादन का भार सौंपा गया।

वर्मा जी की अनूठी हिन्दी-सेवा के कारण भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया था। अन्तिम काल में उन्होंने हिन्दी का एक बृहत्‌ कोश 'मानक हिन्दी कोश' के नाम से तैयार किया, जो पाँच खंडों में ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ से प्रकाशित हुआ।

उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं—‘अच्छी हिन्दी’, ‘हिन्‍दी प्रयोग’, ‘कोश कला’, ‘उर्दू-हिन्दी कोश’, ‘उर्दू-हिन्‍दी-अंग्रेज़ी त्रिभाषी कोश’, ‘लोकभरती बृहत् प्रामाणिक हिन्दी कोश’, ‘लोकभरती प्रामाणिक हिन्‍दी बाल-कोश’ आदि।

सन्‌ 1969 में उनका निधन हुआ।

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