Urdu Adab Ke Sarokar

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
जानकी प्रसाद शर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
जानकी प्रसाद शर्मा
Language:
Hindi
Format:
Hardback

315

Save: 30%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789387919006 Category
Category:
Page Extent:
268

उर्दू अदब के सरोकार –
समन्वित संस्कृति के चिह्न उभरने के साथ-साथ उर्दू भाषा के अस्तित्व में आने की प्रक्रिया शुरू हुई। यह भाषा दो भिन्न समुदायों की मिली-जुली समाजार्थिक और सांस्कृतिक ज़रूरतों की पैदावार है। भाषा की तरह इसकी लिपि में भी भारतीय तत्त्व समाहित हैं। इसे मध्यकाल की राजभाषा फ़ारसी से जोड़कर देखना एक भ्रम है। सच्चाई यह है कि उर्दू का प्रसार फ़ारसी के वर्चस्व के जवाब में हुआ। इसकी प्रकृति में विविध अंचलों के सांस्कृतिक तत्त्वों की विद्यमानता को देखते हुए विद्वानों ने इसके जन्म स्थान अलग-अलग बताये हैं। मुहम्मद हुसैन आज़ाद ने ‘आबे-हयात’ में इसके जन्म का सम्बन्ध ब्रजक्षेत्र से जोड़ा है तो हाफ़िज़ महमूद शीरानी ने ‘पंजाब में उर्दू’ में इसका जन्म स्थान पंजाब बताया है। कुछ विद्वान सिन्ध को और कुछ दकन को इसका जन्म स्थान मानते हैं। अर्थात् सिन्ध से दकन तक इसका वतन है।
हिन्दी क्षेत्र में सांस्कृतिक चेतना के पिछड़ेपन का सवाल उठाया जाता रहा है। इस पिछड़ेपन के अनेक कारणों में से एक यह भी है कि हम हिन्दी-उर्दू के सापेक्ष विकास की समझ को अपेक्षानुरूप विकसित नहीं कर पाये हैं। इसके लिए हिन्दी और उर्दू वाले दोनों ज़िम्मेदार हैं।
पिछले क़रीब पाँच सौ वर्षों की हिन्दी और उर्दू रचनाशीलता में बहुत कुछ साझा रहा है। कम अज़ कम इस दौरान हिन्दी और उर्दू का विकास एक-दूसरे से सापेक्ष नज़र आता है… —इसी पुस्तक की ‘भूमिका’ से

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Urdu Adab Ke Sarokar”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

उर्दू अदब के सरोकार –
समन्वित संस्कृति के चिह्न उभरने के साथ-साथ उर्दू भाषा के अस्तित्व में आने की प्रक्रिया शुरू हुई। यह भाषा दो भिन्न समुदायों की मिली-जुली समाजार्थिक और सांस्कृतिक ज़रूरतों की पैदावार है। भाषा की तरह इसकी लिपि में भी भारतीय तत्त्व समाहित हैं। इसे मध्यकाल की राजभाषा फ़ारसी से जोड़कर देखना एक भ्रम है। सच्चाई यह है कि उर्दू का प्रसार फ़ारसी के वर्चस्व के जवाब में हुआ। इसकी प्रकृति में विविध अंचलों के सांस्कृतिक तत्त्वों की विद्यमानता को देखते हुए विद्वानों ने इसके जन्म स्थान अलग-अलग बताये हैं। मुहम्मद हुसैन आज़ाद ने ‘आबे-हयात’ में इसके जन्म का सम्बन्ध ब्रजक्षेत्र से जोड़ा है तो हाफ़िज़ महमूद शीरानी ने ‘पंजाब में उर्दू’ में इसका जन्म स्थान पंजाब बताया है। कुछ विद्वान सिन्ध को और कुछ दकन को इसका जन्म स्थान मानते हैं। अर्थात् सिन्ध से दकन तक इसका वतन है।
हिन्दी क्षेत्र में सांस्कृतिक चेतना के पिछड़ेपन का सवाल उठाया जाता रहा है। इस पिछड़ेपन के अनेक कारणों में से एक यह भी है कि हम हिन्दी-उर्दू के सापेक्ष विकास की समझ को अपेक्षानुरूप विकसित नहीं कर पाये हैं। इसके लिए हिन्दी और उर्दू वाले दोनों ज़िम्मेदार हैं।
पिछले क़रीब पाँच सौ वर्षों की हिन्दी और उर्दू रचनाशीलता में बहुत कुछ साझा रहा है। कम अज़ कम इस दौरान हिन्दी और उर्दू का विकास एक-दूसरे से सापेक्ष नज़र आता है… —इसी पुस्तक की ‘भूमिका’ से

About Author

जानकीप्रसाद शर्मा - जन्म: 5 मार्च, 1950, सिरोंज (विदिशा), मध्य प्रदेश। भोपाल विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए., पीएच.डी. जामिया उर्दू, अलीगढ़ से अदीब। लाजपतराय कॉलेज, साहिबाबाद (ग़ाज़ियाबाद) से हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त (2012)। प्रकाशन: 'उर्दू साहित्य की परम्परा', 'रामविलास शर्मा और उर्दू', 'शानी' (साहित्य अकादेमी मोनोग्राफ़), ‘कविता की नई काइनात', 'कहानी का वर्तमान', 'कहानी : एक संवाद', 'उपन्यास एक अन्तर्यात्रा' और 'गाहे ब गाहे' आलोचना पुस्तकें। 'शानी रचनावली' का सम्पादन (छह खण्डों में)। उर्दू से हिन्दी अनुवाद की तीन दर्जन से अधिक पुस्तकों में से तेरह पुस्तकें केन्द्रीय साहित्य अकादेमी से प्रकाशित। सज्जाद ज़हीर की 'रौशनाई', डॉ. मुहम्मद उमर की 'हिन्दुस्तानी तहज़ीब का मुसलमानों पर असर', क़ाज़ी अब्दुस्सत्तार के उपन्यास 'दाराशुकोह' व 'ग़ालिब' के अनुवाद विशेषतः उल्लेखनीय। पुरस्कार: हिन्दी अकादमी, दिल्ली का हिन्दी सेवा सम्मान 2016।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Urdu Adab Ke Sarokar”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED